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हनुमन तप्‍पा की हालत बेहद नाजुक, ठीक से काम नहीं कर रहे किडनी और फेफड़े

सियाचिन में तैनात रहे पूर्व सैनिक इस बात को समझने में असमर्थ हैं कि आखिर बर्फ में 35 फीट नीचे 6 दिन तक दबे रहने के बाद भी एक जवान कैसे बच सकता है.

ब्रजेश मिश्र/गौरव सावंत
  • नई दिल्ली,
  • 10 फरवरी 2016,
  • अपडेटेड 6:33 PM IST

एक बार फिर भारतीय संस्कृति ने आधुनिक युग को अपना लोहा मनवा दिया. जीरो से कुछ ही डिग्री पारा लुढ़कने पर किसी का भी जीना मुहाल हो जाता है उन परिस्थितियों में वह शख्स एक नहीं दो नहीं बल्कि पांच दिन तक हिम समाधि लिए रहा. लगभग -45 डिग्री तापमान और 35 फीट मोटी बर्फ की परत के नीचे हिम का हीरो लांस नायक हनुमन तप्‍पा सांस रोक कर बैठा रहा. ऐसा सिर्फ संभव हुआ उसके लगातार योग करने की वजह से. हनुमन तप्‍पा के फेफड़े, लिवर और किड़नी ठीक से काम नहीं कर रहे हैं. उनकी हालत बेहद नाजुक बनी हुई है और उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया है.

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सियाचिन में भीषण हिमस्खलन में 35 फीट मोटी बर्फ की परत के नीचे करीब पांच दिन तक दबे रहने के बाद लांस नायक हनुमन तप्‍पा का जिंदा लौटना किसी चमत्कार से कम नहीं है. इस घटना में उनके बाकी 9 साथियों ने जान गंवा दी. हनुमन तप्‍पा की जान बचने के पीछे मुख्य वजह है उनका साहस, मजबूत संकल्प, विपरीत परिस्थितियों में भी जीने की इच्छा और सबसे अहम योगदान है योग का.

पूर्व सैनिक भी हैं हैरान
सियाचिन ग्लेशियर में हाल ही में जिन जवानों की पोस्टिंग हुई है या 1984 में सेना के ऑपरेशन मेघदूत के लॉन्च होने से लेकर लंबे समय तक वहां तैनात रहे पूर्व सैनिक इस बात को समझने में असमर्थ हैं कि आखिर बर्फ में 35 फीट नीचे पांच दिन तक दबे रहने के बाद भी एक जवान कैसे बच सकता है.

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साथियों को भी सिखाई थी सांस रोकने की कला
13 सालों से सेना में कार्यरत लांस नायक हनमन थप्पा एक धार्मिक सैनिक के रूप में जाने जाते हैं, जो योग की प्रैक्टिस भी करते हैं. सेना के एक अधिकारी ने कहा, 'हमें बताया कि वह न सिर्फ खुद योग की प्रैक्टिस करते हैं, बल्कि सांस रोकने की एक्सरसाइज अपने साथी जवानों को भी देते रहे हैं. मेडिकल साइंस इस मामले में शायद बेहतर ढंग से बता पाए लेकिन हमारा मानना है कि शायद हनुमनतप्‍पा की जान बचने में योग का अहम योगदान है. इसे ईश्वर का करिश्मा भी कह सकते हैं लेकिन योग की भूमिका ज्यादा खास है.'

फिलहाल जवान की हालत ठीक नहीं
उत्तरी ग्लेशियर में 19 मद्रास पोस्ट पर हिमस्खलन वाली जगह पर करीब 200 सैनिकों ने पांच दिनों तक खोजबीन की थी कि शायद 10 में से कोई जवान जीवित हो. बचाव टीम को खुद भी भरोसा नहीं हुआ जब उन्होंने हनुमन तप्‍पा को चेतन अवस्था में पाया. हालांकि वह सुस्त थे और उनकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी.

अधिकारी ने कहा, 'यह अविश्वसनीय है. बिना किसी तरह के एहतियात बरते सियाचिन में चार घंटे तक बच पाना भी मुश्किल है. वहां अब तक में यह ऐसा पहला मामला है जब कोई सैनिक पांच दिनों तक बर्फ में दबे रहने के बाद जिंदा लौटा हो.'

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कोमा में हैं लांस नायक हनमन थप्पा
मेडिकल रिपोर्ट के मुताबिक, लांस नायक हनुमन तप्‍पा की हालत ठीक नहीं है. वह कोमा में हैं और ब्लड प्रेशर लो है. जांच में यह भी पाया गया है कि उनका लिवर और किडनी सही से काम नहीं कर रहे.

पूर्व सैनिक बोले- मैंने देखा है वहां का मंजर
आर्म्ड फोर्स की मेडिकल सर्विस के पूर्व डीजी और रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल वेद चतुर्वेदी ने कहा. 'उच्च दाब वाले क्षेत्रों में योग सांस रोकने में काफी मददगार होता है. साथ ही सैनिक की मानसिक और धार्मिक मान्यताएं भी महत्वपूर्ण हैं.' उन्होंने कहा कि वह खुद सियाचिन की उसी जगह पर तैनात थे और उन्होंने करीब से उसे देखा है, वहां पांच दिनों तक बर्फ में दबे रहकर बच पाना किसी चमत्कार से कम नहीं है.

बाबा रामदेव ने कहा-यह चमत्कार नहीं
योगगुरु बाबा रामदेव ने इसे चमत्कार मानने से इनकार किया है. उन्होंने कहा, 'इसमें चमत्कार जैसा कुछ नहीं है. अत्यधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जो लोग योग करते हैं, न सिर्फ उनके फेफड़े ज्यादा मजबूत होते हैं, बल्कि उनका शरीर दूसरों के मुकाबले ऑक्सीजन का भी बेहतर इस्तेमाल करता है, उन जगहों पर खासकर जहां ऑक्सीजन की भारी कमी होती है.' योग गुरु ने कहा कि सांस रोकने की प्रैक्टिस ऊंचाई और ऑक्सीजन की कमी वाले इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए काफी महत्वपूर्ण है.

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भारत की पहल पर पूरी दुनिया ने योग को सराहा
बीते साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर योग दिवस मनाने की पहल की थी. जिसे दुनिया भर के डेढ़ सौ से ज्यादा स्वीकार किया था और संयुक्त राष्ट्र ने भी इसे स्वीकार किया. भारत की पहल पर योग की ताकत पूरी दुनिया में रंग ला रही है. पहली बार यह दिवस 21 जून 2015 को मनाया गया जिसकी पहल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 27 सितम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषण से की थी.

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