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केदारनाथ के पुनर्निमाण का मुद्दा वैज्ञानिकों और पंडितों की मांग के बीच फंसा

केदारनाथ में पुनर्निर्माण का मसला बना सरकार के लिए गले की हड्डी.वैज्ञानिकों और पंडितों की मांग के बीच फंसा केदारनाथ का पुनर्निमाण.

महेश पांडे
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  • 30 सितंबर 2014,
  • अपडेटेड 3:46 PM IST

केदारनाथ में पुनर्निर्माण का मसला सरकार के लिए गले की हड्डी से कम नहीं है. इस बाबत नेताओं, विधायकों से लेकर स्थानीय तीर्थपुरोहित तक सबकी भिन्न राय है. हालांकि मुख्यमंत्री हरीश रावत लगातार सार्थक प्रयास करते हुए दिखने की कोशिश में हैं, लेकिन यहां की विधायक और अब केदारनाथ आपदा पुनर्निर्माण की संसदीय सचिव बनाई गई शैलारानी रावत उनके प्रयासों को नौटंकी बताकर खारिज कर रही हैं. पुनर्निर्माण के सवाल पर उन्होंने अपनी ही सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है. केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती पिछले दिनों अपने दल-बल समेत उत्तराखंड पहुंचकर मुआयना कर आईं और इस बारे में अपनी राय भी दे दी.

प्रदेश सरकार ने पुनर्निर्माण और पुनर्वास के लिए सेवानिवृत्त जज की अध्यक्षता में न्यायिक आयोग गठित करने का फैसला किया है. सरकार का कहना है कि इस काम में वैज्ञानिकों की राय को प्राथमिकता दी जाएगी, जबकि उमा भारती कह रही हैं कि वैज्ञानिक राय के साथ तीर्थपुरोहितों के हितों को भी तरजीह मिलनी चाहिए.

शैलारानी केदारनाथ के रास्ते में पडऩे वाले ध्वस्त हो चुके पड़ावों को फिर से आबाद करने की मांग कर रही हैं. उन्होंने अपनी ही सरकार पर हमला बोलते हुए कहा,  “केदारनाथ से लगी केदारघाटी के लोगों की त्रासदी अन्य जगहों की त्रासदी से जोड़कर नहीं देखी जा सकती. उनका रोजगार, खेती-बाड़ी और व्यवसाय छिन गया है.  रावत ने आपदा के बाद किए गए सरकारी सर्वेक्षणों को भी गलत करार दे दिया है. ”

केदारनाथ के प्रभारी मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत कहते हैं, “हां तक आपदा में बह चुकी केदारपुरी को पुरानी जगह बसाने का मुद्दा है तो यह संभव नहीं है. ” सब बह चुका है. पहले जहां जमीन थी, वहां अब कुछ नहीं है.ज्ज् लेकिन स्थानीय तीर्थपुरोहित आदि केदारपुरी को पुरानी जगह पर बसाए जाने के मुद्दे पर ही अड़े हुए हैं. केदार मंदिर के तीर्थपुरोहित 50 वर्षीय प्रदीप बगवाड़ी कहते हैं, “आपदा के इतने दिन गुजर जाने के बाद भी सरकार के पास हमें फिर से बसाने की कोई ठोस योजना नहीं है. हमारे लिए रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है. सरकार तो बस इतना करे कि कहीं और ले जाने की बजाए हम जहां हैं, वहीं बसाने का इंतजाम कर दे. लेकिन वैज्ञानिकों की रिपोर्ट इस बात की इजाजत नहीं देती कि केदारपुरी को पुरानी जगह पर ही बसाया जाए. शैलारानी ने अलग मोर्चा खोल रखा है. उनकी मांग है, “पुनर्निर्माण के कार्य में तीर्थपुरोहितों और पंडितों की राय को महत्व दिया जाए. ”

स्थानीय लोग निर्माण की कोई योजना न होने  की शिकायत कर रहे हैं, जबकि मुख्यमंत्री कहते हैं,  “सरकार के पास निर्माण कार्य का पूरा खाका तैयार है. हम अगले वर्ष की चारधाम यात्रा शुरू होने से पहले ही निर्माण कार्य पूरा करना चाहते हैं. ” नई योजना में मंदाकिनी और सरस्वती नदियों के बीच ड्रेनेज सिस्टम तैयार करने और मंदिर की सुरक्षा के लिए त्रिस्तरीय सुरक्षा दीवार बनाई जानी है. सुरक्षा की दृष्टि से केदारनाथ में प्रवेश के लिए बनाए गए पुल से लेकर मंदिर के बीच कोई अवरोध न किए जाने और इसे खुले गलियारे के रूप में संरक्षित करने की बात कही गई है. मंदिर के दर्शनार्थ आने वाले श्रद्घालुओं की सुरक्षा के लिए मंदिर के चारों तरफ सुरक्षित परिसर बनाना योजना में शामिल है. वैज्ञानिकों ने मंदिर के आसपास हर तरह के निर्माण कार्य को प्रतिबंधित करने की सलाह दी है. बगवाड़ी इसका विरोध करते हुए कहते हैं, “मंदिर के आसपास निर्माण को पूरी तरह प्रतिबंधित कैसे कर सकते हैं. कितने लोगों का रोजगार उस पर निर्भर है. ”

इतने अंतर्विरोधों के चलते सरकार इस मुद्दे को अभी तक सुलझ नहीं सकी है. मुख्यमंत्री के पास बीच-बचाव करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग की रिपोर्ट आने के दो महीने बाद भी वे ये कहने को मजबूर हैं, “वैज्ञानिकों की राय के मद्देनजर स्थानीय तीर्थपुरोहितों और व्यवसायियों समेत सभी के हितों का ध्यान रखा जाएगा.” जबकि तथ्य यह है और पहले भी ये बातें मीडिया की सुर्खी बन चुकी हैं कि अगर सरकार ने केदारनाथ के बारे में 2004 में आई वैज्ञानिक रिपोर्टों को तरजीह दी होती तो यह हादसा ही न होता. ऐसे में सरकार इतनी बड़ी घटना के बाद दोबारा ऐसी अनदेखी नहीं कर सकती.  

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