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डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा से भारतीय किसान क्यों हैं नराज, आखिर ट्रंप को भारत के कृषि बाजार में इतनी रुचि क्यों है? इन सवालों के जवाब जानने के लिए सबसे पहले जरूरी है कि हम अमेरिका के किसानों और कृषि क्षेत्र की लगातार बदतर होती स्थिति को ठीक से समझें-
भारत के बुंदेलखंड की राह पर अमेरिका का विश्कॉन्सिन स्टेट
अमेरिका में पिछले साल नवंबर को विश्कॉन्सिन स्टेट में कुछ ऐसा हुआ जो दो दशकों के रिकॉर्ड को तोड़ने वाला था. दरअसल, यहां के मौजूदा कृषि सचिव ब्रेड पैफ को इस पद पर बने रहने के लिए पर्याप्त वोट नहीं मिले. ऐसा वहां 1997 से नहीं हुआ था की मौजूदा कृषि सचिव को हटाने की नौबत आ जाए. वोट न मिलने की वजह किसानों की आत्महत्याओं के बढ़ते आंकड़े थे. लेकिन जब पैफ को पर्याप्त वोट नहीं मिले तो उन्होंने आरोप लगाया कि प्रशासन ने उनके लाख अनुरोध करने के बाद भी किसानों की आत्महत्या पर लगाम लगाने के लिए जरूरी बजट जारी नहीं किया.
रिपब्लिकन ने इस मुद्दे पर डेमोक्रेटिक सरकार पर जमकर निशाना साधा. दरअसल, वोट न मिलने की वजह विश्कॉन्सिन स्टेट में 2011 से लेकर 2017 तक कृषि आय में आई भारी गिरावट है. 2017 में इस स्टेट में 915 किसानों ने आत्महत्या की.
कृषि संकट से जूझ रहा पूरा अमेरिका
यह तस्वीर अमेरिका के किसी एक स्टेट की नहीं बल्कि पूरे देश की है. अमेरिका में इन दिनों किसानों की मौत और उनकी घटती आय एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है. यह खबर भारत में सालों से त्रासदी झेल रहे कृषि क्षेत्र की तरह ही है. अमेरिकन कृषि विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक 2013 से लेकर अब तक वहां कमोडिटी कीमतों में उठापटक के चलते कृषि आय में 49 फीसद की कमी आ चुकी है. यहां तक कि यहां के कृषि विभाग के मुताबिक मौजूदा समय में 50 फीसद किसान कृषि लागत से भी कम आय निकाल पा रहे हैं.
भारत की तरह यहां पर भी किसान खेती छोड़कर दूसरे कामों की तरफ रुख कर रहे हैं. चीन-अमेरिका व्यापार युद्ध इस संकट को लगातार बढ़ा रहा है. अमेरिका के लिए चीन अन्य चीजों के साथ कृषि उत्पादन के निर्यात का एक बड़ा बाजार था. लेकिन दोनों देशों के बीच चल रही रस्साकशी ने अमेरिकी किसानों के लिए कठिनाई पैदा कर दी है.
बेबुनियाद नहीं किसानों की चिंता
फरवरी के आखिर में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत दौरे पर आ रहे हैं. कृषि संकट से जूझ रहे भारत के किसानों की चिंता का कारण अमेरिका में गहराता कृषि संकट ही है. दरअसल, अमेरिकी राष्ट्रपति अपने कृषि क्षेत्र को उबारने के लिए वहां के कृषि उत्पादों के निर्यात के लिए एक नए बाजार की खोज में हैं. अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के चलते चीन जैसा बाजार अमेरिका के हाथ से जा चुका है. तो क्या भारतीय किसानों की आशंका का कोई आधार है?
13 नवम्बर 2019 को भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल और अमेरिका के व्यापार प्रतिनिधि रोबर्ट लाइटव्हाइजर के बीच एक मुलाकात हुई थी, जिसमें भारत-अमेरिका के बीच व्यापार समझौते पर शुरुआती बातचीत हुई थी.
अगर इस व्यापारिक समझौते पर हस्ताक्षर होते हैं तो दुग्ध उत्पादों, अखरोट, सेब, बादाम, गेहूं, मक्का, सोयाबीन, मुर्गी पालन उत्पादों का अमेरिका से आयात बहुत कम शुल्क पर भारत में किया जाएगा. ऐेसे में समझा जा सकता है कि भारतीय किसानों के लिए यह कितना बड़ा संकट खड़ा कर सकता है.
इस समझौते से किसानों को होने वाले दुष्परिणामों के विषय में केंद्र सरकार को आगाह करने के लिए राष्ट्रीय किसान महासंघ 17 फरवरी को देशव्यापी प्रदर्शन करेगा. 17 फरवरी को 200 से अधिक जिला मुख्यालयों पर प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा जाएगा.
भारत में कृषि बाजार तलाश रहा अमेरिका
राष्ट्रीय किसान महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक शिव कुमार कक्काजी कहते हैं कि अमेरिका-चीन के बीच व्यापार युद्ध और अमेरिका में बढ़ते कृषि उत्पादन, घटते कृषि निर्यात की वजह से अमेरिका के कृषि क्षेत्र पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं.
अमेरिका का कृषि क्षेत्र निर्यात पर आधारित है, 2011-13 तक कपास और बादाम उत्पादन का 70 प्रतिशत और गेहूं व चावल का 50 प्रतिशत उत्पादन अमेरिका ने निर्यात किया था.
2018 में अमेरिका का कृषि निर्यात 1% बढ़कर 140 बिलियन डॉलर हो गया, दूसरी तरफ अमेरिका का कृषि आयात 6% बढ़कर 129 बिलियन डॉलर हो गया.
इस प्रकार कृषि क्षेत्र में अमेरिका का व्यापारिक मुनाफा मात्र 11 बिलियन डॉलर रह गया जो पिछले 14 साल का सबसे न्यूनतम है. अमेरिका का कृषि निर्यात कम होने की वजह से घरेलू बाजार में कृषि उत्पादों के दाम गिर गए हैं. अब अमेरिका नया बाजार तलाश रहा है.
किसान संगठनों का कहना है कि एक तरफ केंद्र की मोदी सरकार 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की बात करती है, दूसरी तरफ अमेरिका के साथ व्यापार समझौते पर बातचीत कर रही है. अगर यह व्यापार समझौता होता है तो भारतीय किसानों के लिए संकट और बड़ा हो जाएगा.
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