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भारतीय फिल्म जगत के दिग्गज संगीत निर्देशक और कम्पोजर नौशाद अली साहब का निधन 2006 में 05 मई को हुआ था. वे ऐसे संगीतकार माने जाते थे, जिन्होंने बेमिसाल संगीत के साथ लता मंगेश्वर और मोहम्मद रफी जैसे हीरे भी दिए हैं.
जानते हैं उनसे जुड़ी कुछ बातें.
1. नौशाद का जन्म 25 दिसम्बर 1919 को लखनऊ में मुंशी वाहिद अली के घर में हुआ था.
2. वह 17 साल की उम्र में ही अपनी किस्मत आजमाने के लिए मुंबई के लिए निकल गए.
3. उन्हें पहली बार स्वतंत्र रूप से 1940 में 'प्रेम नगर' में संगीत देने का अवसर मिला.
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4. उन्होंने छोटे पर्दे के लिए 'द सोर्ड ऑफ टीपू सुल्तान' और 'अकबर द ग्रेट' जैसे धारावाहिक में भी संगीत दिया.
5. आज जो क्लासिकल म्यूजिक इस्तेमाल किया जाता है. उसका श्रेय उन्हें ही जाता है.
6. संगीतकार बनने से पहले वह हारमोनियम की मरम्मत कर घर चलाया करते थे.
7. 60 साल की उम्र तक वह 65 से ज्यादा फिल्मों के लिए गीत कम्पोज किए.
8. फिल्म जगत का सबसे बड़ा अवार्ड 'दादा साहेब फाल्के अवार्ड' से उन्हें 1982 में सम्मानित किया गया. वहीं साल 1992 में उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया.
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9. नौशाद साहब को अपनी आखिरी फिल्म 'अकबर खां की ताजमहल' के सुपर फ्लॉप होने का बेहद अफसोस था.
10. लेकिन जब मुगले आजम को रंगीन किया गया तो उन्हें इस बात की बेहद खुशी थी.
11. मदर इंडिया, दीवाना, दिल्लगी, दर्द, दास्तान, शबाब, बाबुल, मुग़ल-ए-आज़म, दुलारी, शाहजहां, लीडर, संघर्ष, मेरे महबूब, साज और आवाज, दिल दिया दर्द लिया, राम और श्याम, गंगा जमुना, सहित अन्य कई फिल्मों में उन्होंने अपने संगीत से लोगों को झूमने पर मजबूर किया.
12. यह बात कम लोगों को ही मालूम है कि नौशाद साहब शायर भी थे और उनका दीवान 'आठवां सुर' नाम से प्रकाशित हुआ.
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13. 5 मई को 2006 को इस दुनिया को अलविदा कह गए नौशाद साहब को लखनऊ से बेहद लगाव था और इससे उनकी खुद की इन पंक्तियों से समझा जा सकता है-
'रंग नया है लेकिन घर ये पुराना है
ये कूचा मेरा जाना पहचाना है
क्या जाने क्यूं उड़ गए पंक्षी पेड़ों से
भरी बहारों में गुलशन वीराना है'
14. नौशाद अली की कुछ खास शायरी
'सामने उस के एक भी न चली
दिल में बातें हजार ले के चले'
15.नौशाद के कुछ यादगार गाने.
नन्हा मुन्ना राही हूं.
ये कौन आाया.
आवाज दे कहां है.
मोहे पनघट पे.
सुबह दिन आयो.
ओ दुनिया के रखवाले.
प्रेम जोगन बन के.