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व्यापम घोटाला: प्राइवेट कॉलेज काटते रहे मलाई

निजी मेडिकल कॉलेजों में 721 सीटों पर फर्जीवाड़े के बावजूद  गिरफ्तारियां नहीं, क्या सीबीआइ इनके गिरेबान पर हाथ डालेगी?

व्यापम की जांच के लिए भोपाल पहुंची सीबीआइ टीम व्यापम की जांच के लिए भोपाल पहुंची सीबीआइ टीम
पीयूष बबेले
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  • 20 जुलाई 2015,
  • अपडेटेड 2:31 PM IST

मध्य प्रदेश के बदनाम व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापम) घोटाले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआइ) के हाथ में आने के बाद सभी इसकी निष्पक्ष और तेज जांच की उम्मीद जता रहे हैं. मध्य प्रदेश हाइकोर्ट की तरफ से नियुक्त विशेष जांच दल (एसआइटी) की निगरानी में जांच कर रहे विशेष कार्य बल (एसटीएफ) ने अपनी जांच में अब तक सरकारी मेडिकल कॉलेजों और सरकारी नौकरियों में फिक्सिंग के खेल की पड़ताल की है. इसके अलावा निजी कॉलेजों की मैनेजमेंट कोटे की सीटों को बेचने के खेल यानी डीमेट घोटाले की जांच भी शुरू हो गई है. लेकिन इंडिया टुडे की पड़ताल में पता चला है कि 2009 से 2013 के बीच निजी कॉलेजों में सरकारी कोटे की 721 सीटों को बेचने के मामले की जांच में एसटीएफ ने ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई. इन सीटों पर धांधली की पुष्टि मध्य प्रदेश “प्रवेश एवं शुल्क नियामक समिति (एएफआरसी) ने की थी और अपेलेट अथॉरिटी ने 21 मई, 2015 के अपने आदेश में एएफआरसी की जांच को सही मानकर आगे जांच करने के लिए कहा है. व्यापम घोटाले के इस हिस्से को लेकर न तो अब तक कोई दाखिला रद्द हुआ है और न ही गिरफ्तारी हुई है. इस तरह एसटीएफ ने व्यापम घोटाले के जितने हिस्से की जांच की, उतना ही हिस्सा ठंडे बस्ते में रख छोड़ा है, जिसकी परतें अब सीबीआइ को उघाडऩी होंगी. शीर्ष जांच एजेंसी की चुनौती इसलिए भी बड़ी है क्योंकि सरकार अब तक निजी कॉलेजों की मददगार दिखती रही है.

मध्य प्रदेश के छह निजी कॉलेजों&भोपाल का चिरायु मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल, पीपल्स मेडिकल कॉलेज ऐंड रिसर्च सेंटर और एलएन मेडिकल कॉलेज ऐंड रिसर्च सेंटर, उज्जैन का आर.डी. गारदी मेडिकल कॉलेज, इंदौर का श्री अरविंदो इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज और इंडेक्ट्स मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल ऐंड रिसर्च सेंटर ने अपेलेट अथॉरिटी में एएफआरसी के आदेश को चुनौती दी थी. जांच में इस बात की पुष्टि हुई थी कि निजी कॉलेजों में 2009 से 2013 के बीच दाखिले की आखिरी तारीख यानी 30 सितंबर को बड़े पैमाने पर पीएमटी के जरिए प्रवेश पाए छात्र अपना नाम कटवाते थे और उसी दिन निजी कॉलेज अपनी तरफ से इन सीटों पर नए छात्रों का प्रवेश कर देते थे. नियम के मुताबिक, इन सीटों पर पीएमटी की मेरिट वाले छात्रों को दाखिले का मौका मिलना चाहिए था, लेकिन कॉलेज प्रबंधन ने इस नियम को ताक पर रख मनमाने एडमिशन किए. जांच में यह बात भी सामने आई कि कॉलेजों ने जान-बूझकर ऐसी अपारदर्शी प्रक्रिया अपनाई, ताकि योग्य छात्र काउंसिलिंग के लिए आ ही न सकें.

इस घोटाले के बारे में चौंकाने वाली बात यह है कि जहां पीएमटी में धांधली के जरिए एडमिशन पाए जाने पर व्यापम घोटाले में मेडिकल कॉलेजों के 1,000 से ज्यादा प्रवेश रद्द कर दिए गए और अनुचित लाभ पाने वाले छात्रों, यहां तक कि अभिभावकों के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए गए, वहीं निजी कॉलेजों के मनमाने दाखिलों के मामले में एएफआरसी ने सिर्फ जुर्माने की सिफारिश की है. और निजी कॉलेज इस जुर्माने को भी खत्म कराने की फिराक में हैं. 721 सीटों के गणित को समझाते हुए व्यापम के व्हिसलब्लोवर डॉ. आनंद राय बताते हैं, “दरअसल इन सीटों पर काउंसिलिंग के जरिए वे छात्र सेलेक्ट कराए जाते हैं जो किसी और छात्र के सॉल्वर के तौर पर परीक्षा में बैठते हैं. ये परीक्षा में बैठकर दूसरे छात्र को नकल कराकर पास कराते हैं और खुद भी पास हो जाते हैं. लेकिन चूंकि इन छात्रों को पढ़ाई नहीं करनी है, इसलिए ये लोग कॉलेज मैनेजमेंट के इशारे पर दाखिले की अंतिम तारीख यानी 30 सितंबर को ही सीट खाली करते हैं और बाद में कॉलेज प्रबंधन इन सीटों को 35 से 50 लाख रु. तक में बेच देता है.”

सवाल उठता है कि मध्य प्रदेश सरकार इस पूरे मामले में क्या रुख अपना रही थी? इसका जवाब सितंबर 2014 में मिलता है, जब व्यापम घोटाले की जांच के लिए एसआइटी का गठन हो चुका था और पूर्व शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा जेल जा चुके थे. एमबीबीएस और बीडीएस दाखिलों की नियमावली को सख्त बनाया गया और गड़बड़ी पाए जाने पर कॉलेज के प्रमुख या प्राचार्य के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराने का प्रावधान किया गया. लेकिन 6 सितंबर, 2014 को काउंसिल शुरू होने वाले दिन ही चिकित्सा शिक्षा मंत्री नरोत्तम मिश्र ने एफआइआर के प्रावधान को हटा दिया और इसकी जगह “सख्त वैधानिक कार्रवाई” शब्द डाल दिया. यह जानकारी 9 जनवरी, 2015 को आनंद राय की आरटीआइ अर्जी के जवाब में दी गई. राय का दावा है कि इस दौरान उन पर आरटीआइ अर्जी वापस लेने के लिए दबाव भी डाला गया. मध्य प्रदेश हाइकोर्ट के वकील निखिल तिवारी बताते हैं, “एफआइआर का प्रावधान हटाकर सरकार ने निजी कॉलेजों के कर्ताधार्ताओं को प्रवेश में धांधली में गिरफ्तारी से बचाने का रास्ता खोल दिया. यह बेहद गंभीर मामला है.”

यह इकलौता मौका नहीं है जब नरोत्तम मिश्र निजी कॉलेजों के साथ खड़े थे. 30 अगस्त, 2014 को उन्होंने प्रमुख सचिव (चिकित्सा) का प्रस्ताव पलटते हुए भोपाल के पीपल्स मेडिकल कॉलेज ऐंड रिसर्च सेंटर में 100 सीटें बढ़ाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी. उन्होंने दलील दी कि राज्य में 5,000 मेडिकल सीटें बढ़ाए जाने के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए यह मंजूरी दी जाए. लेकिन प्रमुख सचिव ने जिन दलीलों के आधार पर मंजूरी खारिज की थी वे कम मजबूत नहीं थीं. प्रमुख सचिव ने कहा कि 2010 से 2012 के बीच कॉलेज ने दाखिलों में धांधली की. यही नहीं, 2011 में तो 145 सीटों की मान्यता होने के बावजूद 250 सीटों पर दाखिले करा लिए. भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआइ) ने यहां 96 एडमिशन रद्द करने का निर्देश दिया था. इसके अलावा एएफआरसी ने कॉलेज पर 2.15 करोड़ रु. का जुर्माना भी लगाया था. यानी प्रशासन जिस कॉलेज का प्रमाणपत्र रद्द करने वाला था, शिक्षा मंत्री ने उसी पर नजरे इनायत कर दी. इस बारे में पूछे गए सवालों पर इंडिया टुडे के फोन और एसएमएस संदेशों का मिश्र ने कोई जवाब नहीं दिया.

उधर, चिरायु अस्पताल को लेकर भी आरोपों की कमी नहीं है. पूर्व विधायक पारस सकलेचा का आरोप है कि एसटीएफ के एक डीएसपी ने अस्पताल के एक शीर्ष पदाधिकारी को 600 बार फोन किया, लेकिन उससे आधिकारिक तौर पर कभी पूछताछ नहीं की गई. ग्वालियर के तत्कालीन नगर पुलिस डीएसपी रक्षपाल सिंह के बेटे का नाम जब व्यापम घोटाले में आया तो 8 अगस्त, 2014 को दर्ज कराए अपने बयान में रक्षपाल ने “चिरायु अस्पताल के डॉ. गोयनका” को 14 लाख रु. देने की बात कही थी. इसके बावजूद अब तक चिरायु अस्पताल के मालिकों के साथ सख्ती नहीं की गई है. उधर इंदौर के अरविंदो मेडिकल कॉलेज के सीओओ जीएम खनूजा को जनवरी 2014 में अपने बेटे अभिजीत का गलत तरीके से पीएमटी-2012 में सेलेक्शन कराने के आरोप में गिरफ्तार किया जा चुका है. यह गिरफ्तारी निजी कॉलेज में धांधली करने के आरोप में नहीं हुई है. यानी निजी कॉलेजों का प्रबंध तंत्र अब तक की जांच से निबटने के मामले में सयाना साबित होता रहा है.

ये कुछ प्रमाण व्यापम की अब तक अनछुई और अनसुलझी पहेलियों की तरफ इशारा कर रहे हैं. सीबीआइ ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जिस मुस्तैदी से ने मामले को अपने हाथ में लिया है और जिस तरह जांच एजेंसी भोपाल में अलग दफ्तर बनाकर पूरे मामले को खंगालने वाली है, उसमें निजी कॉलेजों के प्रबंधन के लिए जल्द ही बुरे दिनों की शुरुआत हो सकती है. व्यापम की ये परतें घोटाले की खाई में कई और बड़े नामों को ले आएंगी, इसमें अब ज्यादा संदेह नहीं है. वैसे, इंदौर के आनंद राय और ग्वालियर के आशीष चतुर्वेदी इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा पहले ही खटखटा चुके हैं. अदालत ने केंद्र और राज्य सरकार को इस मामले में नोटिस जारी कर दिया.

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