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Who is Irfan Habib? केरल के गर्वनर को बोलने से रोकने के मामले में चर्चा में हैं

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से जुड़े रहे इतिहासकार इरफान हबीब द्वारा कुन्नूर में केरल के गवर्नर आरिफ मोहम्मद खान को सीएए व एनआरसी के पक्ष में स्पीच देने से रोकने के मामले ने तूल पकड़ लिया है. जानें- कौन हैं इतिहासकार इरफान हबीब.

इरफान हबीब इरफान हबीब
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 31 दिसंबर 2019,
  • अपडेटेड 8:22 AM IST

  • अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से जुड़े रहे हैं इतिहासकार इरफान हबीब
  • प्राचीन और मध्यभारत के इतिहास पर रहा है हबीब का अध्ययन

सीएए (नागरिकता संसोधन कानून) को हो रहे विरोध प्रदर्शन के बीच इतिहासकार इरफान हबीब चर्चा में हैं. जानकारी के अनुसार केरल के कुन्नूर में एक प्रोग्राम के दौरान केरल के गवर्नर और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष रहे आरिफ मुहम्मद खान सीएए और एनआरसी के पक्ष में बोल रहे थे. उसी समय इतिहासकार इरफान हबीब ने उन्हें मना किया और कहा कि ये गलत है. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से जुड़े रहे इतिहासकार इरफान हबीब द्वारा कुन्नूर में केरल के गवर्नर आरिफ मोहम्मद खान को सीएए व एनआरसी के पक्ष में स्पीच देने से रोकने के मामले ने तूल पकड़ लिया है. जानें- कौन हैं इतिहासकार इरफान हबीब.

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साल 1931 में जन्मे भारतीय इतिहासकार इ‍रफान हबीब पद्म भूषण से सम्मानित हैं. उन्होंने प्राचीन और मध्यभारत के इतिहास पर अध्ययन किया है. वो हिंदुत्व और मुस्लिम सांप्रदायिकता के खिलाफ कड़े रुख के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने 1556-1707 एग्रेरियन सिस्टम ऑफ मुगल इंडिया (Agrarian System of Mughal India) सहित कई किताबें लिखी हैं.

इरफान का जन्म भारतीय मुस्लिम परिवार में हुआ था. उनके पिता मोहम्मद हबीब मार्क्सवादी इतिहासकार और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के विचारक थे. इरफान हबीब की पत्नी सायरा हबीब अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर थीं. वहीं इरफान के दादा मोहम्मद नसीम बैरिस्टर और कांग्रेस पार्टी के सदस्य थे. इरफान हबीब के तीन बेटे और एक बेटी है.

इरफान ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की थी. वहां से लौटकर एएमयू में शिक्षक बन गए. साल 1969-91 तक अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में वो इतिहास के प्रोफेसर थे. वर्तमान में AMU के इतिहास विभाग में प्रोफेसर एमेरिटस के रूप में नियुक्त हैं. उन्होंने साल 1991 में ऑक्सफोर्ड में राधाकृष्णन व्याख्यान दिया था.

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हबीब ने प्राचीन भारत के ऐतिहासिक भूगोल, भारतीय प्रौद्योगिकी के इतिहास, मध्यकालीन प्रशासनिक और आर्थिक इतिहास, उपनिवेशवाद और भारत पर इसके प्रभाव और इतिहास लेखन पर काम किया है.

अमिया कुमार बागची ने हबीब को "भारत के दो सबसे प्रमुख मार्क्सवादी इतिहासकारों में से एक" के रूप में वर्णित किया है. साथ ही बारहवीं और अठारहवीं शताब्दी के बीच भारत के सबसे महान जीवित मार्क्सवादी इतिहासकारों में से एक कहा है.

मिले हैं ये सम्मान

साल 1968 में छह जवाहरलाल नेहरू फेलोशिप

साल 1982 में वातुमुल पुरस्कार (संयुक्त रूप से तपन राय चौधरी के साथ)

साल 2005 में पद्म भूषण

साल 2016 में यश भारती

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