
'आज जल दिवस है तो क्या हिंदूस्तान के हर गांव में गंगा बहा दी जाएगी...आज सबको पूरे दिन पानी मिलेगा, सबमर्सिबल बिना बिजली के चलने लगेंगे और गंदा पानी उगलने वाले नल साफ पानी उगलने लगेंगे?'
बनारस के लोहता गांव की साईदा के ये सवाल ट्विटर में ट्रेंड कर रहे #worldwaterday पर करारा तंज करते हैं. ये साईदा फिर आगे कहती है बिसलेरी की बोतल हाथों में लेकर जो लोग गांवो की समस्याओं पर माथे पर बल डाल-डालकर बहस करते हैं उनसे कहिए कभी हमारे बनारस घूम जाएं. हवाई बहसों की जगह कभी तो जमीनी बातें करें!
ये सारी बातें साईदा ने सोशल मीडिया पर लगातार जल संकट पर जाहिर की जा रही चिंता और तरह-तरह के सुझावों पर खीझ कर कहीं. वे और आग बबूला होती हैं और कहती हैं, लोग जल बचाने की बात कर रहे हैं, स्वच्छ जल की बात कर रहे हैं.
ये बात कहने वाले अधिकतर वो लोग हैं जो बिसेलरी का पानी पीने वाले हैं. कहने का मतलब है कि किसी दूर-दराज के गांव में रहने वाले लोगों को ये तो पता नहीं कि आज जल दिवस है लेकिन ये जरूर पता है कि उनके पुरवों में रोज ही जल संकट दिवस जरूर रहता है.
कस्बों और गांवों में पानी के लिए मुंह अंधेरे ही लंबी कतारों में लगना पड़ता है. जल संकट औरतों पर तो और गजब ढाता है. लड़कियों और महिलाओं को घर में सबसे पहले उठकर पानी का इंतजाम करना पड़ता है ताकि उनके घर के मर्द काम पर जा सकें. बच्चे खासतौर पर लड़कियां इसलिए स्कूल नहीं जा पातीं क्योंकि पानी भरने से उन्हें फुरसत नहीं मिलती. पानी के लिए कई किलोमीटर चलना इन इलाकों में रहने वाली लड़कियों और औरतों की किस्मत है.
क्या क्योटो में भी जल संकट से जूझते हैं लोग?
यूं तो वाराणसी, 'गंगा नदी' के किनारे बसी हुई है लेकिन यहां पानी की स्थिति ऐसी हो गई है कि अगर बिजली ना हो तो लोग पानी के लिए छटपटाते रह जाएं. बजरडीहां क्षेत्र के बख्तियार अहमद बताते हैं ‘ हमारे यहां पानी का एकमात्र साधन समरसेबल है. हमारे क्षेत्र में ना तो कोई कुआं बचा हुआ है और ना ही किसी हैंडपंप से पानी आता है.
एक हैंडपंप है जो कि खराब पड़ा हुआ है, अगर सबमर्सिबल वाले लोग पानी ना दें तो गरीब पानी के लिए तड़पते रह जायेंगे.’ वे आगे कहते हैं और आप जानते ही है उत्तरप्रदेश में बिजली कितनी मेहरबान रहती है!
लल्ल्लापुर के निशार अहमद बताते हैं कि यहां पानी का साधन सरकारी नल हैं, लेकिन बिजली नहीं रहेगी तो आप प्यासे मर सकते हैं. गर्मियों के दिनों में नल से पानी तो मिल जाता है लेकिन बिजली की कटौती खूब होती है और बरसात के दिन में इसी नल से नाले का पानी आने लगता है जिसमें बेतहाशा गंदगी और बदबू होती है.
बरसात में या तो कई किलोमीटर चलकर पानी भरने जाएं या फिर प्यासे मर जाएं? निशार कहते हैं सुना था बनारस क्योटो शहर की तर्ज में विकसित होगा. क्योटो के लोग भी क्या जल संकट से जूझते हैं?
लोहता की सईदा बताती हैं कि वो वक्त और था जब ताजा पानी नसीब होता था, अब सुबह-सुबह पानी भरकर रखना होता है उसी को अगले दिन सुबह तक चलाना होता है क्योंकि जिनके यहां समरसेबल है वो केवल एक ही वक्त पानी भरने को देते हैं, कुआं सूख चुके हैं हैंडपंप की हालत और भी ज्यादा ख़राब है.
रिजवाना तबस्सुम स्वतंत्र पत्रकार हैं. ये उनके निजी विचार हैं.
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