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नोटबंदी का फायदा उठाने से यूं चूक गए विपक्षी दल!

जब तक विपक्ष खुलकर इसके खिलाफ आया तब तक बहुत देर हो चुकी थी, यही वजह है कि मोदी सरकार के ढाई साल के कार्यकाल के दौरान विरोध के इसे सबसे बड़े मौके को भुनाने में विपक्ष चूक गया.

नोटबंदी पर सबसे मुखर रहे केजरीवाल और ममता नोटबंदी पर सबसे मुखर रहे केजरीवाल और ममता
विजय रावत
  • नई दिल्ली,
  • 29 दिसंबर 2016,
  • अपडेटेड 2:01 PM IST

नोटबंदी के ऐलान के 50 दिन पूरे हो चुके हैं. 8 नवंबर की रात 8 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब इस बात का ऐलान किया कि अब 500 और एक हजार के पुराने नोट वैध करेंसी नहीं रहेंगे तो आम जनता के साथ-साथ विपक्ष भी हैरान रह गया. हालत ये थी कि आमतौर पर हर छोटी-बड़ी घटना पर तुरंत प्रतिक्रिया देने वाले विपक्षी दल और नेता काफी समय तो फैसले को समझने और उसपर अपना स्टैंड तय करने में लगे रहे. मोदी के ऐलान के बाद मीडिया में जनता की ओर से जो सकारात्मक प्रतिक्रियाएं आईं उसने भी इस फैसले का सीधे-सीधे विरोध करने से विपक्ष को रोके रखा. बाद में जब तक विपक्ष खुलकर इसके खिलाफ आया तब तक बहुत देर हो चुकी थी, यही वजह है कि मोदी सरकार के ढाई साल के कार्यकाल के दौरान विरोध के इसे सबसे बड़े मौके को भुनाने में विपक्ष चूक गया.

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सधी रही नोटबंदी पर नेताओं की पहली प्रतिक्रिया
नोटबंदी का पहले दिन से विरोध करने वालों की बात करें तो सबसे मुखर आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तथा तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी रहीं. दूसरी ओर कांग्रेस नोटबंदी का विरोध करे या नोटबंदी में जनता के लिए और ज्यादा राहतों की मांग करे इसे लेकर कन्फ्यूज नजर आई. राहुल गांधी ने 8 नवंबर के ऐलान के बाद अपने सबसे पहले ट्वीट्स में पीएम मोदी पर छोटे किसानों, दुकानदारों, गृहिणियों की अनदेखी करने का आरोप लगाया और सवाल पूछा कि आखिर कैसे एक हजार के नोट बंद कर दो हजार के नोट शुरू करने से करप्शन खत्म होगा.

अरविंद केजरीवाल ने इससे आगे जाकर मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि बीजेपी नेताओं और कुछ कॉरपोरेट्स को पहले से इस नोटबंदी का पता था. उन्होंने पेटीएम जैसी कंपनियों के विज्ञापन पर पीएम के फोटो को लेकर सवाल उठाए. ममता बनर्जी ने इस पूरे फैसले को ही गलत बताते हुए सीधे-सीधे इसे वापस लेने की मांग की. बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल यूनाइटेड के अध्यक्ष नीतीश कुमार ने सबको चौंकाते हुए पीएम मोदी के इस कदम का स्वागत किया. बाकी दलों की बात करें तो उनकी प्रतिक्रिया नपी-तुली ही रही.

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ममता सबसे मुखर, मगर नीतीश से मिला झटका
नोटबंदी के खिलाफ खुलकर बोलने से विपक्षी दल बचते रहे क्योंकि उन्हें डर था कि पीएम ने जिस तरह इस फैसले को करप्शन, ब्लैकमनी, नकली नोट और टेरर फंडिंग की समस्या पर प्रहार बताया है, इसका विरोध उन्हें भ्रष्टाचारियों के समर्थन में खड़ा दिखा सकता है. यही वजह है कि ज्यादातर राजनीतिक दल और नेता नोटबंदी के विरोध के बजाय इसे लागू करने के तरीके पर सवाल उठाते दिखे. सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने जहां नोट जमा करने की लिमिट बढ़ाने पर जोर दिया तो एनसीपी जैसी पार्टियों ने सहकारी बैंकों के जरिए किसानों को जल्द से जल्द राहत पहुंचाने की मांग रखी. कुल मिलाकर ज्यादातर राजनीतिक दल नोटबंदी को लेकर अपना स्टैंड साफ नहीं कर पाए. ममता बनर्जी ने 20 नवंबर को चेतावनी दी कि पीएम तीन दिन के भीतर इस फैसले को वापस लें वर्ना वे देशभर में आंदोलन करेंगी. लेकिन ममता के आंदोलन की ये धमकी फुस्स साबित हुई क्योंकि पश्चिम बंगाल के बाहर हुई उनकी रैलियों में भीड़ नहीं जुटी. पटना में तो रोड शो के दौरान उन्होंने खिसियाकर नोटबंदी के समर्थन के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को गद्दार तक कह दिया.

दबाव नहीं बना पाईं केजरीवाल की रैलियां
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुखर विरोधी माने जाते हैं. उन्होंने नोटबंदी के खिलाफ ममता बनर्जी के साथ आजादपुर मंडी में बड़ी रैली की. साथ ही वे ममता के साथ धरना देने के लिए रिजर्व बैंक के दफ्तर के सामने भी पहुंच गए. केजरीवाल ने भी नोटबंदी के खिलाफ रैलियां करने का ऐलान किया. दिल्ली और पंजाब के अलावा यूपी में उनकी रैलियां खास रहीं. यूपी में अगले कुछ हफ्ते में विधानसभा चुनाव होने हैं. मेरठ, लखनऊ और वाराणसी की उनकी रैली में कुछ भीड़ भी जुटी लेकिन वे अकेले सरकार पर कोई दबाव बनाने में नाकाम रहे.

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राहुल के गुस्से पर भारी कन्फ्यूजन
राहुल गांधी ने नोटबंदी को मोदी सरकार पर हमले के लिए इस्तेमाल करने की कोशिश की. उन्होंने सरकार पर अपने कॉरपोरेट दोस्तों को फायदा पहुंचाने, विजय माल्या को भगाने और गरीबों-किसानों को परेशान करने के आरोप लगाए लेकिन बीजेपी उनके हमले को लेकर सतर्क नजर आई और उनके हर आरोप के बाद बीजेपी के प्रवक्ताओं ने मीडिया में आकर पलटवार किया. कांग्रेस के लिए असहज स्थिति तब हो गई जब राहुल ने बयान दिया कि नोटबंदी के फैसले के बारे में खुद वित्त मंत्री अरुण जेटली को भी नहीं पता था. बीजेपी ने राहुल के इस बयान को लेकर उनपर कन्फ्यूज होने का आरोप लगाया. क्योंकि इससे पहले राहुल कह चुके थे कि पीएम के इस फैसले के बारे में उनके कॉरपोरेट दोस्तों को पता था.

संसद ठप मगर बाहर एकता फ्लॉप
नोटबंदी को लेकर विपक्ष के पास अपनी एकता दिखाने का मौका संसद के शीतकालीन सत्र में आया. इस दौरान विपक्ष संसद के दोनों सदनों को ठप करने में तो कामयाब रहा लेकिन उसमें कोई एकता नहीं बन पाई जिससे वो सरकार के खिलाफ कोई बड़ा आंदोलन छेड़ सके. यहां तक कि 28 नवंबर को जब नोटबंदी को लेकर भारत बंद करने की बात सामने आई तो विपक्ष बंटा दिखा. कांग्रेस ने इसे महज जनाक्रोश दिवस के रूप में मनाया. नीतीश कुमार की जेडीयू ने विरोध प्रदर्शन में शामिल होने से भी इनकार कर दिया. ममता ने विरोध मार्च निकाला और केजरीवाल भी बंद के समर्थन में नहीं दिखे. कुल मिलाकर सत्तारूढ़ बीजेपी को विपक्ष ने चुटकी लेने का मौका दिया. संसद खत्म होने के बाद राहुल गांधी की पीएम मोदी से अकेले मुलाकात के चलते राष्ट्रपति से मिलने जाने वाले विपक्ष के प्रतिनिधिमंडल से चार बड़ी पार्टियां गायब रहीं. उसके बाद सोनिया गांधी की पहल पर 27 दिसंबर को विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश की गई लेकिन इसमें भी जनता दल (यू), समाजवादी पार्टी, लेफ़्ट और एनसीपी जैसे दूसरे विपक्षी दल शामिल नहीं हुए. आज जबकि नोटबंदी के 50 दिन पूरे हो चुके हैं तब विपक्ष के हाथ इस मुद्दे को लेकर ज्यादा कुछ नहीं है.

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