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2016 में भारतीय जिम्नास्टिक को विश्व मानचित्र पर ले गईं दीपा कर्मकार

साल 2016 में वैसे तो खेल के कई क्षेत्र में भारतीय खिलाड़ियों ने अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन जिम्नास्टिक की विशेष चर्चा जरूरी है. इस साल रियो ओलंपिक के दौरान इस खेल ने भारत को पदक की आस दिलाई हालांकि मामूली अंतर से चूकने के बावजूद इतिहास रचने वाली दीपा कर्माकर ने न केवल भारतीयों के बीच इस खेल के जरिए कुछ यादगार पल दिए बल्कि अंतरराष्ट्रीय पटल पर भी भारत की छाप छोड़ी.

साल 2016 में भारत की नूरे नज़र बनीं दीपा कर्माकर साल 2016 में भारत की नूरे नज़र बनीं दीपा कर्माकर
अभिजीत श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 23 दिसंबर 2016,
  • अपडेटेड 8:27 PM IST

साल 2016 में वैसे तो खेल के कई क्षेत्र में भारतीय खिलाड़ियों ने अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन जिम्नास्टिक की विशेष चर्चा जरूरी है. इस साल रियो ओलंपिक के दौरान इस खेल ने भारत को पदक की आस दिलाई हालांकि मामूली अंतर से चूकने के बावजूद इतिहास रचने वाली दीपा कर्माकर ने न केवल भारतीयों के बीच इस खेल के जरिए कुछ यादगार पल दिए बल्कि अंतरराष्ट्रीय पटल पर भी भारत की छाप छोड़ी.

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जिम्नास्टिक में दीपा कर्माकर के अलावा बाकी पूरे साल जिक्र करने लायक किसी का प्रदर्शन नहीं रहा.

क्रिकेटरों के देश में जिम्नास्ट से आस
जिस देश में क्रिकेट की पूजा होती है वहां के लोगों को त्रिपुरा के एक छोटे से गांव से आई 23 वर्षीय दीपा कर्माकर ने रियो ओलंपिक के दौरान देर रात तक जगाए रखा. वो न केवल ओलंपिक में क्वालीफाई करने वाली बल्कि स्पर्धा के फाइनल में पहुंचने वाली भी पहली भारतीय महिला जिम्नास्टिक बनीं और साथ ही देश की नूरे नज़र.

दीपा को पदक नहीं, प्रसिद्धि मिली
प्रोदुनोवा जैसे खतरनाक कारनामे, जिसे करने का जोखिम रूस और अमेरिका के जिम्नास्ट भी नहीं उठाते, को अंजाम देकर रियो से पदक नहीं लेकर आने के बावजूद उसने करोड़ों देशवासियों का दिल जीता. अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों में कई पदक जीतने के बावजूद एक खिलाड़ी वो लोकप्रियता हासिल नहीं कर पाता जो दीपा ने रियो में चौथे स्थान पर रहकर अर्जित की.

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राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित
पदकों और रिकॉर्ड से ही प्रदर्शन का आकलन करने वाले भारतीयों ने दीपा की नाकामी पर दुख नहीं मनाया बल्कि ऐसे खेल में चौथे स्थान पर रहने का जश्न मनाया जिसमें भारतीयों का फाइनल में पहुंचना भी सपने सरीखा माना जाता रहा है. भारत के लिए ओलंपिक की व्यक्तिगत स्पर्धा का स्वर्ण जीतने वाले एकमात्र खिलाड़ी अभिनव बिंद्रा ने भी उसे हीरो करार दिया. रियो के बाद दीपा पर सम्मान की झड़ी लग गई जिसमें राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार भी शामिल है. दीपा से पहले आशीष ने राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलों में पदक जीता था. अब 2020 टोक्यो ओलंपिक में दीपा पर देशवासियों की उम्मीदों का भार होगा.

रोजाना पांच घंटे प्रैक्टिस में लगी हैं दीपा
दीपा के कोच बिश्वेश्वर नंदी ने कहा, ‘कुछ लोगों को पता भी नहीं था कि त्रिपुरा कहां है लेकिन उसने प्रदेश और देश का नाम रौशन किया. हालांकि दीपा को अभी लंबा सफर तय करना है और अब अगला लक्ष्य अक्टूबर 2017 में होने वाली विश्व चैम्पियनशिप है. वह टोक्यो में भी पदक की उम्मीद होगी. वैसे तो वोल्ट काफी जोखिम भरा है और चोट कभी भी लग सकती है लेकिन हम अपनी ओर से पूरी तैयारी कर रहे हैं.’

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नंदी के अनुसार रियो ओलंपिक के लिए दीपा ने दिन में दो बार चार चार घंटे प्रैक्टिस किया और अब वो ढाई ढाई घंटे के अभ्यास में लगी है. उसकी कोशिशों में कोई कमी नहीं है.’

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