
साल 2019 खत्म होने को है. यह साल राजनीतिक से लेकर अन्य दूसरे क्षेत्रों में ऐतिहासिक रहा लेकिन अर्थव्यवस्था के लिहाज से बुरा रहा. लोकसभा चुनाव की वजह से इस साल दो बार बजट पेश किया गया. वहीं अलग- अलग समय में वित्त मंत्री के तौर पर तीन लोग सक्रिय रहे.
साल के पहले महीने में वित्त मंत्री के तौर पर दिवंगत अरुण जेटली सक्रिय थे लेकिन तबीयत खराब होने की वजह से लोकसभा चुनाव से पहले 1 फरवरी 2019 को पीयूष गोयल ने अंतरिम बजट पेश किया. वहीं लोकसभा चुनाव के बाद बतौर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पदभार संभाला.
इस साल ऑटो, टेक्सटाइल, एफएमसीजी समेत कई बड़े सेक्टर में सुस्ती का दौर चला तो वहीं बेरोजगारी के मोर्चे पर भी सरकार, विपक्ष के निशाने पर रही. इसी तरह सरकार की ओर से अगले 5 साल में 5 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी के लक्ष्य का जिक्र किया गया. बहरहाल, आइए कुछ आंकड़ों से समझते हैं कि आर्थिक मोर्चे पर यह साल कैसा रहा.
जीडीपी 6 साल के निचले स्तर पर
आर्थिक मोर्चे पर मोदी सरकार के लिए सबसे बड़ा झटका जीडीपी ग्रोथ है. दरअसल, चालू वित्त वर्ष (2019-20) की दूसरी तिमाही में जीडीपी का आंकड़ा 4.5 फीसदी पहुंच गया है. यह करीब 6 साल में किसी एक तिमाही की सबसे बड़ी गिरावट है. इससे पहले मार्च 2013 तिमाही में देश की जीडीपी दर इस स्तर पर थी. अहम बात ये है कि देश की जीडीपी लगातार 6 तिमाही से गिर रही है. वहीं कोर सेक्टर भी 8 साल के निचले स्तर पर पहुंच गया.
वित्त वर्ष 2019 GDP ग्रोथ रेट
पहली तिमाही 8 फीसदी
दूसरी तिमाही 7 फीसदी
तीसरी तिमाही 6.6 फीसदी
चौथी तिमाही 5.8 फीसदी
वित्त वर्ष 2020 ग्रोथ रेट
पहली तिमाही 5 फीसदी
दूसरी तिमाही 4.5 फीसदी
कम हुआ रेटिंग एजेंसियों का भरोसा
इंडिया टुडे की डाटा इंटेलीजेंस यूनिट (DIU) ने साल की शुरुआत में रेटिंग एजेंसियों के अनुमानों की तुलना वर्तमान जीडीपी आंकड़ों से की तो पाया कि एक साल से भी कम समय में रेटिंग एजेंसियों ने वित्त वर्ष 2019-20 के लिए जीडीपी विकास दर का अनुमान 1.5 फीसदी तक घटा दिया है. DIU ने कुल आठ रेटिंग एजेंसियों/वित्तीय संस्थानों के आंकड़ों का विश्लेषण किया. इनमें भारतीय रिजर्व बैंक, भारतीय स्टेट बैंक, विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, क्रेडिट रेटिंग एजेंसी CRISIL, मूडीज और केयर रेटिंग्स शामिल हैं. साल की शुरुआत में लगभग इन सभी वित्तीय संस्थानों ने उम्मीद जताई थी कि भारत की जीडीपी की विकास दर इस साल 2018 से बेहतर रहेगी. हालांकि, ऐसा नहीं हुआ.
जीएसटी कलेक्शन लक्ष्य से दूर
जीएसटी कलेक्शन के मोर्चे पर भी यह साल सुस्त रहा. इस साल के पहले महीने यानी जनवरी में जीएसटी कलेक्शन 1 लाख करोड़ रुपये को पार कर गया. वहीं मौजूदा वित्त वर्ष (अप्रैल-मार्च) के अप्रैल, मई, जुलाई और नवंबर में जीएसटी कलेक्शन का आंकड़ा 1 लाख करोड़ को पार किया. लेकिन इसके बावजूद यह सरकार के लक्ष्य से करीब 40 फीसदी कम है. बीते दिनों शीतकालीन सत्र के दौरान वित्त राज्य मंत्री अनुराग सिंह ठाकुर ने सदन को इसकी जानकारी दी थी.
टैक्स कलेक्शन पर भी फेल
चालू वित्त वर्ष (1 अप्रैल 2019 से 31 मार्च 2020) में डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन, लक्ष्य के 50 फीसदी से भी कम हुआ है. बीते नवंबर महीने में सीबीडीटी की ओर से बताया गया कि सरकार का डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन अबतक 6 लाख करोड़ रुपये रहा है. जबकि सरकार ने इस वित्त वर्ष में करीब 13.5 लाख करोड़ रुपये के टैक्स कलेक्शन का लक्ष्य रखा है. ऐसे में सरकार को लक्ष्य हासिल करने के लिए 4 महीने में करीब 7.5 लाख करोड़ रुपये जुटाने होंगे.
राजकोषीय घाटे पर भी झटका
राजकोषीय घाटा के मोर्चे पर भी सरकार को झटका लगा है. पहले 7 महीनों यानी अप्रैल से अक्टूबर के बीच ही राजकोषीय घाटा मौजूदा वित्त वर्ष के लक्ष्य से ज्यादा हो गया है. शुरुआती 7 महीनों में राजकोषीय घाटा 100.32 अरब डॉलर रहा जो बजट में मौजूदा वित्त वर्ष के लिए रखे लक्ष्य का 102.4 फीसदी है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, अप्रैल से अक्टूबर की अवधि में सरकार को 6.83 अरब रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ जबकि खर्च 16.55 अरब रुपये रहा.
इकोनॉमी पर कम हुआ भरोसा!
हाल ही में आरबीआई ने एक सर्वे रिपोर्ट को जारी करते हुए बताया है कि नवंबर में देश का कन्ज्यूमर कॉन्फिडेंस इंडेक्स (CCI) 5 साल के निचले स्तर पर पहुंच गया है. यह 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद सबसे निचला स्तर है. कन्ज्यूमर कॉन्फिडेंस इंडेक्स में गिरावट का मतलब ये हुआ कि देश की इकोनॉमी को लेकर लोगों का भरोसा कम हुआ है और ग्राहक खरीदारी नहीं कर रहे हैं.
भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए यह चिंता की बात है. बता दें कि आरबीआई ने यह सर्वे रिपोर्ट देश के 13 बड़े शहरों में कुल 5,334 घरों से जुटाए गए आंकड़े के आधार पर तैयार की थी. इसी तरह इस साल बिजनेस सेंटीमेंट 3 साल के निचले स्तर पर पहुंच गया. इसका मतलब यह हुआ कि देश में कारोबार को लेकर कारोबारियों या कंपनियों का भरोसा कमजोर हुआ है.
बाजार ने देखा 17 साल का सबसे बुरा महीना
इस साल शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव देखने को मिला. सेंसेक्स ने 41 हजार अंक को पार किया तो वहीं निफ्टी 12 हजार के नए रिकॉर्ड स्तर को छु लिया. इसके बावजूद बीते जुलाई महीने में भारतीय शेयर बाजार में 17 साल की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई. आंकड़े बताते हैं कि जुलाई 2019 में निफ्टी 5.68 फीसदी लुढ़का है जबकि सेंसेक्स में 4.86 फीसदी की गिरावट देखने को मिली है. शेयर बाजार की ऐसी बुरी हालत साल 2002 में देखने को मिली थी. तब जुलाई के महीने में निफ्टी करीब 9.3 फीसदी और सेंसेक्स करीब 8 फीसदी तक टूट गया था. वहीं इस दौरान विदेशी निवेशकों का भी भारतीय बाजार पर भरोसा घटा है.
रेलवे का बुरा दौर!
हाल ही में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि भारतीय रेलवे की कमाई बीते 10 सालों में सबसे निचले स्तर पर पहुंच चुकी है. ताजा रिपोर्ट के मुताबिक रेलवे का ऑपरेटिंग रेशियो यानी परिचालन अनुपात वित्त वर्ष 2018 में 98.44 फीसदी तक पहुंच चुका है. इसका मतलब ये हुआ कि वित्त वर्ष 2017-18 में रेलवे ने 100 रुपये की कमाई के लिए 98 रुपये 44 पैसे खर्च कर दिए. यानी इस दौरान रेलवे को सिर्फ 1 रुपये 56 पैसे का मुनाफा हुआ.
महंगाई ने तोड़ी कमर
इस साल महंगाई ने भी आम लोगों की कमर तोड़ दी. प्याज, टमाटर समेत अन्य सब्जियां हों या फिर पेट्रोल, डीजल और सोना-चांदी हों, इनकी कीमतों में इजाफे ने आम लोगों की कमर तोड़ दी. सोना 40 हजार रुपये प्रति 10 ग्राम के रिकॉर्ड स्तर को पार कर लिया तो वहीं चांदी 50 हजार रुपये प्रति किलोग्राम के भाव पर बिका. प्याज 120 रुपये किलो तो टमाटर 100 रुपये किलो के भाव पर पहुंच गया. इन हालातों में आरबीआई ने हाल ही में महंगाई दर का अनुमान भी बढ़ा दिया है. इसका मतलब होली तक लोगों को महंगाई से राहत नहीं मिलेगी.