
मुस्लिमों के सबसे बड़े त्योहार ईद से पहले एक संदेश ने सोशल मीडिया पर हलचल मचा दी. इस संदेश में दावा किया गया कि पश्चिम बंगाल सरकार ने अभूतपूर्व कदम उठाते हुए ईद की छुट्टियों को चार दिन तक बढ़ा दिया है. इसके मायने ये है कि पश्चिम बंगाल में सभी दफ्तर 12 से 17 जून तक बंद रहेंगे. ईद का त्योहार संभवत: शनिवार, 16 जून को होगा. 17 जून को रविवार है. इस आशय की रिपोर्ट को कई स्थानीय बांग्ला अखबारों और क्षेत्रीय टीवी चैनल पर भी देखा गया.
पश्चिम बंगाल का नाम पिछले कुछ अर्से से हिंसक घटनाओं और गुटीय संघर्ष को लेकर सुर्खियों में आता रहा है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को ऐसी घटनाओं के लिए विरोधियों की आलोचना का भी सामना करना पड़ा है. ऐसे में ईद पर चार दिन की छुट्टियों वाला संदेश सोशल मीडिया पर बहस का मुद्दा बन गया. कुछ वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों समेत कई लोगों ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की.
छुट्टियों वाली ये अधिसूचना कथित तौर पर पश्चिम बंगाल के वित्त विभाग की ऑडिट ब्रांच की ओर से 8 जून की चिट्ठी के जरिए जारी की गई. इसमें लिखा गया- ‘ ईद त्योहार को यथोचित ढंग से मनाने के लिए, जो 12 से 15 जून 2018 के बीच है, राज्यपाल को शासकीय अवकाश 12 से 15 जून तक घोषित करने में प्रसन्नता है, इसके अतिरिक्त 16 जून 2018 को पहले ही सार्वजनिक अवकाश अधिसूचित किया जा चुका है.
उपरोक्त चिट्ठी के आधार पर संदेशों को जब सोशल मीडिया पर धड़ाधड़ शेयर किया जाने लगा तो कोलकाता पुलिस हरकत में आई. कोलकाता पुलिस ने 10 जून को ट्वीट कर इस चिट्ठी को फर्जी बताया.
ऐसे में सवाल उठा कि क्या ममता बनर्जी सरकार ने सोशल मीडिया पर तूल पकड़ने के बाद छुट्टियों के आदेश को वापस लिया या फिर किसी दुर्भावना के तहत फर्जी चिट्ठी को सोशल मीडिया पर फैलाया गया? हमने चिट्ठी से जुड़ी सच्चाई का पता लगाने के लिए तह तक जाने का फैसला किया.
बीते साल ममता बनर्जी सरकार ने मुहर्रम के साथ तारीख पड़ने की वजह से कुछ घंटों के लिए दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन पर रोक लगाई थी. लेकिन कलकत्ता हाईकोर्ट के सख्त रुख अपनाने के बाद राज्य सरकार को अपना आदेश वापस लेना पड़ा था. हाईकोर्ट ने जहां प्रतिमाओं के विसर्जन पर रोक लगाने के लिए सरकार को फटकार लगाई वहीं दोनों अवसरों के लिए पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था करने का आदेश दिया. उस वक्त ममता बनर्जी के विरोधियों ने उन पर आरोप लगाया कि वो वोट बैंक राजनीति के लिए अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण की कोशिश कर रही हैं.
शुरुआत में ये संदिग्ध लगा कि वित्त विभाग का पूरे राज्य के लिए सार्वजनिक अवकाश की घोषणा से क्या लेना देना है. लेकिन जब हमने पड़ताल की तो पता चला कि 1957 से ही पश्चिम बंगाल में सार्वजनिक छुट्टियों की घोषणा का काम वित्त विभाग की ऑडिट ब्रांच के ही जिम्मे रहा है.
वित्त विभाग की वेबसाइट पर सार्वजनिक छुट्टियों से संबंधित ऐसे कई और आदेश भी देखे जा सकते हैं. ईद की छुट्टियों को लेकर संबंधित चिट्ठी वास्तविक लगी. इस पर जहां राज्य सरकार का लोगो ‘बिस्वा-बांग्ला’ मौजूद दिखा. वहीं राज्यपाल के हवाले के साथ अतिरिक्त वित्त सचिव राजशेखर बंदोपाध्याय के हस्ताक्षर भी दिखे. लेकिन जब इस संबंध में बंदोपाध्याय से बात की गई तो उन्होंने साफ किया कि ये उनके हस्ताक्षर नहीं है. उन्होंने साथ ही बताया कि वे वित्त विभाग के राजस्व अनुभाग में कार्यरत हैं जिसका सार्वजनिक छुट्टियां घोषित करने से कोई लेना देना नहीं है. ये वित्त विभाग के ऑडिट ब्रांच की ओर से किया जाता है.’
ये भी देखा गया कि ‘बिस्वा-बांग्ला’ वाला राज्य सरकार का लोगो नियमित सर्कुलर या आदेश में कभी इस्तेमाल नहीं किया जाता. ये बात छुट्टियों की अधिसूचना पर भी लागू होती है.
अगर हम फर्जी अधिसूचना की तुलना सरकारी वेबसाइट्स पर मौजूद किसी वास्तविक अधिसूचना से करें तो और भी कई गड़बड़ी देखी गई. वित्त विभाग की ओर से जारी अधिसूचनाओं में हमेशा चिट्ठी क्रमांक होता है जो ‘F’ के साथ शुरू होता है जिसका आशय फाइनेंस से होता है. फर्जी चिट्ठी में ऐसा नहीं था.
कोलकाता पुलिस शिकायत दर्ज करने के साथ ये जांच कर रही है कि फर्जी चिट्ठी के पीछे कौन हो सकता है और ऐसा करने के पीछे क्या मंशा थी.
यहां ये जानना दिलचस्प है कि ईद पर ऐसी ही पांच छुट्टियों वाली फर्जी चिट्ठी पाकिस्तान में भी सामने आने की ख़बर है. 8 जून की तारीख वाली इस चिट्ठी से पाकिस्तान में भी भ्रम के हालात बने. पाकिस्तान के जिओ न्यूज ने इस चिट्ठी को फर्जी बताते हुए रिपोर्ट प्रकाशित की.
इसके अलावा ममता बनर्जी एक और फर्जी खबर की वजह से भी निशाने पर हैं. सोशल मीडिया पर ये फर्जी खबर अब भी सर्कुलेट हो रही है. इसमें दावा किया गया है कि राज्य सरकार की ओर से एक रिक्तियों के लिए विज्ञापन जारी किया गया है जिसमें कहा गया है कि आवेदनकर्ता सिर्फ मुस्लिम होने चाहिए.
सरकारी नौकरियों में ‘मुस्लिमों के लिए आरक्षण’ को सोशल मीडिया पर दोबारा हाईलाइट किया गया जिससे कि ममता बनर्जी सरकार के कथित अल्पसंख्यक तुष्टिकरण को जाहिर किया जा सके.
लेकिन विज्ञापन को बारीकी से देखने पर पता चलता है कि रिक्ति कोलकाता म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के लिए थी. साथ ही ये रिक्ति मुस्लिम बेरीअल (दफनाना) बोर्ड डिपार्टमेंट से संबंधित थी. कलकत्ता बेरीअल बोर्ड एक्ट, 1889 के मुताबिक ये पद बीते 129 साल से मुस्लिमों के लिए आरक्षित है. संबंधित पद के लिए मुस्लिमों के लिए आरक्षण वास्तव में है लेकिन इसे सोशल मीडिया पर गलत ढंग से प्रचारित किया गया.