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चीन-पाकिस्तान की एक योजना से भारत को खतरा, जानें क्या है वह

अपनी अशांत पश्चिमी सरहद अरब सागर से जोडऩे के लिए चीन 45 अरब डॉलर का चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर बनाने की योजना पर आगे बढ़ा. अब पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में भी होगी पैठ.

अनंत कृष्णन
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  • 06 अप्रैल 2015,
  • अपडेटेड 4:57 PM IST

पाकिस्तान के पूर्व फौज प्रमुख अशरफ परवेज कयानी के तीन दिन के बीजिंग दौरे के पहले ही दिन की घटना है. 28 अक्तूबर, 2013 की सुबह चीन के पश्चिमी प्रांत के मुस्लिम बहुल इलाके जिनजियांग के तीन उइगुर लोग एक बड़ी कार में लोहे की छड़ें और गैसोलिन भरे थ्येन आन मन चौक में घुस गए. बीजिंग के मध्य में हुए इस पहले आतंकी हमले में दो पर्यटक मारे गए और 40 लोग घायल हो गए. कार से 'मजहबी नारों' वाला झंडा मिला. फिर छापे में पांच उइगुर पकड़े गए. कथित तौर पर ये अलगाववादी ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ईटीआइएम) से जुड़े थे.

इस संगठन को तुर्किस्तान इस्लामिक पार्टी (टीआइपी) के नाम से भी जाना जाता है. इसका दावा है कि पड़ोस के पाकिस्तान और अफगानिस्तान में उसके आतंकी शिविर चल रहे हैं. चीन इस संगठन को जिनजियांग में पिछले तीन साल में हुए कई धमाकों के लिए दोषी मानता है, जिसमें 200 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है. थ्येन आन मन चौक के धमाके के कुछ दिन बाद जारी वीडियो में ईटीआइएम ने इसे अपना सबसे दुस्साहसिक हमला बताया था.

धमाके ने कयानी के दौरे को असामान्य बना दिया. कुछ ही घंटे बाद उन्हें थ्येन आन मन गेट के सामने राज्य सुरक्षा मुख्यालय में चीन के सार्वजनिक सुरक्षा मंत्री और आतंक विरोधी अभियान के मुखिया गुओ शेंगकुन से मिलना था. गुओ के कार्यालय से कार के जलते मलबे का नजारा भी साफ दिखता था.

कयानी के दौरे के दौरान यह अजीबोगरीब विरोधाभास चीन के साथ उसके 'सदाबहार' रिश्ते में दिखाई पड़ता है. पिछले दशक भर जिस रिश्ते को "हिमालय से भी ऊंचा, समुद्र से भी गहरा और शहद से भी मीठा" बताया गया, वह जमीनी हकीकत से मेल नहीं खाता. इस विरोधाभास की बेहतरीन मिसाल शायद लंबे समय से प्रस्तावित चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) का लटके रहना है, जो जिनजियांग प्रांत को पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के जरिए पाकिस्तान से जोड़ेगा. यह परियोजना दशकों से लटकी पड़ी है क्योंकि चीन के राष्ट्रपति हू जिंताओ के समय अस्थिरता की आशंका हावी थी. पाकिस्तान में परवेज मुशर्रफ के दौर के खात्मे के बाद ये आशंकाएं और बढ़ गईं.

पाकिस्तान को शह
हालांकि बीजिंग में रणनीतिक विशेषज्ञों, कूटनयिकों और अधिकारियों की मानें तो पिछले 12 महीने में चीन के रवैए में शायद भारी बदलाव आया है. उनके मुताबिक यह बदलाव हू जिंताओ के उत्तराधिकारी शी जिनपिंग के हाथ कमान आते ही शुरू हो गया. शी ने मार्च, 2013 में सत्ता संभाली थी. पिछले एक साल के दौरान शी ने अपने कूटनयिक एजेंडे का केंद्र बिंदु 'एक इलाका, एक सड़क' की नीति को बनाया. इसका मतलब है कि एक सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट है, जो जिनजियांग को मध्य एशिया से जोड़ेगा और दूसरे, जहाजरानी सिल्क रोड है, जो चीन को दक्षिण पूर्व एशिया और हिंद महासागर से जोड़ेगा. शी के एक सलाहकार बताते हैं, "राष्ट्रपति की शुरुआती पहल 'पड़ोस कूटनीत' सम्मेलन बुलाने की थी. इसकी मुख्य बात यह थी कि पहले के नेतृत्व ने पश्चिम पर कुछ ज्यादा ही फोकस किया और पड़ोस की परवाह नहीं की.

रवैए में बदलाव का बड़ा संकेत यह भी है कि चीन ने आखिरकार पाकिस्तान से होकर गुजरने वाले कॉरिडोर का काम आगे बढ़ाने का फैसला कर लिया है. इस फैसले की घोषणा सबसे पहले शी ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति ममनून हुसैन के पिछले साल फरवरी में बीजिंग दौरे के दौरान की. फिर  नवंबर में जब प्रधानमंत्री नवाज शरीफ बीजिंग गए तो फैसले पर फिर जोर दिया गया. उसके बाद के महीनों में इस परियोजना को आगे बढ़ाने की जल्दबाजी भी दिखी. इंडिया टुडे को पता चला है कि पिछले कुछ हफ्तों में चीन ने भूगर्भ विज्ञानियों और इंजीनियरों की टोली रवाना की है. यह टोली पेशावर और आसपास के इलाकों में इस परियोजना की मौजूदा वक्त में प्रासंगिकता की जांच-परख कर रही है. अब तक के नतीजे चीन के लिए आशाजनक बताए जाते हैं.

सीपीईसी परियोजना में आखिर क्या कुछ शामिल होगा? महत्वाकांक्षी विचार यह है कि दुर्गम क्षेत्र से घिरे अशांत जिनजियांग इलाके को राजमार्गों, पाइपलाइन और रेलवे लाइन के जरिए मध्य और पश्चिम एशिया से जोडऩा. इस योजना के तहत कशगर (पुराने सिल्क रोड का एक शहर, जहां चीन आर्थिक विकास क्षेत्र बना रहा है) से काराकोरम राजमार्ग के साथ-साथ पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के रास्ते पेशावर और ग्वादर तक बुनियादी ढांचे का विकास और बिजली परियोजनाएं कायम करना है. चीन अरब सागर के किनारे ग्वादर में बंदरगाह बनाने में पहले ही मदद कर चुका है. इससे चीन के लिए तेल और गैस संबंधी आयात के लिए एक नया रास्ता खुल जाएगा, जो अभी संकरी मलाका की खाड़ी और विवादास्पद दक्षिण चीन सागर के रास्ते पर ही निर्भर है. जनवरी में बीजिंग ने एक पाइपलाइन का उद्घाटन किया, जो दक्षिण-पश्चिमी प्रांत युन्नान को म्यांमार में मांडे द्वीप से जोड़ती है. चीन को उम्मीद है कि ग्वादर से एक और विकल्प खुल जाएगा.

भारत पर असर
सीपीईसी योजना का भारत के लिए व्यापक असर है. इस योजना पर आगे बढ़कर चीन ने साफ जाहिर कर दिया है कि उसकी मंशा पाक अधिकृत कश्मीर में स्थायी ठिकाना बनाने की है. उसका यह रवैया कश्मीर पर पिछले दो दशक के रवैए से अलग है. हालांकि चीन के अधिकारी जोर देकर कहते हैं कि उसके इस रवैए में कोई बदलाव नहीं आया है कि कश्मीर मसले का हल 'भारत और पाकिस्तान को निकालना' है. लेकिन भारतीय अधिकारियों के मुताबिक, रवैए में बदलाव का पहला संकेत 2009 में दिखा, जब चीन ने जम्मू-कश्मीर के लोगों को नत्थी वीजा देना शुरू किया. वह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के लोगों के मामले में ऐसा नहीं करता. जवाब में भारत ने रक्षा मामलों में आदान-प्रदान को मुल्तवी कर दिया और संकेत दिया कि तिब्बत और 'एक चीन' पर उसका रवैया कश्मीर पर चीन के रवैए से जुड़ा हुआ है. फिर, चीन ने करीब दो साल पहले नत्थी वीजा देना बंद कर दिया.

दिलचस्प तथ्य यह भी है, जिसकी ओर नई किताब द चाइना-पाकिस्तान एक्सिस के लेखक एंड्रयू स्मॉल इशारा करते हैं. उनके मुताबिक चीन 'कश्मीर में आर्थिक परियोजनाओं के प्रति कम संवेदनशीलता' दिखा रहा है. स्मॉल के मुताबिक, 2005 में भारत-अमेरिकी एटमी करार इस मामले में एक महत्वपूर्ण बदलाव है. उसके बाद चीन का नजरिया द्विपक्षीय रिश्तों तक ही सीमित नहीं रहा. 

लंबी योजना
चीन का शुरुआती कदम सीपीईसी के तहत एक-एक करके बुनियादी ढांचे और बिजली परियोजनाओं को अपने हाथ में लेने का है. पाकिस्तान पर चीन के अग्रणी विशेषज्ञ, पेकिंग विश्वविद्यालय के हान हुआ कहते हैं, "यह 20-25 साल लंबी परियोजना है. कोई रातोरात होने वाली नहीं है." हान के मुताबिक पिछले कुछ सालों में 'सुरक्षा के मसलों' को लेकर इस योजना पर 'हिचक' थी. वे कहते हैं, "हमारा नजरिया यह है कि जिनजियांग की समस्या को सुलझाने का बुनियादी तरीका आर्थिक विकास ही है. उसकी भौगोलिक स्थिति के चलते उसे पूर्वी चीन से जोडऩा मुश्किल है. इसलिए पश्चिम की ओर देखना ज्यादा आसान है." 

हालांकि सीपीईसी योजना की राह में दुर्गम क्षेत्र के अलावा भी कई रुकावटें हैं. फिलहाल, काराकोरम राजमार्ग स्थानीय मौसम की वजह से ज्यादा-से-ज्यादा पांच महीने के लिए ही खुलता है. 2010 में भूस्खलन और बाढ़ की वजह से साल भर से ज्यादा यह रास्ता बंद पड़ा रहा. सीपीईसी के तहत लंबी अवधि में सही, इसे साल भर खोलने की योजना पर काम होना है. हाल की वार्ताओं में चीन और पाकिस्तान ने एक समांतर राजमार्ग बनाने पर विचार किया, जो खुंजराब दर्रे में सुरंगें बनाकर भूस्खलन से निजात दिलाएगा.

ये विचार रूमानी खयाल सरीखे और बेहद खर्चीले हैं. पाकिस्तान के आकलन के मुताबिक इस पर 11 अरब डॉलर से ज्यादा का खर्च आएगा. लेकिन, 2013 तक अफगानिस्तान, पाकिस्तान और मध्य एशिया के मामलों के अमेरिका के प्रभारी रहे डेविड सिडनी के मुताबिक इसे एक झटके में खारिज भी नहीं किया जा सकता. वे कहते हैं, "मैं इस बारे में स्पष्ट हूं कि काशगर-ग्वादर कॉरिडोर की कोई आर्थिक सार्थकता नहीं तलाशी जा सकती. लेकिन अगर चीन सुझाव के मुताबिक 45 अरब डॉलर खर्च करने को तैयार है तो इससे इस इलाके में बदलाव की पूरी संभावना है." पाकिस्तानी अधिकारियों ने 11 अरब डॉलर के अलावा बिजली परियोजनाओं में 34 अरब डॉलर के निवेश की सलाह दी है. चीन के विदेश मंत्रालय के अधिकारी इन आंकड़ों पर सहमति से इनकार करते हैं. उनका कहना है कि बातचीत अभी जारी है और हर विशेष परियोजना पर अलग से विचार होगा.

आतंक का पचड़ा
वैसे, चीन का बड़ा सिरदर्द खर्च नहीं, बल्कि सुरक्षा का मामला है. पिछले साल जिनजियांग में लगातार बम धमाके हुए. थ्येन आन मन चौक की घटना से जाहिर है कि आतंक अपने इलाके से बाहर पैर फैला रहा है. मार्च, 2014 में उइगर हमलावरों ने युन्नान के कुनमिंग में रेलवे स्टेशन पर हमला किया, जिसमें 29 लोगों की जान गई और 140 लोग जख्मी हुए. सिडनी के मुताबिक, यह घटना चीन के नजरिए में 'बड़े बदलाव' की वजह बनी. वे कहते हैं, "चीन में आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ नए सिरे से बात करने पर पुनर्विचार चल रहा है. चीन में बहस का बड़ा मुद्दा यह नहीं है कि पाकिस्तान गंभीर है या नहीं, बल्कि यह है कि वह चीन की चिंताओं पर गौर करने के काबिल है भी या नहीं."

अधिकारियों को आशंका है कि जिनजियांग इलाके को निवेश के लिए खोलने से पश्चिम की आतंकवादी ताकतों से भी उसकी नजदीकी बढ़ सकती है. हान कहते हैं, "हम बिलाशक ईटीआइएम के आतंकी शिविरों के बारे में भी कुछ करना चाहते हैं. लेकिन हमें एहसास है कि हमें पाकिस्तान सरकार के साथ काम करना है, उससे दूरी नहीं बनानी है."

अफगानिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा निदेशालय के पूर्व प्रमुख अमरुल्लाह सालेह के मुताबिक यह रवैया जोखिम भरा है क्योंकि पिछले दो साल से हिंसा में इजाफा हो रहा है. अफगानिस्तान चीन को ईटीआइएम के आतंकियों से जुड़े कई नोट भेज चुका है, जो पाकिस्तान में सक्रिय हैं. चीन के अधिकारियों ने खुद कहा है कि वे ईटीआइएम और आइएसआइ के कुछ लोगों के बीच संपर्कों से वाकिफ हैं. "चीन के लिए सवाल यह है कि किसने ईटीआइएम को वहां आने, ठिकाना बनाने और खाना, हथियार और प्रशिक्षण पाने का बुलावा दिया?" फिलहाल तो यही लगता है कि बीजिंग इस सवाल का जवाब देना अभी जरूरी नहीं समझेगा. 

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