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यूपी चुनावः बीजेपी की कैंडिडेट लिस्ट में क्यों हो रही है देरी?

केशव प्रसाद मौर्य ने जब बीजेपी के यूपी प्रदेशाध्यक्ष पद की कुर्सी संभाली थी तभी दावा किया था कि पार्टी जल्द ही उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया शुरू कर देगी।

बीजेपी की लखनऊ रैली में पीएम मोदी बीजेपी की लखनऊ रैली में पीएम मोदी
विजय रावत
  • नई दिल्ली,
  • 02 जनवरी 2017,
  • अपडेटेड 4:01 PM IST

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का बिगुल किसी भी समय फूंका जा सकता है. बीजेपी की ओर से उसके सबसे बड़े स्टार प्रचारक खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में रैलियों का सिलसिला आरंभ कर दिया है लेकिन पार्टी की ओर से बार-बार दावे किए जाने के बावजूद अब तक प्रत्याशियों की लिस्ट फाइनल न कर पाना सवाल खड़े कर रहा है. कांग्रेस अब भी समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन के इंतजार में अपने उम्मीदवारों की लिस्ट लटकाए हुए हैं तो समाजवादी पार्टी में मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव की ओर से दो-दो लिस्ट सामने आ चुकी हैं.

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केशव प्रसाद मौर्य ने जब बीजेपी के यूपी प्रदेशाध्यक्ष पद की कुर्सी संभाली थी तभी दावा किया था कि पार्टी जल्द ही उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया शुरू कर देगी. बाद में खबर आई कि पार्टी अक्टूबर में अपने प्रत्याशियों के नाम का ऐलान कर देगी ताकि उन्हें चुनाव की तैयारियों के लिए पर्याप्त वक्त मिल सके. पार्टी ने बहुत पहले कैंडीडेट के सेलेक्शन के मानक तय कर दिए थे लेकिन अब जबकि चुनाव की घोषणा किसी भी वक्त हो सकती है, बीजेपी की लिस्ट सामने नहीं आ पाई है.

जातीय समीकरण साधकर लिस्ट तैयार करना चुनौती
उत्तर प्रदेश में इस समय भारतीय जनता पार्टी के 47 विधायक हैं. माना जा रहा है कि सभी मौजूदा विधायकों को पार्टी की ओर से एक बार फिर टिकट देकर मैदान में उतारा जाएगा लेकिन बाकी की 350 से ज्यादा सीटों पर उसके कैंडीडेट चुनाव के कुछ हफ्ते पहले तक घोषित नहीं हो पाए हैं. माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री की आज की लखनऊ रैली के बाद पार्टी की पहली लिस्ट सामने आ सकती है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने हाल ही में एक रैली में संकेत दिया था कि पार्टी इस बार युवाओं को ज्यादा टिकट देगी लेकिन इससे इतर उसकी सबसे बड़ी चुनौती यूपी में जातीय समीकरणों को साधते हुए ऐसे उम्मीदवार खोजना है जो देश के इस सबसे बड़े सूबे की सत्ता से उनका वनवास खत्म कर सके.

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सपा-बसपा के बागियों पर नजर
दूसरी पार्टियों की तरह जहां बीजेपी भी जीत का दम रखने वाले कैंडीडेट पर ही दांव खेलेगी वहीं उसकी नजर सपा और बसपा के उम्मीदवारों की फाइनल लिस्ट पर भी है. यूपी के हर चुनाव में बागी उम्मीदवार काफी अहम भूमिका निभाते हैं. सपा और बसपा के वे उम्मीदवार जो जीत का दम रखते हैं लेकिन टिकट पाने में विफल रहे हैं बीजेपी उन्हें उम्मीदवार के तौर पर उतार सकती है. उसकी लिस्ट में देरी की सबसे बड़ी वजह यही बताई जा रही है. एक अंग्रेजी अखबार के मुताबिक बीजेपी का फोकस लिस्ट से ज्यादा पीएम मोदी की रैली और उसके बाद किसान गोष्ठियों पर ज्यादा है.

 

बाकी पार्टियां भी फंसी है लिस्ट फाइनल करने के फेर में
यूपी में सबसे ज्यादा विधायकों वाली सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी तो उम्मीदवारों की लिस्ट के चक्कर में दो फाड़ हो गई है तो दूसरी ओर कांग्रेस सपा के साथ अपने संभावित गठबंधन के इंतजार में अपनी लिस्ट लटकाए हुए हैं. गौरतलब है कि कांग्रेस ने सबसे पहले यहां अपना सीएम कैंडीडेट घोषित किया था और 15 साल दिल्ली की मुख्यमंत्री रही शीला दीक्षित को अपना नेता बताया था. मुख्य विपक्षी दल बहुजन समाज पार्टी ने सबसे पहले अपने उम्मीदवार फाइनल किए थे लेकिन उसके बाद से वो उस लिस्ट में इतने बदलाव कर चुकी है कि उसकी ओर से भी अभी फाइनल लिस्ट का ही इंतजार है.


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