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वन रैंक, वन पेंशन: कब खत्म होगा यह इंतजार

सशस्त्र बलों के लिए एक रैंक, एक पेंशन लागू करने के वादे की वजह से एनडीए सरकार की विश्वसनीयता दांव पर.

संदीप उन्नीथन
  • ,
  • 01 जून 2015,
  • अपडेटेड 6:04 PM IST

छब्बीस मई को विंग कमांडर सुरेश कार्णिक (सेवानिवृत्त) ने पुणे में 28 मई को होने वाले उस समारोह में भाग लेने से मना कर दिया, जिसमें रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर मुख्य अतिथि थे. 1971 के युद्ध के दौरान पाकिस्तानी ठिकानों पर बमबारी करने के लिए वीर चक्र से सम्मानित 80 वर्षीय विंग कमांडर सैन्य बुजुर्गों के लिए एक रैंक, एक पेंशन लागू करने में पर्रीकर की देरी से नाराज थे. इसी नीति से यह सुनिश्चित होगा कि कार्णिक जैसे बुजुर्ग सैन्यकर्मी को—जो 1983 में सेवानिवृत्त हुए थे—उतनी ही पेंशन मिलेगी, जितनी आज सेवानिवृत्त होने वाले उन्हीं के रैंक के लोगों को मिलती है. कार्णिक ने इंडिया टुडे से कहा, "सशस्त्र बलों के प्रति हमारे नेताओं की नीति 'नाटो' की है." नाटो माने 'नो ऐक्शन, टॉक ओनली.'

ऐसे कई जुमले उस एनडीए के लिए तैयार हैं, जिसने अपने चुनावी घोषणापत्र में एक रैंक, एक पेंशन का वादा किया था. रक्षा मामलों पर संसद की स्थायी समिति के सदस्य और राज्यसभा सांसद राजीव चंद्रशेखर कहते हैं, "एक रैंक, एक पेंशन सशस्त्र बलों के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता का ठोस मुद्दा बन गया है."

पर्रीकर अब तक बहुत दक्षता से यूपीए के जमाने की तीन उलझी गांठों में से दो सुलझा चुके हैं—64,000 सैनिकों वाली माउंटेन स्ट्राइक कोर की संख्या उन्होंने आधी कर दी, क्योंकि यूपीए ने बजट में वृद्धि किए बिना ही इसे मंजूरी दे दी थी. दूसरे, 126 राफेल फाइटर्स की खरीद को घटाकर 36 विमान कर दिया गया. वजह वही—संसाधनों की कमी. यूपीए काल का तीसरा वित्तीय बोझ वाला प्रस्ताव था—1 अप्रैल, 2014 से एक रैंक, एक पेंशन देना. इसका पुनराकलन किया गया और पाया गया कि पिछली सरकार ने इसके लिए बजट में जो 500 करोड़ रु. का प्रावधान किया था, यह उससे कहीं अधिक का प्रस्ताव है. इसकी घोषणा करने में एनडीए की देरी से सशस्त्र बलों के भीतर संदेह पैदा हो रहा है. भारतीय पूर्व सैनिक आंदोलन (आइईएसएम) के अध्यक्ष मेजर जनरल सतबीर सिंह (सेवानिवृत्त) कहते हैं, "जहां तक हमारा संबंध है, यूपीए और एनडीए में कोई अंतर नहीं है."

सच कहें तो पर्रीकर को वह समस्या विरासत में मिली है, जो कई दशक पुरानी है. 1973 के बाद से लगातार हर वेतन आयोग ने पेंशनरों के बीच की खाई को और चौड़ा किया है. नतीजा यह है कि 1996 से पहले अवकाश ग्रहण करने वाले किसी मेजर जनरल को आज उससे भी कम पेंशन मिलती है, जो 1996 के बाद सेवानिवृत्त होने वाले किसी लेफ्टिनेंट कर्नल को मिलती है.
अब तक की सभी सरकारों ने इस तथ्य का हवाला देते हुए इस अंतर को पाटने से इनकार कर दिया कि यह भारी वित्तीय बोझ है और फिर अन्य सेवाओं वाले भी यही मांग करेंगे. पर्रीकर एक रैंक, एक पेंशन को मंजूरी नहीं देने के लिए एनडीए पर हमला करने वाले कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी पर जमकर बरसे. अड़चन पैसों की है, यह इशारा करते हुए पर्रीकर ने एक समाचार एजेंसी से कहा, "राहुल कहते हैं कि उन्होंने 500 करोड़ रु. का प्रावधान किया था. अगर बात 500 करोड़ रु. की हो, तो मैं कल इस पर हस्ताक्षर कर दूंगा."

पिछले साल, रक्षा मंत्रालय ने आकलन किया था कि एक रैंक, एक पेंशन लागू करने के लिए उसे 8,300 करोड़ रु. का हर साल भुगतान करना होगा. पर्रीकर ने एक रैंक, एक पेंशन की वकालत करते हुए सशस्त्र बलों के विशेष हाल का हवाला दिया है. सशस्त्र बलों के 80 फीसदी से अधिक कर्मी 35 साल की उम्र से रिटायर होने लगते हैं, जबकि अन्य सरकारी कर्मचारी 60 साल की उम्र तक सेवा में रहते हैं. इस साल 17 मार्च को रक्षा मंत्री ने फाइल पर हस्ताक्षर कर दिए हैं और इसे वित्त मंत्रालय को भेज दिया है. माना जाता है कि वित्त मंत्रालय ने इस फाइल पर लाल निशान लगा दिया है.

विरोध के आधार नए नहीं हैं. अगर सरकार सेवानिवृत्ति सैन्यकर्मियों को बराबर पेंशन देती है, तो इससे अद्र्धसैनिक बलों की ओर से भी इसी तरह की मांग उठेगी. सूत्र संकेत देते हैं कि एक रैंक, एक पेंशन में देरी इसी वजह से की जा रही है क्योंकि उसका केंद्रीय सरकार के कर्मचारियों के लिए सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के साथ विलय किया जाएगा. इसकी रिपोर्ट सरकार को अक्तूबर तक प्रस्तुत की जाएगी और आयोग 1 जनवरी, 2016 से प्रभाव में आ जाएगा.

एक रैंक, एक पेंशन देने से यूपीए के इनकार के विरोध में 2008 से शुरू होकर अब तक 22,000 पूर्व सैनिक राष्ट्रपति भवन में अपने पदक जमा करा चुके हैं. 2011 में जब राष्ट्रपति भवन ने पदक जमा करना बंद कर दिया, तब से दिल्ली में आइईएसएम के ऑफिस में 10,000 से अधिक पदकों का ढेर लग चुका है. 2014 में जब यूपीए ने एक रैंक, एक पेंशन देने की सांकेतिक सहमति दी तो यह बहुत देरी से उठाया गया बहुत छोटा कदम था. तब तक एनडीए यह समझ चुका था कि पेंशन एक भावनात्मक चुनावी मुद्दा है. पिछले वर्ष अप्रैल में नरेंद्र मोदी ने, जो तब एनडीए के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे, रेवाड़ी हरियाणा में पूर्व सैनिकों की रैली में एक रैंक, एक पेंशन को अपने समर्थन की घोषणा की. इससे बुजुर्ग सैन्यकर्मियों की उम्मीदें फिर से जाग गईं. यही काम जनरल वी.के. सिंह (सेवानिवृत्त) जैसे मंत्रियों के बाद में दिए गए आश्वासनों ने किया.

सतबीर सिंह कहते हैं, "9 दिसंबर, 2014 को उन्होंने हमें आश्वासन दिया कि यह काम 31 जनवरी, 2015 तक हो जाएगा. 1 फरवरी को उन्होंने कहा कि यह 28 फरवरी को हो जाएगा. फिर 2 मार्च को उन्होंने कहा कि यह 31 मार्च को और अंततः 14 अप्रैल को कहा कि 30 अप्रैल को घोषणा हो जाएगी."

आइईएसएम सहित 2008 से एक रैंक, एक पेंशन दिए जाने के लिए संघर्ष कर रहे बुजुर्ग सैन्यकर्मियों के समूहों ने 6 जून को दिल्ली में एक बैठक बुलाई है, जिसमें कार्रवाई की उनकी भावी योजना तय की जाएगी. बुजुर्ग सैन्यकर्मी पहले ही सामाजिक मीडिया में सरकार में मौजूद अपने साथियों—मंत्रियों जनरल वी.के. सिंह और कर्नल आर.एस. राठौड़ और रक्षा संबंधी स्थायी समिति के अध्यक्ष मेजर जनरल बी.सी. खंडूड़ी का मजाक बनाना शुरू कर चुके हैं. सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं, "अगर उन्होंने जल्द घोषणा नहीं की, तो यह देर से मिले न्याय जैसा होगा यानी निरर्थक." इस पर सवाल कोई नहीं उठाता कि एक रैंक, एक पेंशन प्रदान की जाएगी. सवाल एक ही है—कब प्रदान की जाएगी.

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