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बजटः आत्महत्या कर चुके किसानों के परिवार के लिए 'सहायता पैकेज' की जरूरत

महिला किसानों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्थाओं ने की मांग, अबकी बजट में आत्महत्या कर चुके किसानों के परिवारों के लिए केंद्र सरकार 'राष्ट्रीय सहायता पैकेज' का करे प्रावधान.

आत्महत्या कर चुके किसान के परिवार की जिम्मेदारी ले केंद्र सरकार आत्महत्या कर चुके किसान के परिवार की जिम्मेदारी ले केंद्र सरकार
संध्या द्विवेदी
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  • 31 जनवरी 2020,
  • अपडेटेड 7:30 PM IST

उत्तर प्रदेश के बांदा जिले की रहने वाली सुनीता के पति ने 2016 में आत्महत्या कर ली थी. परिवार के लिए कमाई का एकमात्र जरिया खेती ही थी. उनके पास दो एकड़ खेती है. चार लाख रु. बैंक और करीब तीन लाख रु. गांव के साहूकार से उधार लिए थे. खेत की फसलें सूखे के भेंट कई सालों से चढ़ रही हैं. दो बेटियों की शादी के लिए बैंक और साहूकार से उधार लेना पड़ा था.

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बैंक का कर्जा किसी बिचौलिए ने दिलावाया था, सो मृत किसान की पासबुक में भले ही चार लाख रु. चढ़े हों 20 फीसद बिचौलिए का और 8 फीसद बैंक मैनेजर का कमीशन कटने के बाद दो लाख से थोड़े ही ज्यादा पैसे हाथ में आए थे. साहूकार ने कर्जा 10 फीसद के चक्रवृद्धि ब्याज पर दिया था. सुनीता ने बताया दोनों कर्ज 2013 में लिए थे. साहूकार को लगातार पैसा दे रहे हैं लेकिन ब्याज ही चुका पाते थे.

मूलधन टस से मस नहीं हुआ. बैंक एजेंट भी लगातार आ-आकर धमका रहे थे. सुनीता कहती हैं. कर्ज लेते समय मेरे पति ने हमसे कुछ पूछा नहीं. जब साहूकार और एजेंट दोनों दरवाजे पर आने लगे तब हमें पता चला कि क्या चल रहा है. वे आगे बताती हैं, जिस दिन उन्होंने फांसी लगाई उस दिन हम अपनी बहन की बिटिया की शादी में गए थे. आए तो....बेटा दसवीं में पढ़ता है.

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भर्राई आवाजा में सुनीता बताती हैं कि पूरा कर्ज अब हमारे ऊपर आ गया. किसानों के परिवारों को कुछ एक लाख रु. मिलते हैं. कई बार हम बैंक गए. लेकिन हर बार किसी न किसी कागज की कमी का हवाला देकर हमें लौटा दिया गया. लड़के की पढ़ाई छुड़वा दी है. रोटी के लाले पड़े हैं ऊपर से कर्ज का बोझ! यह कहानी किसी एक सुनीता की नहीं बल्कि उन लाखों परिवारों की है जहां किसानों ने कर्ज के मर्ज से जूझते-जूझते जान दे दी.

महिला किसानों के अधिकारों के लिए लंबे समय से काम कर रही महिला अधिकार मंच (मकाम) संस्था ने केंद्र सरकार से ऐसे परिवारों के लिए इस बार बजट में ‘सहायता पैकेज’ के लिए अलग से न केवल धन राशि आवंटित करने बल्कि एक राष्ट्रीय सहायता पैकेज नीति बनाने की भी मांग की है. मकाम संस्था की कविथा कुरुगंथी कहती हैं, ‘‘हमारे देश की विडंबना है कि महिलाएं खेती-किसानी के काम में घर से लेकर बाहर तक गंभीरता से जुड़ी रहती हैं. लेकिन उन्हें किसान का दर्जा नहीं दिया जाता.’’ किसानों के परिवारों में भी खेती किसानी से जुड़े फैसलों से उन्हें दूर ही रखा जाता है. और खासकर बैंक या साहूकार से लोन लेते वक्त पुरुष किसान घर की महिलाओं से पूछना मुनासिब नहीं समझते.

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कविथा कहती हैं, ‘‘किसान आत्महत्या के बढ़ते आंकड़ों का असर सबसे ज्यादा घर की महिलाओं और बच्चों के भविष्य पर पड़ता है.’’ कविथा की यह बात केवल अखबारी खबरों पर आधारित नहीं है. बल्कि मकाम संस्था ने हाल ही में महाराष्ट्र के उन जिलों का सर्वे कराया जहां से सबसे ज्यादा आत्महत्या के मामले सामने आते हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक 500 से ज्यादा घरों के इस सर्वे में किसान की आत्महत्या के बाद घर की महिलाओं के लिए जिंदगी और दूभर हो गई. ज्यादातर महिलाओं को पता ही नहीं था कि कितना लोन लिया गया? कहां से लिया गया? लेकिन लोन लेने वाले की मृत्यु होने पर कर्ज का भार परिवार पर आ गया. तेलंगाना, आंध्रप्रदेश जैसे राज्यों में पीड़ित महिला को 6-7 लाख रु. की रकम सरकार मुहैया करवाती है. जबकि महाराष्ट्र जैसे राज्य जहां सबसे ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की, वहां पर केवल दो लाख रु. की राहत राशि परिवार को मिलती है.

लेकिन जिन राज्यों में मृतक के आश्रित परिवार को पैसा मिलता भी है वहां पर भी मृत्यु प्रमाण पत्र, राशन कार्ड, समेत 13 डॉक्यूमेंट परिवार को जमा करने होते हैं. यह एक मुश्किल काम है. ऐसे में ज्यादातर लोग इस योजना का फायदा नहीं उठा पाते.

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मकाम संस्था की मांग है कि यह प्रक्रिया सरल की जाए. जैसे गांव के सरपंच से उस परिवार के बारे में जानकारी हासिल की जा सकती है. लेकिन सबसे जरूरी कदम यह है कि केंद्र सरकार की तरफ इन परिवारों के लिए ‘राष्ट्रीय सहायता पैकेज’ का प्रावधान किया जाए. किसान आत्महत्या किसी एक या दो राज्यों की समस्या नहीं है. ऐसे में यह राज्य से ज्यादा राष्ट्र की जिम्मेदारी है.

कैसा हो सहायता पैकेज?

1-सहायता पैकेज में केवल मदद के तौर पर राशि नहीं बल्कि उन परिवारो को चिह्नित करना भी हो जिनके घर में किसान की मौत हुई है. ऐसे मामलों में उन्हीं परिवारों को हर्जाने का हकदार माना जाता है जिनके पास अपनी जमीन होती है. लेकिन हमारे देश में लाखों किसान ऐसे हैं जो दूसरे की जमीन का किराया चुकाकर या फिर बटाई में खेती करते हैं. किसान की मौत के बाद ऐसे परिवारों को सहायता देने का प्रावधान होना चाहिए.

2-चिह्नित करने के बाद मृत किसानों के परिवारों का एक डेटा तैयार किया जाए.

3-केवल राशि ही नहीं बल्कि बच्चों की शिक्षा का भी प्रबंध सरकार को करना चाहिए.

4-हर्जाना लेने के लिए 13 तरह के डॉक्यूमेंट जमा करने की जगह किसी एक सीधी-साधी प्रक्रिया को अपनाया जाए.

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5-आत्महत्या केवल पुरुष किसान नहीं बल्कि महिला किसान भी करती हैं. लेकिन महिलाओं को किसानों का दर्जा नहीं दिया जाता. वजह उनके नाम कृषि योग्य भूमि का न होना है. ऐसे में खेती के काम में लगी महिलाओं को महिला किसान का दर्जा देने की पहल की जाए. जिससे की किसानों के लिए शुरू हुई सरकारी सहायता की योजनाएं महिलाओं को भी मिल सकें. किसान सम्मान निधि जैसी मदद का लाभ महिलाएं उठा सकें.

6-2010 से लेकर अब तक आत्महत्या कर चुके किसानों की लंबित या बिना जांच किए हुए मामलों की जांच दोबारा शुरू की जाए.

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