
एक तस्वीर आपको कभी भी भावुक कर सकती है. तस्वीर की ताकत यही है कि वो शब्दों से कई गुणा ज्यादा प्रभावी होती है. एक तस्वीर अपने अंदर उस वक्त को कैद किए रहती है जब वो ली गई थी. इसके बाद वो जब भी देखी जाती है. जब भी दिखाई जाती है तो देखने वाले पर अपना असर छोड़ती है.
इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण है ये फोटो जो आज से दस साल पहले ली गई थी. पिछले दो-तीन दिन से यह तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है. लोग इस तस्वीर को साझा कर रहे हैं. साझा करते हुए भावनात्मक पोस्ट लिख रहे हैं. कोई इस तस्वीर को पटना का बता रहा है तो कोई कह रहा है कि तस्वीर वृंदावन के एक वृद्धाश्रम की है. हजारों बार शेयर हो चुकी इस तस्वीर की कहानी लगभग एक सी है. वो कहानी है कि स्कूल में पढ़ने वाली एक बच्ची जब वृद्धाश्रम पहुंची तो उसे वहां अपनी दादी मिल गईं. इसके बाद दादी, पोती एक दूसरे से लिपटकर रोने लगीं.
लेकिन इन वायरल पोस्ट में यह साफ नहीं है कि ये तस्वीर कब की है? कहां की है? तस्वीर की जो कहानी बताई जा रही है, वो सही भी है या नहीं और तस्वीर ली किसने है?
लेकिन इनसभी सवालों के जवाब हम लेकर आए हैं. इस फोटो को अपने कैमरे में उतारने वाले फोटोग्राफर का नाम है-कल्पित एस. बचेच. गुजरात के अहमदाबाद में रहने वाले कल्पित एक वरिष्ठ फोटो पत्रकार हैं और पिछले 30 साल से तस्वीरें उतार रहे हैं.
11 साल बाद इस फोटो के वायरल होने के बारे में कल्पित aajtak.in को बताते हैं, 'बीबीसी गुजराती ने मुझे अपने करियर की यादगार तस्वीरें देने के लिए कहा था. वो लोग विश्व फोटोग्राफी दिवस के अवसर पर यादगार तस्वीरों की एक गैलरी बना रहे थे. यहीं से ये फोटो वायरल हुई है.'
फोटो वायरल होने के बाद कल्पित ने बीबीसी गुजराती पर इस बारे में विस्तार से लिखा भी है. उन्होंने अपने लेख में तस्वीर से जुड़ी हर बारीक जानकारी शेयर की है. aajtak.in ने भी कल्पित से फोन पर बात की और तस्वीर की कहानी पूछी. बकौल कल्पित उन्होंने यह तस्वीर 12 सितंबर 2007 को अहमदाबाद में स्थित एक वृद्धाश्रम में ली थी.
वो बताते हैं, 'अहमदाबाद के मणिनगर में एक अंग्रेजी मीडियम स्कूल है. स्कूल का नाम है-जीएनसी स्कूल. स्कूल प्रबंधन अपने 30-40 बच्चों को मणिनगर में स्थित एक वृद्धाश्रम ले गया था. बतौर फोटो पत्रकार मैं वहां पहुंचा था. हाथों में प्ले कार्ड लिए बच्चे-बच्चियां एक तरफ बैठी थीं और आश्रम की महिलाएं एक तरफ. मैंने अनुरोध किया कि अगर बच्चे और महिलाएं एक साथ बैठेंगे तो अच्छा रहेगा.’
स्क्रीनशॉट: बीबीसी गुजराती
कल्पित आगे बताते हैं, 'जैसे ही बच्चे और महिलाएं एक दूसरे के करीब आए वैसे ही मैंने देखा कि एक औरत एक बच्ची को देखकर जोर-जोर से रो रही है. किसी को समझ नहीं आया कि क्या हुआ. सब सन्न. तभी जिस बच्ची को देखकर महिला रो रही थी वो उससे चिपट गई और दोनों रोने लगे. इसके बाद तो आश्रम में मौजूद हर आदमी रोने लगा. मैंने खुद रोते-रोते ये तस्वीर ली थी. तबतक हमें नहीं मालूम था कि हुआ क्या? क्यों दोनों ऐसे गले मिलकर रो रहे थे. थोड़ी देर बाद जब मैंने उस महिला से पूछा तो उन्होंने कहा-ये बच्ची मेरी पोती है. इस जवाब ने एक बार फिर वहां मौजूद हर इंसान को जड़ बना दिया. थोड़ी देर तक कोई हलचल नहीं हुई. लड़की ने रोते हुए कहा-मैं घर में दादी को खोज रही थी तो मां-पापा ने बताया कि दादी बाहर गांव गई हैं.’
अगले दिन यह तस्वीर और पूरी कहानी उस अखबार के पहले पन्ने पर प्रकाशित हुई जिसके लिए कल्पित काम करते थे. पूरे अहमदाबाद शहर में हल्ला मच गया. खुद कल्पित को हजारों फोन आए. वृद्धाश्रम में टीवी के कैमरे पहुंचे तो महिला ने कहा, 'मैं यहां अपनी मर्जी से हूं. मुझे यहां रहना अच्छा लगता है. मुझे कोई दिक्कत नहीं है.’
11 साल पहले टीवी पर दिखाए गए उस बयान के बारे में कल्पित कहते हैं, 'जब बा का वो बयान टीवी पर चल रहा था तो मुझे उनका रोना याद आ रहा था. वो कोई आम रोना नहीं था, वो बिलखना था. अपनों से बिछड़ने का दर्द था उस आंसुओं में, लेकिन अब उन आंसुओं को 'बा' पी गई थीं.’
बकौल कल्पित तस्वीर छपने के कुछ दिनों बाद खबर आई कि उस महिला को उसका परिवार आश्रम से ले गया है लेकिन जब दो साल बाद कल्पित उस आश्रम में फिर पहुंचे तो तस्वीर में दिख रही महिला उन्हें वहीं मिली थी.