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इस साल के पहले दो महीने के अंदर रिजर्व बैंक दो बार बैंक दरों में कटौती कर चुका है. हर बार ये सुनने को मिलता है कि अब लोन का लोड कम होने वाला है और EMI का बोझ कम होगा. 2014-15 का कारोबारी साल खत्म होने को है, लेकिन ब्याज दरों में कटौती की दूर-दूर तक कोई चर्चा नहीं है. ये हाल तब है कि जब खुद रिजर्व बैंक के गवर्नर कह चुके हैं कि बैंकों को ब्याज दरें कम करनी चाहिए.
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी 10 मार्च के सरकारी बैंकों के प्रमुखों के साथ बैठक में कहा था कि लोन पर ब्याज दरों में कटौती की जाए. इसके बावजूद ज्यादातर बड़े बैंक लोन पर ब्याज दरें कम करने को कतई तैयार नहीं हैं.
बैंक ब्याज दर क्यों नहीं घटा रहे?
बैंकों की एक बड़ी मुश्किल बेस रेट की है. ज्यादातर बैंकों ने 10 फीसदी के आसपास का बेस रेट फिक्स कर रखा है. नियमों के मुताबिक वो इससे कम ब्याज पर लोन नहीं दे सकते.
कुछ बैंकों की मजबूरी ये भी है कि मार्केट में अभी लोन की ज्यादा डिमांड नहीं है और अगर ब्याज दर कम हुआ तो उनकी बैलेंस शीट पर असर पड़ेगा. बैंकों पर एनपीए यानी डूबे हुए कर्जों का का प्रेशर बढ़ रहा है. ये वो रकम होती है जो लोन के तौर पर दी गई होती है, लेकिन जिसकी वसूली नहीं हो पाती. दिसंबर 2015 की तिमाही में सरकारी बैंकों का 5.1% और प्राइवेट बैंकों का 2.1% पैसा डूबने की कगार पर है.
बैंकों की दलील है कि रेपो रेट कम होने भर से उनके लिए फंड की लागत कम नहीं हो रही है. अगर लोन पर ब्याज दर कम करना है तो डिपॉजिट्स पर भी ब्याज कम करना पड़ेगा.
मजबूरी या बहानेबाजी?
कई लोग मान रहे हैं कि बेस रेट जैसे तर्क कोरी बहानेबाजी हैं. असलियत ये है कि बैंकों ने कंपीटिशन की जगह आपस में साठगांठ कर ली है. वो अपने फायदे के लिए जानबूझकर ग्राहकों को कटौती का फायदा नहीं दे रहे हैं. अगर बैंकों का फाइनेंशियल मैनेजमेंट ठीक नहीं है तो इसकी सजा आम ग्राहकों को क्यों दी जा रही है? देश के विकास दर के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए कम ब्याज दर होना जरूरी है और बैंक इसमें सहयोग नहीं कर रहे हैं.
बैंक आखिर कब घटाएंगे ब्याज दर?
ये सवाल हर किसी के दिमाग में आ रहा है कि अगर अपना घाटा पाटने के लिए बैंक आरबीआई की कटौती का फायदा आम ग्राहकों को नहीं दे रहे तो ऐसा कब तक चलता रहेगा? 7 अप्रैल को रिजर्व बैंक की तिमाही समीक्षा तक राहत की उम्मीद करना बेकार है. इसके बाद भी ब्याज दरों में कटौती के आसार कम ही हैं, क्योंकि आने वाले दिनों में महंगाई बढ़ने के आसार हैं.
देश के बड़े इलाके में बेमौसम बारिश की वजह से रबी की फसल खराब हो चुकी है. बैंकों की ओर से बयान में ये कहा गया है कि 7 अप्रैल को समीक्षा के बाद ब्याज दरों में 10 से 20 बेसिस प्वॉइंट की कटौती हो सकती है. इसका भी मतलब यही हुआ कि ज्यादातर बैंक कतई मूड में नहीं हैं कि रिजर्व बैंक की ओर से मिली रियायत का पूरा फायदा आम ग्राहकों तक पहुंचाया जाए. अगर ब्याज में कोई कटौती होती भी है तो वो अनुपात से कम और दिखावे के लिए ही होगी.