
कर्नाटक की राजधानी बेंगलूरू में बनने जा रहे एक फ्लाइओवर का लोग कड़ा विरोध कर रहे हैं. वे इसे जनता के पैसों की बर्बादी मान रहे हैं और उनके मुताबिक इससे शहर के जाम से कोई राहत नहीं मिलने वाली. 6.72 किमी लंबे और सिटी सेंटर को हेब्बल फ्लाइओवर से जोडऩे वाले 1,791 करोड़ रु. के इस प्रस्तावित फौलादी निर्माण को लेकर लोग गुस्से में हैं. वहीं प्रशासन का दावा है कि इससे शहर के बाहरी इलाके में स्थित अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट तक जाने वाले रास्ते को जाम से मुक्ति मिलेगी. करीब 41,000 लोगों ने 23 अक्तूबर को इस प्रोजेक्ट को रद्द करने की मांग वाले आवेदन पर दस्तखत किए. इसके एक हफ्ता पहले करीब 10,000 लोगों ने मानव शृंखला बना विरोध जताया था. वहीं घर-घर घूमकर और ट्विटर पर अभियान में करीब 42,000 लोगों ने प्रोजेक्ट का विरोध किया है. इससे लोगों के मूड का पता चलता है. राज्य की कांग्रेस सरकार को इसको लेकर अडिग देख विरोध करने वाले कानूनी विकल्पों पर विचार कर रहे हैं, जबकि कर्नाटक हाइकोर्ट में पहले से ही एक याचिका पर सुनवाई चल रही है.
यह प्रोजेक्ट वर्षों से धूल चाट रहा है. बेंगलूरू के विकास मंत्री के.जे. जॉर्ज ने आत्महत्या के एक मामले में क्लीन चिट मिल जाने पर पिछले महीने अपनी नियुक्ति के तुरंत बाद प्रोजेक्ट को फिर से शुरू कर दिया. सरकार फ्लाइओवर को दो साल में पूरा करना चाहती है, जबकि इसकी लागत और पर्यावरण के नुक्सान पर सवाल उठ रहे हैं. इसके निर्माण के लिए 812 पेड़ों को काटना होगा. इसके अलावा रिश्वत के आरोप भी लग रहे हैं.
बेंगलूरू में 50 से ज्यादा फ्लाइओवर और अंडरपास हैं. इनमें से ज्यादातर कुछ वर्षों में अपनी उपयोगिता खो चुके हैं. शहर में हर दिन यशवंतपुर, सिल्क बोर्ड और रिचमंड सर्कल फ्लाइओवरों और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के करीब अंडरपास पर जाम लग जाता है. विरोधियों के मुताबिक, ऐसे प्रोजेक्ट से जाम एक जगह से हटकर दूसरी जगह शिफ्ट हो जाता है. ट्रैफिक इंजीनियरिंग कंसल्टेंट एम.एन. श्रीहरि कहते हैं, ''बेंगलूरू में गाडिय़ों की संख्या तेजी से बढऩे से फ्लाइओवर और अंडरपास निरर्थक हो गए हैं. हर बड़े फ्लाइओवर पर उसकी सीमित क्षमता के कारण जाम आम हो गया है. हमें गाडिय़ों की संख्या कम करने के लिए दूरगामी स्थायी उपाय खोजने की जरूरत है."
रोजाना करीब 1,60,000 वाहन प्रस्तावित फ्लाइओवर के रास्ते पर आड़ा-तिरछा गुजरते हैं. श्रीहरि कहते हैं, ''फ्लाइओवर अगले 3-4 साल तक कारगर रह सकता है, पर जब गाडिय़ों की संख्या बढ़ेगी तो यह भी बेकार हो जाएगा. जाम यहां से हटकर हेब्बल फ्लाइओवर पर शिफ्ट हो जाएगा. सरकार को तेज सार्वजनिक परिवहन सेवा की व्यवस्था करनी होगी ताकि लोग निजी वाहन छोड़ उसके इस्तेमाल के लिए प्रेरित हों."
बेंगलूरू में रोजाना करीब 3,000 नए वाहनों का रजिस्ट्रेशन होता है. शहर में पहले ही साठ लाख से ज्यादा वाहन हैं, जिनमें से 34 लाख दुपहिया हैं. दिल्ली के बाद देश में यह सबसे अधिक संख्या है. पर मेट्रो रेल प्रोजेक्ट से राहत नजर आ रही है. हर रोज 30,000 से ज्यादा लोग विजयनगर और ओल्ड मद्रास रोड के बीच इसका इस्तेमाल करते हैं. इससे सड़कों पर भीड़ का बोझ थोड़ा कम हो रहा है. क्रलाइओवर प्रोजेक्ट के विरोध की अगुआई कर रहे रंगकर्मी प्रकाश बेलावाड़ी कहते हैं कि इसे बनाने में इतनी ''हड़बड़ी" क्यों दिखाई जा रही है? वे पूछते हैं, ''सरकार इतना बड़ा प्रोजेक्ट शुरू करने से पहले संबंधित लोगों की राय क्यों नहीं ले सकती? हरियाली और पारदर्शिता की कीमत चुका रहे बेंगलूरू को फ्लाइओवर की जरूरत नहीं है. हम रुकने वाले नहीं, इसके खिलाफ कानूनी रास्ता भी अपनाएंगे."
इस फ्लाइओवर के निर्माण पर प्रति किमी 267 करोड़ रु. की लागत का अनुमान है. यह चौंकाने वाली बात है क्योंकि एयरपोर्ट तक एलिवेटेड मेट्रो लाइन बनाने पर प्रति किमी 385 करोड़ रु. लागत का अनुमान है और इससे एक घंटे में करीब 25,000 यात्री सफर कर सकेंगे. मोनो रेल के निर्माण पर प्रति किमी 140 करोड़ रु. की लागत का अनुमान है और इससे हर घंटे 15,000 लोग सफर कर सकेंगे. सरकार फ्लाइओवर को बीजेपी का आइडिया बता पल्ला झाडऩे की कोशिश कर रही है. यह प्रोजेक्ट बीजेपी शासन में 2010 में सोचा गया था. सरकार कहती है कि इस साल जून में जब लोगों की राय मांगी गई थी तो 299 प्रतिक्रियाओं में से करीब तीन-चौथाई लोगों ने इस प्रोजेक्ट के पक्ष में राय दी थी. मुख्यमंत्री सिद्धरामैया कहते हैं, ''बेंगलूरू बढ़ता हुआ शहर है. यहां बुनियादी ढांचे से संबंधित हर तरह के प्रोजेक्ट की जरूरत है. इसकी सभी स्तरों पर जांच की गई है और विशेषज्ञों की सहमति ली गई है. अब पीछे हटने का सवाल ही नहीं है."
इस प्रोजेक्ट पर सवाल उठने की एक बड़ी वजह इसकी लागत में वृद्धि (प्रोजेक्ट पर 441 करोड़ रु.) है. 23 अक्तूबर को बेंगलूरू की एक सार्वजनिक सभा में इतिहासकार और लेखक रामचंद्र गुहा ने पूछा, ''अगले चुनाव करीब आ रहे हैं तभी कांग्रेस इस प्रोजेक्ट पर इतनी तेजी क्यों दिखा रही है? कैबिनेट में एक विवादास्पद मंत्री की वापसी के बाद ही इस मामले में इतनी हड़बड़ी क्यों हो रही है? कुछ लोगों का मानना है कि वे चुनावों के लिए पैसा जुटा रहे हैं. यह सही नहीं है. असल में वे जानते हैं कि वे हार जाएंगे. सो वे जल्दी से जल्दी पैसा जमा करना चाहते हैं." सिद्धरामैया कहते हैं कि अन्य बातों के अलावा इस्पात पर वैट बढऩे से पिछले दो वर्षों में लागत काफी बढ़ गई है. इस प्रोजेक्ट का काम देख रहा बेंगलूरू विकास प्राधिकरण अचल संपत्ति की नीलामी से फंड बढऩे की उम्मीद कर रहा है. अंततः सरकार को मदद के लिए बीच में आना ही होगा.
फ्लाइओवर के खिलाफ यह बात भी जाती है कि वाहन मालिकों को चुंगी भी देनी पड़ सकती है. वैसे मंत्री जॉर्ज का कहना है कि इस पर कोई आखिरी फैसला नहीं लिया गया है. गुहा इस प्रोजेक्ट और सिद्धरामैया की खुलकर आलोचना करते हैं, ''वे विशेष हित रखने वाले मंत्रियों के कैदी बन गए हैं. वे अपने पीछे कैसी विरासत छोडऩे जा रहे हैं? सियासी भ्रष्टाचार समाज को बर्बाद करता जा रहा है."