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पहुंच से दूर क्यों राजस्थान का गैंगस्टर आनंद पाल

खतरनाक गैंगस्टर आनंदपाल एक बार फिर बच निकला. राजस्थान पुलिस शर्मसार.

रोहित परिहार
  • जयपुर,
  • 27 जून 2016,
  • अपडेटेड 6:56 PM IST

राजस्थान पुलिस के जख्मों पर 3 सितंबर, 2015 के बाद नमक छिड़कने का सबसे अच्छा तरीका यह हैः उसके किसी भी अफसर से यह पूछ लें कि वे आनंद पाल सिंह को कब गिरफ्तार करेंगे. यही वह दिन था जब यह खूंखार अपराधी नागौर जिले के पर्बतसर से दर्जन भर हथियारबंद कमांडो के चंगुल से निकल भागा था. उनमें से कुछ को उसने मिठाई में नशा देकर बेहोश किया, कुछ पर गोलियां चलाईं और बाकी के साथ सांठगांठ की थी. उस दिन उसे, उस पर चल रहे ढेरों मुकदमों में से एक में बरी होने के बाद वापस लाया जा रहा था. मीडिया और फेसबुक पर उसकी तस्वीरों में मजबूत कद-काठी, लहराते लंबे घुंघराले बाल, दोस्ताना मुस्कान, आत्मविश्वास से भरी चालढाल और बेफिक्र मुद्रा दिखाई देती है, जिसने उसके कई कद्रदान पैदा कर दिए हैं.

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1,200 पुलिसकर्मी तलाश में
एक पूर्व हेड कांस्टेबल के पांच बच्चों में से एक इस भगौड़े ने 31 मई को जिंदगी के 42 साल पूरे किए. पांच राज्यों के 1,200 पुलिसकर्मी और दो दर्जन आईपीएस अफसर उसकी तलाश में हैं और सैकड़ों टेलीफोन कॉल की छानबीन कर रहे हैं. फिर भी 15 जून को वह उन सबकी आंखों में धूल झोंककर ग्वालियर शहर के दीनदयाल नगर में मध्य प्रदेश पुलिस के एक कांस्टेबल की मिल्कियत वाले मकान से भाग निकला.

तीन दर्जन साथी अब तक गिरफ्तार
शादीशुदा आनंद पाल का एक बेटा और एक बेटी है. उसका नाम राजस्थान के घर-घर में जाना जाता है. किसी न किसी स्थानीय या क्षेत्रीय अखबार में रोज उसका प्रमुखता से जिक्र होता है. कई बार ये उसके साथियों की गिरफ्तारी की खबरें होती हैं. उसके तीन दर्जन साथी अब तक गिरफ्तार हो चुके हैं. लेकिन ज्यादा बड़ी कहानियां उसके चकमा देकर भाग निकलने की हैं. बात मार्च 2016 की है. पुलिस को लगा कि वह एक सफेद फॉर्चूनर में उन्हें मारने आए उसके सबसे बड़े दुश्मन राजू ठेठ के आदमियों का पीछा कर रही है.

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कई बार हो चुकी है मुठभेड़
गृह मंत्री गुलाब चंद कटारिया ने विधानसभा में भी ऐलान कर दिया कि ठेठ के आदमी 35 राउंड गोलियां चलाते हुए एक कांस्टेबल को मारकर नागौर की तरफ भाग निकले. अगले दिन उनकी छोड़ी हुई एसयूवी से बरामद सबूतों की बिना पर खुलासा हुआ कि उस फॉर्चूनर में आनंद पाल और उसके आदमी थे. उसी के भरोसेमंद शार्प शूटर आजाद सिंह ने तेज रफ्तार से दौड़ती फार्चूनर से 100 मीटर के फासले से चलाई गई एक ही गोली से पीछा करती पुलिस की गाड़ी के टायर पंचर कर दिए थे और कांस्टेबल की जान ले ली थी. पुलिस के लिए और भी ज्यादा शर्म की बात यह थी कि यह फार्चूनर भी चोरी की थी और इसके मालिक विपक्ष के नेता रामेश्वर डूडी के चाचा थे.

उसके ज्यादातर गुर्गे हो चुके हैं गिरफ्तार
पुलिस ने दावा किया कि उसने मार्च की मुठभेड़ के बाद उसके ज्यादातर गुर्गों को पकड़ लिया है. आइजीपी (ऑपरेशंस) बीजू जोसफ जॉर्ज, जिन्हें आनंद पाल को पकडऩे की जिम्मेदारी सौंपी गई है, मानते हैं, ''हरेक गिरफ्तारी के साथ हमारा काम कुछ और मुश्किल हो जाता है क्योंकि वह एक नए खोल में घुस जाता है, मगर हम उसके ऊपर फंदा कस रहे हैं." वहीं उनके बॉस और राज्य पुलिस की दो विशेष इकाइयों आतंक रोधी दल और विशेष कार्य बल के प्रमुख आलोक त्रिपाठी कहते हैं, ''पिछली बार उसे पकडऩे में हमें छह साल लगे थे. इस बार अभी सिर्फ नौ महीने ही हुए हैं."

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2012 में हथियार डालने को किया था मजबूर
आनंद पाल 2006 में एक हत्या के बाद से ही कानून की गिरफ्त से बचकर भागता रहा है. 2012 में पुलिस अधिकारी शांतनु सिंह ने उसे जयपुर के बाहरी इलाके में एक फार्महाउस में बंदूक की नोक पर हथियार डालने को मजबूर कर दिया था और उसके साथ एके-47 सहित हथियारों का भारी जखीरा भी पकड़ा था. उसके खिलाफ तकरीबन तीन दर्जन मुकदमे चल रहे हैं जिनमें से नौ में अदालतें उसे बरी कर चुकी हैं. लंबित मामलों में पांच हत्या के हैं.

मुख्य न्यायाधीश को लिखी चिट्ठी
अब जब उसे उत्तर प्रदेश की पुलिस तलाश रही है, उसके वकील ए. पी. सिंह ने पिछले हफ्ते राजस्थान हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को चिट्ठी लिखी है कि उसके मामले सीबीआई को सौंप दिए जाएं क्योंकि इनाम के चक्कर में पुलिस उसे एनकाउंटर में मार डालना चाहती है. हालांकि गृह मंत्री कटारिया ने 22 जून को स्पष्ट किया कि सरकार उसे मारना नहीं बल्कि जेल में रखना चाहती है.

घरों में सुनाई जाती है उसकी कहानी
आनंद पाल की कहानी रावण राजपूत समुदाय से आए एक नौजवान की कहानी के तौर पर सुनाई जाती है. राजपूतों में यह निचली जाति है मगर एक जमाने में यह शासक समुदाय था. अलबत्ता आजाद हिंदुस्तान में इनका कद छोटा कर दिया गया और वर्चस्व खेतिहर जाटों को सौंप दिया गया जिन्होंने आजादी के आंदोलन में कांग्रेस के साथ अपने रिश्तों की फसल काटी. इस दुश्मनी की समाज पर भी गहरी छाप है जो शेखावाटी इलाके में अपराध और सियासत तक फैल गई है. इन जिलों में वर्चस्व जाटों का है मगर राजपूतों की भी अच्छी-खासी मौजूदगी है.

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आरक्षण आंदोलन से बदली तस्वीर
ताकतवर और संपन्न जाट समुदाय को ओबीसी कोटे में आरक्षण की मंजूरी मिलने के साथ ही कई गैर-जाट जातियां जाट माफियाओं के खिलाफ हो गईं और चुपचाप आनंद पाल की हिमायत करने लगीं. धीरे-धीरे वह एक ऐसे गैंगस्टर के तौर पर उभरा जिसे इतना निष्पक्ष माना जाता था कि जाटों के अलावा हरेक जाति और मजहब के स्थानीय मुजरिम, शराब के तस्कर, उगाही करने वाले गुंडे और बदमाश उसकी तरफ खिंचे चले आए. स्थानीय किस्सों में उसे रॉबिनहुड का दर्जा दे दिया गया, यानी एक ऐसा डकैत जिससे गरीब डरते नहीं थे बल्कि उससे मदद की उम्मीद कर सकते थे.

चुनाव भी लड़ चुका है
कई तरह के सफल-विफल धंधे करने के बाद 2000 में उसने लाडऩूं से पंचायत समिति का चुनाव लड़ा और जीता. मगर वह उस वक्त की कांग्रेस सरकार में कृषि मंत्री और जाट नेता हरजी राम बुरडक के बेटे की शक्ल में ताकतवर प्रतिद्वंद्वी से प्रधान का चुनाव हार गया. पंचायत की बैठकों में उसके हमलावर रवैए की वजह से उस पर एक के बाद एक कई मुकदमे दर्ज हो गए. यहां से मुकम्मल जुर्म और बर्बरता की दुनिया में दाखिला ज्यादा दूर नहीं था. 2001 में लूट के एक मामले में उसका चालान किया गया और उसके बाद जल्दी ही उसने अपने जुर्म के साझेदारों के साथ एक मेडिकल स्टोर के सेल्समैन खैरराज जाट की हत्या कर दी.

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बढ़ता गया अपराध का ग्राफ
2004 आते-आते वह बेधड़क घूमने लगा और इसी दौरान उसने मौलासर कस्बे में एक राजूपत औरत के अपहरण के आरोपी नानू राम जाट को मारने के लिए तेजाब का इस्तेमाल किया. आखिरकार उसी साल उसने नागौर शहर में पुलिस के सामने हथियार डाल दिए. लेकिन जल्दी ही जनवरी 2005 में उसे जमानत पर छोड़ दिया गया और उसके बाद वह पंचायत समिति के साथ फिर से काम करने लगा. मगर स्थानीय जाट प्रतिद्वंद्वी जीवन राम जाट ने उसे मार डालने की धमकी दी तो उसने उसकी धुनाई कर डाली.

तस्करी के नेटवर्क से भी जुड़ा
एटीएस-एसओजी के एक गोपनीय डोजियर के मुताबिक, शराब के तस्कर जीवन राम जाट ने अपने बढ़ते सियासी असर के दम पर उसकी हत्या करवाने के लिए भारी रकम जमा कर ली. इन्हीं दिनों एक और जाट गैंगस्टर बलबीर बानूड़ा ने, जो बाद में उसकी जान बचाते हुए बीकानेर जेल में मारा गया, एक और गैंगस्टर गोपाल फोगावट से बदला लेने के लिए उसके साथ हाथ मिला लिया. यह शेखावाटी के अपराध के फलक पर बड़ा भारी बदलाव था, जब एक जाट गैंगस्टर एक राजपूत के साथ आ खड़ा हुआ था.

तस्करी की बदौलत तैयार किया गैंग
इस बीच आनंद पाल शराब के तस्करों से हिफाजत के एवज में रकम वसूल करके अपने गैंग को मजबूत करता रहा. उसके गैंग के कुछ सदस्य कारोबारियों से धन वसूलने और अपहरण करके फिरौती उगाहने के धंधे में भी लिप्त हो गए. गिरोहों की आपसी दुश्मनी में उलझे गैंगस्टरों के लिए जेल महफूज मानी जाती है, मगर उसके जेल में दाखिल होते ही नजारा बदल गया. आनंद पाल ने सीकर जेल में अपने आदमियों से राजू ठेठ पर गोलियां चलवाईं मगर 26 जनवरी, 2014 को हुए इस हमले में वह बच निकला.

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'लोग गुंडों से ज्यादा पुलिस से डरते हैं'
कटारिया ने 20 जून को एक बयान में कहा कि पुलिस जिस तरह से जनता से बदसलूकी करती और रिश्वत वसूलती है, उसे देखते हुए उन्हें गृह मंत्री के रूप में बने रहने का कोई अधिकार नहीं रह गया है. उन्हीं के शब्दों में, ''लोग गुंडों से ज्यादा पुलिस से डरते हैं." इसी से साफ हो जाता है कि आनंद पाल के इतने शुभचिंतक आखिर क्यों हैं?

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