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वर्किंग मां-बाप अक्सर अपने बच्चे के साथ समय नहीं बिता पाते हैं. अपनी इस मजबूरी की भरपाई वो बच्चे की हर मांग पूरी करके करते हैं. उन्हें लगता है कि बच्चे की हर मांग पूरी कर देने से वो खुश हो जाएगा, जो काफी हद तक सच भी है. पर क्या ये सही तरीका है?
कई ऐसे मां-बाप हैं जो बच्चे के मुंह से निकलते ही उसकी मांग पूरी करने के लिए दौड़ पड़ते हैं लेकिन ये पूरी तरह से गलत है. ऐसा करने से बच्चा धीरे-धीरे जिद्दी होने लगता है. उसे ये पता चल जाता है कि उसके माता-पिता उसकी हर मांग को पूरी कर देगें.
बच्चा ये जान जाता है कि उसकी खुशी में ही उसके माता-पिता की खुशी है और वो उसके लिए कुछ भी कर सकते हैं. यही आदत आगे चलकर जिद और जिद से डिमांड में बदल जाती है. बच्चा ये मान लेता है कि उसकी हर मांग, चाहे वो जायज हो या नाजायज उसे पूरा करना उसके मां-बाप का दायित्व है.
लड़कपन में तो फिर भी मांगें संयमित और छोटी होती हैं लेकिन बड़े होने के साथ ये भी बड़ी होती जाती हैं. बाल विशेषज्ञ मानते हैं कि बच्चों को बचपन से ही संयमित बनाया जाना चाहिए ताकि वो आगे चलकर वो हर चुनौती का सामना कर सकें.
उन्हें बचपन से ही चीजों की कद्र करना सिखाया जाना चाहिए. उन्हें पता होना चाहिए कि मेहनत करके पैसा कमाया जाता है. उन्हें ये बिल्कुल नहीं लगना चाहिए पैसा खर्च करने के लिए ही होता है और उसके माता-पिता ने जो कुछ भी कमाया है, वो उसी के लिए है.
माता-पिता को चाहिए कि जब भी वो बच्चे को कुछ खरीद कर दें, उसका महत्व भी बताएं. इस तरह से बच्चे में अपनी चीजों के प्रति सर्तकता का भाव आता है और यही आदत आगे चलकर उसे दूसरों और दूसरों की चीजों के प्रति जिम्मेदार बनाती है.
बच्चे को पैसे का महत्व बताने का मतलब ये नहीं कि उसे बचपन से ही हिसाब-किताब में उलझा दिया जाए पर उसे ये जरूर पता होना चाहिए कि किसी भी चीज को खरीदने के लिए पैसे की जरूरत होती है और पैसे के लिए मेहनत करनी पड़ती है.
बच्चे को अगर इस बात का एहसास हो जाएगा तो वो अपने माता-पिता के प्रति भी ज्यादा जिम्मेदार रहेगा. उसे हमेशा इस बात का एहसास रहेगा कि उसके माता-पिता ने उसकी जरूरतों को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत की है.