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पेशवा पर अंग्रेज-दलितों की जीत के जश्न पर शहर-शहर में जंग, विरोध में आज महाराष्ट्र बंद

इस हिंसा के लिए एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने दक्षिणपंथी संगठनों की जिम्मेदार बताया है और आरोपियों पर कड़ी कार्रवाई करने की मांग की है. पवार ने कहा कि भीमा-कोरेगांव की लड़ाई की 200वीं सालगिरह मनाई जा रही थी. हर साल यह दिन बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता रहा है. लेकिन इस बार कुछ दक्षिणपंथी संगठनों ने यहां की फिजा को बिगाड़ दिया.

हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई. हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई.
आदित्य बिड़वई/कमलेश सुतार
  • पुणे ,
  • 02 जनवरी 2018,
  • अपडेटेड 12:25 AM IST

महाराष्ट्र के पुणे में 200 साल पुराने युद्ध की बरसी को लेकर जातीय संघर्ष छिड़ गया है. यहां के भीमा-कोरेगांव में सोमवार को बरसी पर हुए कार्यक्रम के दौरान हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी, जबकि कई घायल हैं. जगह-जगह हिंसक प्रदर्शनों के बाद सुरक्षा बढ़ा दी गई है. इस मामले में सरकार ने न्यायिक जांच के आदेश दिए हैं.

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पुणे में हुई जातीय हिंसा का असर महाराष्ट्र के अन्य इलाकों में भी देखा जा रहा है. मंगलवार को मुंबई के अलावा हड़पसर व फुरसुंगी में सरकारी और प्राइवेट बसों पर पथराव किया गया. लगभग 134 महाराष्ट्र परिवहन की बसों को नुकसान पहुंचा है. हिंसा की वजह से औरंगाबाद और अहमदनगर के लिए बस सेवा निरस्त कर दी गई थी. मंगलवार शाम चार बजे के बाद पुणे से अहमदनगर के बीच सभी बस सेवाएं बहाल हो गईं.

विरोध प्रदर्शन की वजह से मुंबई के कई हिस्सों में धारा 144 लगा दी गई है. वहीं, मुंबई पुलिस के पीआरओ ने जानकारी दी है कि राज्य में विभिन्न जगहों से 100 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया गया है. इस बीच भीमराव आंबेडकर के पोते और एक्टिविस्ट प्रकाश आंबेडकर ने बुधवार को महाराष्ट्र बंद का आह्वाहन किया है.

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इस मामले पर महाराष्ट्र के गृह राज्यमंत्री दीपक केसरकार ने कहा कि स्थिति अब नियंत्रण में है. राज्य में कोई भी गलत संदेश नहीं फैलना चाहिए. उन्होंने कहा कि मैं सभी से शांति बनाए रखने की अपील करता हूं.  इससे पहले सैकड़ों की तादाद में गुस्साए लोगों ने मुलुंद, चेम्बुर, भांडुप, विख्रोली के रमाबाई आंबेडकर नगर और कुर्ला के नेहरू नगर में ट्रेन ऑपरेशंस को रोक दिया. पुणे के हड़पसर और फुर्सुंगी में बसों के साथ तोड़फोड़ की गई है. हिंसा की वजह से अहमदनगर और औरंगाबाद जाने वाली बसों को रद्द कर दिया गया था.

वहीं हजार से ज्यादा विरोध कर रहे लोगों ने ईस्टर्न हाइवे पर रामाबाई नगर जंक्शन के पास जाम लगाया हुआ है. हिंसा की वारदात को रोकने के लिए पुलिसबल तैनात है, हालांकि मंगलवार शाम तक प्रदर्शनकारियों को वहां से हटाया नहीं जा सका है. पुलिस के आला अध‍िकारी विरोध खत्म करने के लिए नेताओं को मनाने में जुटे हुए हैं.

इस बारे में महाराष्ट्र के सीएम देवेन्द्र फडणवीस ने कहा कि, "भीमा-कोरेगांव की लड़ाई की 200वीं सालगिरह पर करीब तीन लाख लोग आए थे. हमने पुलिस की 6 कंपनियां तैनात की थी. कुछ लोगों ने माहौल बिगाड़ने के लिए हिंसा फैलाई. इस तरह की हिंसा को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. हमने न्यायिक जांच के आदेश दिए हैं. मृतक के परिवार वालों को 10 लाख के मुआवजा दिया जाएगा."  

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पवार बोले-  दक्षिणपंथी संगठन हिंसा के लिए जिम्मेदार 

वहीं इस हिंसा के लिए एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने दक्षिणपंथी संगठनों की जिम्मेदार बताया है और आरोपियों पर कड़ी कार्रवाई करने की मांग की है. पवार ने कहा कि भीमा-कोरेगांव की लड़ाई की 200वीं सालगिरह मनाई जा रही थी. हर साल यह दिन बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता रहा है. लेकिन इस बार कुछ दक्षिणपंथी संगठनों ने यहां की फिजा को बिगाड़ दिया.

कुछ बाहरी लोगों ने वधु गांव के लोगों भड़काया और यहां हिंसा फैल गई. आज तक भीमा-कोरेगांव के इतिहास में ऐसा नहीं हुआ. प्रशासन ने भी पर्याप्त तैयारियां नहीं की थी. उन्हें यह मालूम था कि 200वीं सालगिरह होने पर यहां हजारों लोग आयेंगे, लेकिन कोई तैयारी नहीं की गई. पवार ने शांति और सद्भाव रखने की अपील लोगों से की है.

वहीं, कांग्रेस ने आरोप लगाया कि भीमा-कोरेगांव में हिंसा साजिश के तहत फैलाई गई. मुंबई कांग्रेस के डॉ. राजू वाघमारे ने कहा कि पहले से दलितों पर हमले करने की प्लानिंग थी. आरएसएस के कुछ लोग यहां हिंसा भड़काने के लिए लंबे समय से तैयार कर रहे थे.

आखिर क्या है भीमा कोरेगांव की लड़ाई

बता दें कि भीमा कोरेगांव की लड़ाई 1 जनवरी 1818 को पुणे स्थित कोरेगांव में भीमा नदी के पास उत्तर-पू्र्व में हुई थी. यह लड़ाई महार और पेशवा सैनिकों के बीच लड़ी गई थी. अंग्रेजों की तरफ 500 लड़ाके, जिनमें 450 महार सैनिक थे और पेशवा बाजीराव द्वितीय के 28,000 पेशवा सैनिक थे, मात्र 500 महार सैनिकों ने पेशवा की शक्तिशाली 28 हजार मराठा फौज को हरा दिया था.

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हर साल नए साल के मौके पर महाराष्ट्र और अन्य जगहों से हजारों की संख्या में पुणे के परने गांव में दलित पहुंचते हैं, यहीं वो जयस्तंभ स्थित है जिसे अंग्रेजों ने उन सैनिकों की याद में बनवाया था, जिन्होंने इस लड़ाई में अपनी जान गंवाई थी. कहा जाता है कि साल 1927 में डॉ. भीमराव अंबेडकर इस मेमोरियल पर पहुंचे थे, जिसके बाद से अंबेडकर में विश्वास रखने वाले इसे प्रेरणा स्त्रोत के तौर पर देखते हैं.

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