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नवरात्रि में क्‍यों की जाती है कन्‍या पूजा?

सप्‍तमी, अष्‍टमी और नवमी के दिन कन्‍या पूजन का बहुत महत्‍व है लेकिन क्‍या आप जानते हैं कि नवरात्र में कन्‍या पूजन क्‍यों किया जाता है...

कन्याओं को नौ देवियों के प्रतिबिंब के रूप में पूजा जाता है कन्याओं को नौ देवियों के प्रतिबिंब के रूप में पूजा जाता है
वन्‍दना यादव
  • नई दिल्‍ली,
  • 04 अक्टूबर 2016,
  • अपडेटेड 6:26 PM IST

नवरात्र में सप्‍तमी तिथि से कन्‍या पूजन शुरू हो जाता है और इस दौरान कन्‍याओं को घर बुलाकर उनकी आवभगत की जाती है. दुर्गाष्टमी और नवमी के दिन इन कन्याओं को नौ देवी का रूप मानकर इनका स्वागत किया जाता है. माना जाता है कि कन्याओं का देवियों की तरह आदर सत्कार और भोज कराने से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को सुख समृधि का वरदान देती हैं.

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क्यों और कैसे किया जाता है कन्‍या पूजन?
नवरात्र पर्व के दौरान कन्या पूजन का बड़ा महत्व है. नौ कन्याओं को नौ देवियों के प्रतिबिंब के रूप में पूजने के बाद ही भक्त का नवरात्र व्रत पूरा होता है. अपने सामर्थ्य के अनुसार उन्हें भोग लगाकर दक्षिणा देने मात्र से ही मां दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं.

किस दिन करें कन्या पूजन
वैसे तो कई लोग सप्‍तमी से कन्‍या पूजन शुरू कर देते हैं लेकिन जो लोग पूरे नौ दिन का व्रत करते हैं वह तिथि के अनुसार नवमी और दशमी को कन्‍या पूजन करने के बाद ही प्रसाद ग्रहण करके व्रत खोलते हैं. शास्‍त्रों के अनुसार कन्‍या पूजन के लिए दुर्गाष्‍टमी के दिन को सबसे ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण और शुभ माना गया है.

कन्या पूजन की विधि
- कन्‍या भोज और पूजन के लिए कन्‍याओं को एक दिन पहले ही आमंत्रित कर दिया जाता है.
- मुख्य कन्या पूजन के दिन इधर-उधर से कन्याओं को पकड़ के लाना सही नहीं होता है.
- गृह प्रवेश पर कन्याओं का पूरे परिवार के साथ पुष्प वर्षा से स्वागत करें और नव दुर्गा के सभी नौ नामों के जयकारे लगाएं.
- अब इन कन्याओं को आरामदायक और स्वच्छ जगह बिठाकर सभी के पैरों को दूध से भरे थाल या थाली में रखकर अपने हाथों से उनके पैर धोने चाहिए और पैर छूकर आशीष लेना चाहिए.
- उसके बाद माथे पर अक्षत, फूल और कुंकुम लगाना चाहिए.
- फिर मां भगवती का ध्यान करके इन देवी रूपी कन्याओं को इच्छा अनुसार भोजन कराएं.
- भोजन के बाद कन्याओं को अपने सामर्थ्‍य के अनुसार दक्षिणा, उपहार दें और उनके पुनः पैर छूकर आशीष लें.

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कन्या पूजन में कितनी हो कन्याओं की उम्र?
कन्याओं की आयु दो वर्ष से ऊपर तथा 10 वर्ष तक होनी चाहिए और इनकी संख्या कम से कम 9 तो होनी ही चाहिए और एक बालक भी होना चाहिए जिसे हनुमानजी का रूप माना जाता है.  जिस प्रकार मां की पूजा भैरव के बिना पूर्ण नहीं होती , उसी तरह कन्या-पूजन के समय एक बालक को भी भोजन कराना बहुत जरूरी होता है. यदि 9 से ज्यादा कन्या भोज पर आ रही है तो कोई आपत्ति नहीं है.

आयु अनुसार कन्या रूप का पूजन
- नवरात्र में सभी तिथियों को एक-एक और अष्टमी या नवमी को नौ कन्याओं की पूजा होती है.
- दो वर्ष की कन्या (कुमारी) के पूजन से दुख और दरिद्रता मां दूर करती हैं. तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति रूप में मानी जाती है. त्रिमूर्ति कन्या के पूजन से धन-धान्‍य आता है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है.
- चार वर्ष की कन्या को कल्याणी माना जाता है. इसकी पूजा से परिवार का कल्याण होता है. जबकि पांच वर्ष की कन्या रोहिणी कहलाती है. रोहिणी को पूजने से व्यक्ति रोगमुक्त हो जाता है.
- छह वर्ष की कन्या को कालिका रूप कहा गया है. कालिका रूप से विद्या, विजय, राजयोग की प्राप्ति होती है. सात वर्ष की कन्या का रूप चंडिका का है. चंडिका रूप का पूजन करने से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है.
- आठ वर्ष की कन्या शाम्‍भवी कहलाती है. इसका पूजन करने से वाद-विवाद में विजय प्राप्त होती है. नौ वर्ष की कन्या दुर्गा कहलाती है. इसका पूजन करने से शत्रुओं का नाश होता है तथा असाध्य कार्यपूर्ण होते हैं.
- दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती है. सुभद्रा अपने भक्तों के सारे मनोरथ पूर्ण करती है.

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सिर्फ 9 दिन ही नहीं है जीवन भर करें इनका सम्‍मान
नवरात्रों में भारत में कन्याओं को देवी तुल्य मानकर पूजा जाता है. पर कुछ लोग नवरात्रि के बाद यह सब भूल जाते हैं. बहूत जगह कन्याओं का शोषण होता है और उनका अपनाम किया जाता है. आज भी भारत में बहूत सारे गांवों में कन्या के जन्म पर दुःख मनाया जाता है. ऐसा क्यों? क्या आप ऐसा करके देवी मां के इन रूपों का अपमान नहीं कर रहे हैं. कन्याओं और महिलाओं के प्रति हमें अपनी सोच बदलनी पड़ेगी. देवी तुल्य कन्‍याओं का सम्मान करें. इनका आदर करना ईश्‍वर की पूजा करने जितना पुण्‍य देता है. शास्‍त्रों में भी लिखा है कि जिस घर में औरत का सम्‍मान किया जाता है वहां भगवान खुद वास करते हैं.

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