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संसाधनों के बंटवारे को लेकर आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में ठनी

चंद्रशेखर राव और चंद्रबाबू नायडू की लड़ाई तीखी होती जा रही है, कोई भी झुकने को तैयार नहीं.

अमरनाथ के. मेनन
  • नई दिल्ली,
  • 10 नवंबर 2014,
  • अपडेटेड 4:10 PM IST

यह मध्यकालीन क्षत्रपों की जंग जैसा मामला बन गया है. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव कुछ उसी अंदाज में एक-दूसरे के संसाधनों को हड़पने की कोशिश कर रहे हैं. मामला चाहे बिजली का हो, पानी का, पैसों का, कर्मचारियों का या ऑफिस के लिए जगह का, दोनों को आरोप-प्रत्यारोप का ही रास्ता नजर आ रहा है. वे बच्चों की तरह राज्यपाल ई.एस.एल. नरसिंहन के पास फरियाद लेकर पहुंच जाते हैं.

संसाधनों के बंटवारे की रूपरेखा बनाने में एक-दूसरे का पक्षपात साफ नजर आ रहा है. दोनों एक-दूसरे पर आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम में कुछ प्रावधानों की गंभीर उपेक्षा करने का आरोप लगा रहे हैं. उनका मकसद प्रशासनिक लोगों की भावनाओं को भुनाने के साथ-साथ वोट बैंक को बचाए रखना भी है.

सचाई यह है कि दोनों राज्य पैसे की तंगी से जूझ रहे हैं. दोनों ने एक-एक लाख करोड़ रु. का बजट पेश किया है पर दोनों को ही नहीं पता कि इतना पैसा वे कहां से जुटाएंगे. वे केंद्र की ओर उम्मीद भरी नजरों से देख रहे हैं ताकि उन्होंने चुनावी घोषणा में जो वादे किए थे, उन्हें पूरा किया जा सके. पर बंटवारे के समय न तो पैसे और अन्य संपत्तियों या संसाधनों का मूल्यांकन हो पाया, न ही कर्मचारियों का.

संसाधनों के आंकड़ों की कमी और नकद पैसे की पूरी जानकारी न होने से झगड़े हो रहे हैं. सबसे विचित्र लड़ाई अविभाजित आंध्र प्रदेश बिल्डिंग और अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स वेलफेयर बोर्ड के पैसे को लेकर है. राज्य की इस सबसे अमीर संस्था के पास 1,400 करोड़ रु. हैं. तेलंगाना का दावा है कि आंध्र प्रदेश के अधिकारियों ने बोर्ड के खाते से काफी पैसा चुपके से हस्तांतरित कर दिया है.

30 अक्तूबर को उसके अधिकारियों की शिकायत पर पुलिस ने आंध्र प्रदेश के एक वरिष्ठ अधिकारी को हिरासत में ले लिया. जिन अधिकारियों पर आपराधिक मामले दर्ज हुए हैं, नायडू उनके पक्ष में उतर पड़े हैं और उन्होंने ऐसे किसी हस्तांतरण से इनकार किया है. विभिन्न संस्थानों में हजारों करोड़ रु. जमा हैं, जिनका बंटवारा 58.32: 41.6:8 के अनुपात में होना है.

नौकरशाही का बंटवारा नहीं होने से पैसे के बंटवारे की प्रक्रिया शुरू नहीं हो पाई है. आइएएस, आइपीएस और भारतीय वन सेवा अधिकारियों का बंटवारा नवंबर के अंत तक हो पाएगा. निचले स्तर पर कर्मचारियों का बंटवारा अगली गर्मियों तक पूरा होगा. ऐसे में प्रशासन में निष्क्रियता है.

राव और नायडू समझौते की मेज पर साथ नहीं आते तो हालात और बिगड़ेंगे. दोनों कृष्णा नदी के पानी बंटवारे के मुद्दे को केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती के पास ले गए हैं. राव का दावा है, ‘‘केंद्र से पुनर्गठन आयोग के प्रावधानों को पूरी तरह लागू करवाने की अपेक्षा की जाती है पर वह तेलंगाना के साथ सहयोग नहीं कर रहा. वह तो राज्य से बदले की भावना से काम कर रहा है.’’

तेलंगाना का कहना है कि आंध्र प्रदेश ने 1 जुलाई से 31 अक्तूबर तक पोथीरेड्डीपादु हेड रेगुलेटर से 6,200 करोड़ क्यूबिक फुट (टीएमसी) पानी खींचा है जबकि उसे सिर्फ 34 टीएमसी की इजाजत थी. सिंचाई मंत्री टी. हरीश राव कहते हैं, ‘‘यह आधिकारिक आंकड़ा है कि आंध्र प्रदेश 92 टीएमसी पानी ले चुका है, इसके अलावा उसने हांड्री-नीवा प्रोजेक्ट से भी काफी मात्रा में पानी लिया है.’’ वहीं नायडू का आरोप है कि तेलंगाना कृष्णा नदी प्रबंधन बोर्ड के आदेशों का उल्लंघन कर रहा है.

नायडू कहते हैं, ‘‘इस सीजन में नदी में 78 टीएमसी पानी कम होने की वजह से हालात काफी नाजुक थे लेकिन तेलंगाना बड़ी ढिठाई से श्रीसैलम लेफ्ट बैंक पावर हाउस में बिजली तैयार करता रहा और पानी को समुद्र में फेंकता रहा.’’ नायडू इसे गैर कानूनी बता रहे हैं. उनके राज्य ने 7 नवंबर को केंद्र को रिपोर्ट पेश की. पानी को लेकर विवाद बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है, दोनों राज्यों में सर्दी का मौसम इसी मुद्दे पर गरमाने की उम्मीद है.

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