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राष्ट्रपति चुनाव में AAP को अपनों का ही साथ मिलना मुश्किल!

राष्ट्रपति चुनाव में खुद को अलग-थलग महसूस कर रही आम आदमी पार्टी को अपने ही विधायकों का साथ मिलना मुश्किल हो सकता है. 'आप' के पास दिल्ली में अब 67 में से 65 सीटें ही रह गयी हैं. इन 65 में से सस्पेंड किए जा चुके कई विधायक पार्टी के खिलाफ अक्सर बगावत करते रहते हैं. सवाल ये खड़ा होता है कि क्या 'आप' विधायक पार्टी के समर्थन वाले उम्मीदवार को राष्ट्रपति चुनाव में वोट करेंगे?

 आम आदमी पार्टी में जारी है अंदरूनी कलह आम आदमी पार्टी में जारी है अंदरूनी कलह
पंकज जैन
  • नई दिल्ली,
  • 26 जून 2017,
  • अपडेटेड 11:42 PM IST

राष्ट्रपति चुनाव में खुद को अलग-थलग महसूस कर रही आम आदमी पार्टी को अपने ही विधायकों का साथ मिलना मुश्किल हो सकता है. 'आप' के पास दिल्ली में अब 67 में से 65 सीटें ही रह गयी हैं. इन 65 में से सस्पेंड किए जा चुके कई विधायक पार्टी के खिलाफ अक्सर बगावत करते रहते हैं. सवाल ये खड़ा होता है कि क्या 'आप' विधायक पार्टी के समर्थन वाले उम्मीदवार को राष्ट्रपति चुनाव में वोट करेंगे?

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आम आदमी पार्टी के लिए राष्ट्रपति चुनाव में क्रॉस वोटिंग एक बड़ी चिंता बन सकती है. इस लिस्ट में दिल्ली के वो तमाम विधायक शामिल हो सकते हैं जो अब तक अपनी ही पार्टी के खिलाफ बगावती तेवर अपना चुके हैं. आइये आपको इन विधायकों से रूबरू कराते हैं-

आसिम अहमद
मटियामहल से विधायक आसिम अहमद खान को भ्रष्टाचार के मामले में मंत्री पद के साथ-साथ पार्टी ने सस्पेंड किया था, जिसके बाद वो पार्टी से हटकर बयानबाज़ी करते आए हैं.

संदीप कुमार
सेक्स सीडी कांड में फंसे सुल्तानपुरी के विधायक संदीप कुमार भी पार्टी नेताओं पर अक्सर हमला करते हैं और पार्टी लाइन से हटकर बयानबाज़ी भी करते रहते हैं.

देवेंद्र सहरावत
अरविंद केजरीवाल के खिलाफ बयानबाज़ी करने और कई आरोप लगाने वाले देवेंद्र सहरावत को पार्टी ने सस्पेंड किया था. सहरावत बिजवासन से विधायक हैं और दिल्ली से लेकर पंजाब तक पार्टी के खिलाफ बगावत कर चुके हैं.

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कपिल मिश्रा
करावल नगर से विधायक कपिल मिश्रा मंत्री पद से हटाए जाने के बाद से ही 'आप' नेताओं और केजरीवाल के लिए सबसे बड़ी मुसीबत बने हुए हैं. कपिल का पार्टी के लिए किसी भी मुद्दे पर समर्थन करना अब न के बराबर है.

पंकज पुष्कर
तिमारपुर से विधायक पंकज पुष्कर आम आदमी पार्टी से ज्यादा स्वराज अभियान में नज़र आते हैं. सड़क से लेकर विधानसभा तक वो केजरीवाल सरकार का विरोध करते आए हैं.

अंदरूनी विवाद का साया
आम आदमी पार्टी के अंदरूनी विवाद की झलक राष्ट्रपति चुनाव की वोटिंग में देखने मिल सकती है. चर्चा जोरों पर है, क्योंकि कुमार विश्वास के हाल में किए गए ट्वीट के कई मायने निकाले जा रहे हैं. ये वही कुमार विश्वास हैं जो विधायक अमानतुल्लाह खान के 'बीजेपी एजेंट' वाले बयान से नाराज़ थे. नाराज़गी के दौरान कई 'आप' विधायक, विश्वास खेमे के साथ खड़े नजर आए थे, जिनमे राजेश ऋषि, अलका लांबा, सोमनाथ भारती, आदर्श शास्त्री जैसे विधायकों के नाम शामिल थे. ऐसे में सवाल उठता है कि राष्ट्रपति चुनाव में किसी कैंडिडेट को वोटिंग के लिए पार्टी अपने ही विधायकों का समर्थन जुटा पाएगी?

फिलहाल राष्ट्रपति चुनाव को लेकर आम आदमी पार्टी के सूत्रों ने कहा है कि वह इस चुनाव में विपक्ष के दलित उम्मीदवार का समर्थन कर सकती है. पार्टी की पॉलिटिकल अफ़ेयर कमिटी जल्द ही राष्ट्रपति चुनाव को लेकर एक बैठक भी करेगी.

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आइए आपको बताते हैं कि आम आदमी पार्टी की राष्ट्रपति चुनाव में कितनी भूमिका है और उसके कितने वोट हैं. आम आदमी पार्टी के दिल्ली में 65 विधायक हैं. वैसे तो पार्टी ने 67 सीट जीती थी, मगर उनके एक विधायक बीजेपी में शामिल हो गए और दूसरे पंजाब जाकर चुनाव लड़े, जिसके चलते राजौरी की सीट पर उपचुनाव में आम आदमी पार्टी एक और सीट गंवा बैठी. पंजाब विधानसभा की बात की जाए तो वहां आप के पास कुल 22 विधायक हैं. लोकसभा में आम आदमी पार्टी के चार सांसद हैं. इस तरह पार्टी के विधायकों और सांसदों के वोट का कुल मूल्य 9,038 है.

किसी गुट ने नहीं पूछा AAP को
आम आदमी पार्टी को न कांग्रेस ने पूछा और न ही बीजेपी ने. आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह का कहना है कि 'राष्ट्रपति चुनाव के संबंध में एनडीए ने राजनाथ सिंह, वेंकैया नायडू और अरुण जेटली को अलग-अलग राजनीतिक दलों से बात करने की जिम्मेदारी दी थी. इस कमिटी ने कांग्रेस, सीपीआई, सीपीएम, बीएसपी और शिवसेना जैसे दलों से बातचीत की. लेकिन बीजेपी ने आम आदमी पार्टी से संपर्क करना जरूरी नहीं समझा.'

संजय सिंह ने कहा, 'कांग्रेस नेता आनंद शर्मा कहते हैं कि आम आदमी पार्टी की कोई औकात नहीं है. लोकतंत्र में कांग्रेस की मौजूदा हालत इसलिए है, क्योंकि उनको आम आदमी की ताकत पता नहीं है. इस तरह के बयान से कांग्रेस का अहंकार झलकता है. आम आदमी पार्टी का मानना है कि अगर राजनीतिक दलों से इस तरह दूरी बनाई जाएगी तो राष्ट्रपति चुनाव के लिए यूपीए या एनडीए को समर्थन देना एक मुश्किल काम होगा.'

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