
शरणार्थियों की समस्या वैश्विक स्तर की ज्वलंत समस्याओं में से एक है. दुनिया के ज्यादातर देश शरणार्थियों को लेकर परेशान हैं. युद्ध, अत्याचार और अन्य हिंसा के कारण एक बड़ी आबादी हर साल अपने जड़ से अलग होने को मजबूर है. एक रिपोर्ट के अनुसार, 2018 में वैश्विक स्तर पर हर दूसरा शरणार्थी (रिफ्यूजी) एक बच्चा रहा और करीब 1,11,000 बाल शरणार्थी अपने परिवार के बगैर रहने का दंश झेल रहे हैं.
20 जून को विश्व शरणार्थी दिवस से पहले यूनाइटेड नेशंस हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजीज (यूएनएचसीआर) की ओर से जारी रिपोर्ट के अनुसार 2018 में युद्ध और हिंसा समेत कई अन्य कारणों से 7 करोड़ (71 मिलियन) से ज्यादा लोगों को अपना घर छोड़ने को मजबूर होना पड़ा.
देश में एक निर्वासित प्रधानमंत्री
60 साल पहले 1959 में दलाई लामा के नेतृत्व में डेढ़ लाख तिब्बती तिब्बत छोड़कर भारत आ गए और आज भी वे अपने देश नहीं लौट सके हैं. स्थिति यह है कि तिब्बती भारत में रहकर निर्वासित सरकार चला रहे हैं.
लोबसांग सांगेय केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के प्रधानमंत्री हैं. सांगेय तिब्बत की निर्वासित सरकार के दूसरे प्रधानमंत्री जिन्हें तिब्बत के राजनीतिक और आध्यात्मिक नेता दलाई लामा के राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा के बाद प्रधानमंत्री के रूप में पूरी दुनिया में फैले तिब्बती समाज के लोगों ने चुना. 2011 में वे पहली बार निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री बने. वे लगातार दूसरी बार 27 अप्रैल 2016 को निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री चुने गए.
70 साल में सबसे ज्यादा
यूएनएचसीआर के आकलन के अनुसार यह आंकड़ा पिछले 70 सालों में सबसे ज्यादा है. रिपोर्ट बताती है कि 70.8 मिलियन (7 करोड़ 8 लाख) लोग मजबूरन अपने घर से दूर हो गए. हालांकि यह आंकड़ा अधिक भी हो सकता है क्योंकि वेनेजुएला की ओर इस संबंध में साफ आंकड़े नहीं दिए गए हैं. माना जाता है कि वहां पर करीब 40 लाख लोग शरणार्थी की जिंदगी जी रहे हैं.
युद्ध के कारण ढाई करोड़ बने शरणार्थी
वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार 7 करोड़ से ज्यादा शरणार्थी 3 अलग-अलग ग्रुप में रखे गए हैं. विवाद, युद्ध या उत्पीडन आदि कारणों से अपने देश छोड़ने वालों की संख्या 2018 में 2 करोड़ 59 लाख (25.9 मिलियन) रही जो 2017 की तुलना में 5 लाख ज्यादा है. दूसरा ग्रुप में वे शरणार्थी आते हैं जो अपने मूल देश में स्थायी आशियाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं और इस कारण उन्हें अन्य देशों में भटकने को मजबूर होना पड़ रहा है, इनकी संख्या 2018 के अंत में 35 लाख थी.
तीसरा ग्रुप उन लोगों की है जो अपने ही देश में विस्थापितों का जीवन जी रहे हैं और उनकी संख्या 4 करोड़ 13 लाख है. इस वर्ग के लोगों को इंटरनली डिसप्लेस्ड पीपुल (आईडीपी) भी कहा जाता है.
5 देश से 67 फीसदी शरणार्थी
दुनिया के दो-तिहाई शरणार्थी यानी कुल शरणार्थियों में से 67 फीसदी शरणार्थी महज 5 देशों के नागरिक हैं. शरणार्थियों की सबसे ज्यादा सीरिया से है जहां लंबे समय से हिंसा जारी है और पिछले साल 6.7 मिलियन यानी 67 लाख नागरिकों को इस कारण देश छोड़ना पड़ा. सीरिया के बाद अफगानिस्तान (2.7 मिलियन), दक्षिणी सूडान (2.3 मिलियन), म्यांमार (1.1 मिलियन) और सोमालिया (0.9 मिलियन) से सबसे ज्यादा नागरिकों को पलायन करना पड़ा.
आज की तारीख में हर 5 में से 4 शरणार्थी कम से कम पिछले 5 साल से विस्थापित जीवन जी रहे हैं, जबकि हर 5 में से 1 शरणार्थी 20 साल या उससे ज्यादा समय से अपनी जड़ से दूर है.
रोहिंग्या शरणार्थियों की दुर्दशा
युद्ध और आंतरिक अशांति का सामना कर रहे सीरिया और अफगानिस्तान के नागरिक शांति की तलाश में अपना देश छोड़ने को मजबूर हुए तो म्यांमार के रखाइन प्रांत में रहने वाले रोहिंग्या मुसलमानों की दुर्दशा खत्म होने का नाम नहीं ले रही. बौद्ध बहुल क्षेत्र रखाइन प्रांत में बौद्ध लोगों और रोहिंग्याओं मुसलमानों के बीच लगातार संघर्ष होते रहे हैं. इसके बाद सेना की कार्रवाई ने उनकी जिंदगी नरक बना दी. दुनिया के सबसे प्रताड़ित शरणार्थियों में गिने जाने वाले रोहिंग्या मुसलमान का भटकना जारी है.
2017 में म्यांमार की सेना की ओर से की गई कार्रवाई के कारण बड़ी संख्या में रोहिंग्या मुसलमानों को भारत समेत पड़ोसी मुल्कों में पनाह लेनी पड़ी. करीब 740,000 रोहिंग्या लोगों ने भागकर बांग्लादेश में पनाह ली. लेकिन उन्हें कहीं भी स्थायी जगह नहीं मिली. बांग्लादेश में रोहिंग्या मुस्लिमों की संख्या बढ़कर करीब 10 लाख हो गई है. रोहिंग्या मुस्लिमों को बांग्लादेशी मूल का माना जाता है. भारत के कई शहरों में भी रोहिंग्या रह रहे हैं और उनके खिलाफ प्रदर्शन होते रहे हैं. केंद्र सरकार भी कह चुकी है कि रोहिंग्या लोगों को वापस भेजा जाएगा.
2018 में 92,400 का पुर्नवास
हालांकि ऐसा नहीं है कि शरणार्थियों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हो रहा है. 2018 में 92,400 शरणार्थियों को फिर से बसाया गया. पुनर्वास का इंतजार कर रहे करोड़ों लोगों में यह महज 7 फीसदी ही है. अब तक 593,800 शरणार्थियों को वापस घर भेज दिया गया जबकि 62,600 लोगों को तटस्थ जगह पर बसाया गया.
आंकड़ों के जरिए विश्व शरणार्थी दिवस पर एक नजर
- 2001 से संयुक्त राष्ट्र और 100 से ज्यादा देश हर साल 20 जून को मनाते हैं विश्व शरणार्थी दिवस.
- दुनिया के 86 फीसदी शरणार्थी विकासशील देशों के नागरिक. 80 फीसदी शरणार्थी अपने मूल देश के पड़ोस में ही रहने को मजबूर.
- यूगांडा में 2,800 ऐसे बाल शरणार्थी हैं जिनकी उम्र 5 साल या उससे कम है और बिना परिवार के रह रहे हैं.
- दुनिया का सबसे बड़ा शरणार्थी कैम्प कीनिया के ददाब में है जहां पर 2,30,000 से ज्यादा लोगों ने पनाह ले रखी है. इसमें बड़ी संख्या सोमालिया लोगों की है जो 1991 में गृह युद्ध के कारण देश से पलायन करने को मजबूर हुए. कई तो तभी से यहां पर रह रहे हैं. 2016 के मध्य में यहां पर शरणार्थियों की संख्या 320,000 से ज्यादा थी. सुरक्षा कारणों से कई लोगों को वहां से हटाया गया.
-वैश्विक स्तर पर 2 करोड़ से ज्यादा शरणार्थियों की उम्र 18 साल से कम की है. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से यह बाल शरणार्थियों की यह सबसे बड़ी संख्या है.
-2016 के रियो ओलंपिक में पहली बार शरणार्थियों की टीम ने हिस्सा लिया था. इस टीम में इथोपिया, दक्षिणी सूडान, कांगो और सीरिया के शरणार्थियों को शामिल किया गया था.
- विवाद, युद्ध या उत्पीड़न आदि कारणों से अपने देश छोड़ने वालों की संख्या 2018 में 2 करोड़ 59 लाख (25.9 मिलियन) बढ़ी. 2012 की तुलना में यह दोगुनी संख्या.
- एक अनुमान के मुताबिक 2018 में 13 करोड़ 60 लाख लोगों को विवाद या अत्याचार होने के कारण विस्थापित होना पड़ा. औसतन देखा जाए तो 2018 में हर दिन करीब 37 हजार लोग अपने घर छोड़ने को मजबूर हैं.
- 2014 से सबसे ज्यादा सीरिया के लोग विस्थापित होने को मजबूर हुए.