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देश में नोटबंदी लागू होने का असर क्या लोगों के व्यवहार और सेहत पर हो रहा है? क्या कहना है इस बारे में मनोरोग विशेषज्ञों का? लंबी कतार में लगने के बाद भी एटीएम और बैंकों से कैश नहीं निकाल पाने पर हताशा, अपनी बारी के चक्कर में झगड़ना, सोशल मीडिया पर गुस्से में भड़ास निकालना ही सिर्फ इसकी पहचान नहीं है. पिछले कुछ दिनों में शहर के मनोरोग विशेषज्ञों के पास भी आने वाले ऐसे मरीजों की संख्या बढ़ गई हैं जो बेचैनी, तनाव, अवसाद और नींद नहीं आने की शिकायत कर रहे हैं.
काला धन रखने वालों पर भूकंप के झटके जैसा असर
विशेषज्ञों का कहना है कि जिन्होंने नकदी में काला धन जुटा रखा था उन पर नोटबंदी का वैसा ही असर हुआ है जैसे भूकंप के झटके पर होता है. भूकंप के बाद पहले बेचैनी का स्तर बढ़ता है, फिर कुछ देर बाद वो खलबली में बदल जाता है. विशेषज्ञों की राय में आने वाले दिनों में बेचैनी और तनाव की शिकायत करने वाले मरीजों की संख्या और बढ़ सकती है. जैसे-जैसे बैंकों में पुराने नोटों को बदलने या जमा करने की आखिरी तारीख 30 दिसंबर पास आएगी, वैसे ही लोगों को अपने सारे नोटों को बदलने की चिंता भी बढ़ेगी. डॉक्टरों का ये भी कहना है कि जिन लोगों को कोई आर्थिक नुकसान नहीं भी हुआ है वो भी भविष्य को लेकर चिंतित है. यही वजह है कि मनोरोग विशेषज्ञों के फोन लगातार बज रहे हैं.
अप्रत्याशित स्थिति सामने आने से असुरक्षा का भाव
दिल्ली के मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. संदीप वोहरा का कहना है कि अगर आप आर्थिक तौर पर सुरक्षित होते हैं तो बेचैनी, तनाव, अवसाद जैसी परेशानी कम होती हैं. लेकिन जब कोई अप्रत्याशित स्थिति सामने आ जाए और लोग उसके लिए तैयार नहीं हों तो ये असुरक्षा का बोध देता है. डॉ. वोहरा के मुताबिक ऐसे लोग उनके पास आ रहे हैं जो सवाल कर रहे हैं कि पुरानी करेंसी का क्या करें? नई करेंसी कैसे मिलेगी? लंबी कतारों के झंझट से कैसे निपटें? साथ ही वो बेचैनी, तनाव, अवसाद और नींद नहीं आने की शिकायत कर रहे हैं.
फोर्टिस एस्कॉर्ट्स, ओखला, दिल्ली की मनोरोग विशेषज्ञ डॉ भावना बर्नी का कहना है कि नोटबंदी के फैसले का लोगों की सेहत से कोई सीधा संबंध तो नहीं है. लेकिन अचानक नई स्थिति सामने आने की वजह से लोगों में तनाव बढ़ा है.
पुरानी मेडिकल हिस्ट्री जानना अहम
डॉ. भावना बर्नी के मुताबिक जिस तरह के केस सामने आ रहे हैं उनमें ऐसे भी हैं जिन्होंने सच में काला धन नकदी में रखा हुआ है. और अब उस पैसे के किसी काम का नहीं रह जाने की वजह से उनमें तनाव (स्ट्रैस) बढ़ा है. लेकिन सिर्फ इस वजह से जान पर बन आए, ऐसा नहीं है. पुरानी हेल्थ हिस्ट्री को भी देखना बहुत अहम है. अगर स्वास्थ्य संबंधी पहले से ही जटिलताएं हैं तो स्थिति गंभीर हो सकती है. ऐसे लोग तनाव को किस स्तर तक झेल सकते हैं, इस पर बहुत निर्भर करता है.
डॉ बर्नी का कहना है कि कुछ लोग असुविधा की वजह से भी अवसाद (डिप्रेशन) में जा रहे हैं. उन्हें लग रहा है कि इतनी लंबी कतारें हैं, कैसे स्थिति से निपटा जाएगा, कब सब सामान्य होगा. डॉ बर्नी के मुताबिक ऐसा नहीं कहा जा सकता कि काले धन के खिलाफ उठाए गए कदम की वजह से कोई खुदकुशी कर रहा है या लोगों की जान जा रही हैं. डॉ भावना बर्नी का कहना है कि अगर कोई पहले से ही हृदय रोगी है और वो ज्यादा तनाव लेता है तो 'एक्यूट अटैक' की संभावना बढ़ जाती है.
क्या बरती जाएं सावधानियां?
इस स्थिति से निपटने के लिए लोगों को डॉ. संदीप वोहरा की सलाह है कि जो बात भी आपके दिमाग को परेशान कर रहा है, उसे वो अपने करीबी और भरोसे के लोगों के साथ साझा करें. इसके अलावा किसी अच्छे वित्तीय सलाहकार से भी आर्थिक मुद्दों पर सलाह ले सकते हैं. तनाव और अवसाद के लक्षण अधिक प्रभावी हों तो मेडिकल सहायता ली जाए. डॉ वोहरा का कहना है कि ऐसे लोगों को समझाना चाहिए कि अकेले उन्हीं को इस स्थिति का सामना नहीं करना पड़ रहा. देश के हर नागरिक के लिए ही यही हालात हैं. ये जो भी स्थिति है वो अस्थायी तौर पर है. स्थिरता आते ही सब कुछ पहले जैसा सामान्य हो जाएगा.
डॉ. वोहरा के मुताबिक तनाव का अमीर या गरीब से अधिक लेना देना नहीं होता. जिस व्यक्ति के पास अधिक नकद धन है तो उसे इसे नई करेंसी में बदलने का तनाव है. वहीं कमजोर आर्थिक स्थिति वालों को ये तनाव है कि ऐसी स्थिति अधिक दिन तक चली तो वो जरूरी सामान को खरीदने के लिए कैश का इंतजाम कैसे करेंगे.
कैसे निपटें स्थिति से?
डॉ. भावना बर्नी कहती हैं कि अगर किसी की पहले से मेडिकल हिस्ट्री है तो उसे पहले से ही कुछ एहतियात बरतनी चाहिएं. जैसे उन्हें कतार में खड़ा होना है तो साथ में जरूरी दवाइयां, खाने का सामान, पानी और एनर्जी ड्रिंक्स साथ रखने चाहिएं. साथ ही व्यायाम और मैडिटेशन से भी शारीरिक और मानसिक रूप से खुद को तैयार रखें. डॉ बर्नी के मुताबिक लोगों को स्थिति को अपने ऊपर हावी होने देने से बचना चाहिए. ये हालात किसी व्यक्ति विशेष से नहीं जुड़े बल्कि हर किसी को इसका सामना करना पड़ रहा है. अगर किसी को तनाव या अवसाद जैसी समस्या आ रही है तो उसके लिए फैमिली और दोस्तों की सपोर्ट भी बहुत अहम होती है. उसे ये अहसास कराना जरूरी है कि सब उसके साथ है और सब इस स्तिथि का सामना कर रहे हैं.