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वायरल टेस्ट: जानिए, क्या है असम के ‘मुस्लिम होमलैंड’ वीडियो का सच

उत्तर पूर्व में स्थित असम राज्य में बांग्लादेशी मुस्लिमों के अवैध प्रवास को लेकर विरोध प्रदर्शन का सिलसिला कोई नई बात नहीं है.

फोटो: Getty फोटो: Getty
रोहित/खुशदीप सहगल
  • नई दिल्ली,
  • 04 जुलाई 2018,
  • अपडेटेड 4:22 PM IST

फेक न्यूज के रोग ने जहां पूरे देश का ध्यान खींचा है, वहीं इंडिया टुडे के वायरल टेस्ट ने सोशल मीडिया पर वीडियो के जरिए फैलाई जा रही एक और अफवाह का पर्दाफाश किया है. इस वीडियो के जरिए असम में जातीय तनाव फैलाने का मंसूबा था.   

उत्तर पूर्व में स्थित असम राज्य में बांग्लादेशी मुस्लिमों के अवैध प्रवास को लेकर विरोध प्रदर्शन का सिलसिला कोई नई बात नहीं है.

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फेसबुक पर इस महीने कथित विरोध प्रदर्शन का एक वीडियो सर्कुलेट किया गया. इस वीडियो के साथ जिन सनसनीखेज हिंदी शीर्षकों का इस्तेमाल किया गया, उनका मकसद समुदायों को एक दूसरे को भड़काना था.

‘अब असम में बांग्लादेशी मुस्लिमों ने अलग मुस्लिम देश बनाने की मांग की.’ के शीर्षक के साथ सोमवार की इस पोस्ट में सेल-फोन की फुटेज को देखा जा सकता है जिसमें बड़ी संख्या में टोपी पहने मुस्लिमों के समूह को आगे बढ़ते देखा जा सकता है.

इस वीडियो को जिस यूजर ने पोस्ट किया उसने अपनी पहचान सतीश द्विवेदी के तौर पर बताई है. अपने फेसबुक पेज पर द्विवेदी ने खुद को ‘देशसेवक’ घोषित कर रखा है.  

लेकिन जब इंडिया टुडे की वायरल टेस्ट टीम ने वीडियो की पड़ताल की तो जो सच सामने आया उसका किसी राष्ट्रीय हित से दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं था.

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तीन दिन में इस वीडियो को 50,000 से ज्यादा व्यू मिले और 2,500 बार इसे शेयर किया गया.

वायरल टेस्ट टीम ने पाया कि इस वीडियो को शरारतन देश की हिन्दी पट्टी में रहने वाले लोगों को उकसाने की कोशिश के तहत डिजाइन किया गया.  

जिस तरह वीडियो वाले पोस्ट पर जातीय वैमनस्य वाले कमेंट आए, उन्हें संकेत माना जाए तो साफ है कि वीडियो को जिस मंसूबे के साथ बनाया गया था उसमें वो कुछ हद तक कामयाब रहा.  

हिंदी में वीडियो में एक शीर्षक में ये भी लिखा गया है कि वो भूल गए हैं कि राज्य (असम) में बीजेपी सरकार है.  

इंडिया टुडे की वायरल टेस्ट टीम ने पहले वीडियो क्लिप के ऑडियो की जांच की.  

क्लिप में "हाराक्सती नोसलिबो" के नारे लगाते प्रदर्शनकारियों को सुना जा सकता है. इस नारे का अनुवाद है- ‘उत्पीड़न बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.’  

इंडिया टुडे वायरल टीम ने सच्चाई का पता लगाने के लिए असम के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी से संपर्क किया. उनसे फेसबुक वीडियो में दिख रहे प्रदर्शन के बारे में जानना चाहा. अतिरिक्त डीजीपी हरमीत सिंह ने पुष्टि की कि ये वीडियो राज्य के गोलपाड़ा जिले का है.

ऐसे में वायरल टेस्ट टीम ने गोलपाड़ा के एसपी अमितावा सिन्हा का रुख किया. उन्होंने प्रदर्शन से जुड़ा सारा ब्यौरा साझा किया.

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सिन्हा ने बताया कि ये प्रदर्शन 30 जून 2017 को हुआ था. तो सतीश द्विवेदी ने सोमवार को जो प्रदर्शन का वीडियो ऑनलाइन किया था वो प्रदर्शन दरअसल बीते साल हुआ था. लेकिन बड़ा सवाल ये कि फुटेज में मुस्लिम किस बात को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे.  

सिन्हा ने बीते साल की घटना को याद करते हुए बताया, “करीब 150 लोग प्रदर्शन कर रहे थे. उनका दावा था कि अवैध प्रवासियों की पहचान के नाम पर उन्हें तंग किया जा रहा है. कुछ देर बाद ही उन्होंने पुलिस पर पथराव करना शुरू कर दिया था.”

सिन्हा के मुताबिक इस मामले में एफआईआर (257/2017) भी दर्ज हुई थी.

इंटरनेट पर सर्च करने से पता चलता है कि गोलपाड़ा में हुए प्रदर्शन की तब काफी रिपोर्टिंग हुई थी. वायरल टेस्ट जांच से दूध का दूध और पानी का पानी सामने आ गया.

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