
अधीर रंजन चौधरी पश्चिम बंगाल में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हैं. वह राज्य की बरहामपुर सीट से सांसद हैं और बीते 20 से बंगाल की सक्रिय राजनीति का हिस्सा हैं. 15 साल की उम्र में स्कूल ड्रॉपआउट चौधरी 1996 में पहली बार विधायक चुने गए थे, जबकि 1999 में पहली बार सांसद बने. वह बंगाल में कांग्रेस के सबसे कद्दावर नेता हैं. इस बार अधीर रंजन चौधरी को बंगाल में कांग्रेस का सबसे प्रमुख चेहरा कहा जाए तो गलत नहीं होगा.
जानिए अधीर रंजन चौधरी के राजनीतिक जीवन से जुड़ी कुछ अहम बातें-
- साल 1956 में 2 अप्रैल को एक बंगाली परिवार में अधीर रंजन चौधरी का जन्म हुआ.
- उनके पिता का नाम निरंजन चौधरी और पत्नी का नाम अर्पिता चौधरी है.
- राजनीति में अधीर का पर्दापण ऐसे समय में हुआ, जब बंगाल में बैलेट के साथ बम और हिंसा राजनीति का अहम हिस्सा बन गए थे.
- उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने मुर्शिदाबाद जिला परिषद चुनाव में कई मोर्चों पर सफलता प्राप्त की.
- बरहामपुर लोकसभा की सीट पर 1951 के बाद कभी कांग्रेस का झंडा नहीं लहराया था, जहां 1999 में अधीर चौधरी ने जीत का परचम लहराया.
- 2004 और 2009 के चुनाव में अधीर चौधरी ने जांगीपुर सीट से प्रणब मुखर्जी के चुनावी अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. दोनों ही वर्ष कांग्रेस को सफलता मिली और अधीर चौधरी पार्टी आलाकमान की नजरों में आए.
- 28 अक्टूबर 2012 को मनमोहन सिंह की सरकार में चौधरी को रेल मंत्रालय में राज्य मंत्री का दर्जा मिला.
- 10 फरवरी 2014 को अधीर रंजन चौधरी पश्चिम बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष बनाए गए.
- 28 जुलाई 2015 को लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने अधरी रंजन चौधरी को अमर्यादित आचरण के लिए लोकसभा से एक दिन के लिए निलंबित किया.
- कांग्रेस के वरिष्ठ नेता चौधरी ने एक विधेयक पर चर्चा के समय स्पीकर के आसन से सटे प्लेटफार्म पर चढ़कर महाजन के सामने नारे लिखी तख्ती दिखाई थी.
- इससे पहले 22 जनवरी 2015 को चौधरी तब विवादों में आए जब उन्हें नई सरकार आने के बाद दिल्ली में दूसरा बंगला अलॉट किया गया. चौधरी ने आरोप लगाया कि उन्हें जो नया बंगला दिया गया है, वहां सुविधाओं की कमी है. साथ ही वहां पहले से ही कोई रह रहा है, इसलिए वह पुराना बंगला खाली नहीं करेंगे.
- बंगला विवाद तब और बढ़ गया जब चौधरी ने आरोप लगाया कि उन्हें न्यू मोती बाग के घर से बिना नोटिस दिए निकाल दिया गया. उन्होंने इस बाबत सुमित्रा महाजन को एक पत्र भी लिखा. बाद में मामला कोर्ट पहुंचा और सुप्रीम कोर्ट ने 5 फरवरी 2016 को पुराने बंगले में बने रहने की उनकी याचिका को खारिज कर दिया. इस बार अधीर रंजन चौधरी के हाथों में बंगाल में पंजे की सफलता का दारोमदार सौंपा गया है.