
साल 2016 दुनियाभर में सस्ते ईंधन के लिए याद किया जाएगा. अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट का सिलसिला 2014 में तब शुरू हुआ था जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल 114 डॉलर प्रति बैरल पर था और देश की राजधानी दिल्ली में पेट्रोल 72 रुपये लीटर बिक रहा था.
2014 से शुरू हुई यह गिरावट 2015 में जारी रही और फिर 2016 आते ही कच्चे तेल की गिरावट ने सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए. जहां जनवरी 2015 में कच्चा तेल 48 डॉलर प्रति बैरल पर थी, जनवरी 2016 आते-आते यह 30 डॉलर के नीचे पहुंच गई. माना जाने लगा कि वह दिन दूर नहीं जब कच्चा तेल एक बोतल मिनरल वॉटर से सस्ता हो जाएगा और कीमतें टूट कर 20 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच जाएंगी. जनवरी 2016 में दिल्ली में पेट्रोल 60 रुपये प्रति लीटर बेचा जा रहा था.
अब एक बार फिर कच्चा तेल अंतरराष्ट्रीय बाजार में मजबूती का रुख दिखा रहा है. बीते कई हफ्तों से रिकवरी करते हुए कच्चा तेल मौजूदा समय में 55 डॉलर प्रति बैरल के ऊपर पहुंच गया है. बाजार के जानकारों का मानना है कि तेल उत्पादन करने वाले देशों में कुछ सहमति बनने के आसार दिखाई दे रहें हैं, लिहाजा आने वाले दिनों में कीमतों में और भी मजबूती ही देखने को मिलेगी. इसके चलते मौजूदा समय में दिल्ली में पेट्रोल 67-68 रुपये प्रति लीटर बिक रहा है.
साल 2016 खत्म होते-होते कच्चा तेल उत्पादक देशों के संगठन OPEC ने अगले महीने से उत्पादन घटाने का फैसला किया है. इससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड के दाम 5 दिन में 18 फीसदी तक उछल गए हैं. माना जा रहा है कि भारत समेत दुनियाभर के बड़े कच्चा तेल इंपोर्ट करने वाले देशों में सस्ते पेट्रोल और डीजल का दौर अब खत्म हो गया है. लिहाजा 2017 के पहले छह महीने में घरेलू बाजार में पेट्रोल के दाम 80 रुपए तक पहुंच सकते हैं.
पिछले 2 साल से रूस, साऊदी अरब और अन्य क्रूड उत्पादक देश लगातार अपना प्रोडक्शन बढ़ा रहे थे. इसीलिए कीमतों में लगातार गिरावट देखने को मिल रही थी. अब इन देशों में आपसी समझौता हो जाने के बाद गिरावट का यह सिलसिला रुक चुका है. ये सभी देश वैश्विक मंदी के बीच कच्चे तेल से ज्यादा से ज्यादा कमाई कर अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने पर लगे थे. इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट हो रही थी जिसका सबसे बड़ा फायदा एशिया में चीन और भारत की अर्थव्यवस्था को सस्ते इंधन के तौर पर पहुंच रहा था.