
अरविंद केजरीवाल के पुराने साथी योगेंद्र यादव ने आम आदमी पार्टी की 5वीं वर्षगांठ को एक सुंदर और शुभ अवसर बताया है. 'आजतक' से खास बातचीत करते हुए यादव ने आंदोलन के दिन याद किए और राजनीतिक दल के तौर पर जनलोकपाल कानून, भ्रष्टाचार मुक्त दिल्ली पर सवाल भी दागे हैं.
योगेंद्र यादव ने बताया कि जनलोकपाल की भावना भ्रष्टाचार से लड़ने का एक संकल्प था. उसके साथ बाकी पार्टियों ने धोखा किया, समझ आता है. कांग्रेस ने लागू नहीं होने दिया, बीजेपी ने सत्ता में आने के बाद आजतक लोकपाल नियुक्त नहीं किया. लेकिन, अफसोस यह है कि आम आदमी पार्टी ने भी यही किया.
दिल्ली विधानसभा में पास हुए जनलोकपाल बिल की कमी गिनाते हुए यादव ने बताया कि आम आदमी पार्टी की सरकार ने खुद जो लोकपाल बिल बनाया वो बीजेपी के उत्तराखंड में बनाए लोकपाल बिल से भी कमजोर था. जानबूझकर उस बिल में इस तरह के पेंच डाले गए कि कानून बने ही न. इस तरह के खेल करके बाहर वालों ने दगा किया ही था, साथ ही जनलोकपाल का झंडा उठाने वालों ने भी दगा किया है.
आगे योगेंद्र यादव बताते हैं कि रामलीला मैदान में जनलोकपाल की न्यूनतम मांग थी कि उसकी नियुक्ति का तरीका सरकार के दवाब से स्वतंत्र हो. लेकिन इनमें से कोई बात इस बिल में नहीं नजर आई. केंद्र सरकार अगर बहाने बनाये कि राज्य सरकार के अधिकार से बाहर तब भी समझ आता है लेकिन इसमें पेंच डाल दिया गया है कि कोई भी मंत्री या प्रधानमंत्री तक इसके दायरे में आएंगे, जिसे कोई सरकार स्वीकार नहीं करेगी.
आम आदमी पार्टी के दिल्ली में भ्रष्टाचार कम करने के दावे पर यादव ने साफ कहा कि अगर किसी सरकार ने भ्रष्टाचार कम कर दिया होता तो बड़ी बात होती लेकिन उसके बाद एमसीडी के चुनाव हो गए जिसे सबने देखा. दिल्ली की जनता ऐसी नहीं है कि जिस सरकार ने भ्रष्टाचार कम कर दिया हो उसे चुनाव में हरा दे और एमसीडी से बाहर निकाल दे.
योगेंद्र यादव का मानना है कि आज आम आदमी पार्टी बाकी पार्टियों के रास्ते पर चल निकली है और इस पार्टी से सवाल पूछे जा रहे हैं तो यह जनता की जीत है. 5 साल में लोकतंत्र की उपलब्धि यही है कि जो सवाल यह शीला दीक्षित से पूछते थे उससे ज्यादा अब जनता इनसे सवाल कर रही है.
5 साल के सफर को याद करते हुए योगेंद्र यादव ने आंदोलन से पैदा हुई आम आदमी पार्टी की एक आत्मा से तुलना की. उन्होंने कहा कि यह मौका है उस घटना को याद करने का जब लोकतंत्र ने नई अंगड़ाई ली है. लाखों लोगों ने सड़क पर आकर संकल्प लिया कि वो राजनीति बदल सकते हैं और बड़ी-बड़ी पार्टियों को काबू कर सकते हैं. मेरे लिए वो आत्मा ज्यादा जरूरी है बजाय उस काया के जो आम आदमी पार्टी के नाम से चल रही है. पार्टी की आत्मा जीवित रही तो नया शरीर खोज लेगी, और इसकी आत्मा बनी रहे यह मेरी चिंता है.