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फेसबुक एक बार फिर से चर्चा में है. एक बार फिर से DeleteFacebook का हैशटैग भी चला. इस बार वजह ये है कि ऑस्ट्रेलिया में फेसबुक ने 18 फरवरी को सभी न्यूज लिंक्स ब्लॉक कर दिए. इसका मतलब ये कि ऑस्ट्रेलिया में लोग फेसबुक की न्यूज फीड में न्यूज नहीं देख सकते थे.
फेसबुक ने इस पर क्या कहा है?
--- ऑस्ट्रेलिया में कोई भी न्यूज पब्लिकेशन, उदाहरण के तौर पर ABC News, अपने फेसबुक पेज पर न्यूज लिंक्स शेयर नहीं कर सकते हैं.
--- ऑस्ट्रेलिया के फेसबुक यूजर्स वहां फेसबुक पर किसी भी न्यूज पब्लिकेशन, चाहे वो लोकल हो या इंटरनेशनल, वो उनके न्यूज अपनी न्यूज फीड में नहीं देख सकते हैं.
18 फरवरी को फेसबुक ऑस्ट्रेलिया में न्यूज लिंक्स शेयर करने पर रोक लगाया. सिर्फ इतना ही नहीं, कंपनी ने वहां कई पेज भी ब्लॉक कर दिए. इन पेज में सरकार ऑफिशियल हैंडल भी थे जिनमें कुछ इमरजेंसी सर्विस भी शामिल हैं. हालांकि फेसबुक ने ये कहा है कि पेज ब्लॉक करना एक Error है और जिन पेज पर न्यूज नहीं हैं उन पर कोई रोक नहीं है.
फेसबुक ऑस्ट्रेलिया में न्यूज से जुड़े पेज पर रोक क्यों लगा रहा है?
जाहिर सी बात है फेसबुक का ये कदम न तो ऑस्रें लिया के फेसबुक यूजर्स के लिए सही है और न ही वहां की मीडिया के लिए. फेसबुक के मुताबिक कंपनी ऐसा वहां के मीडिया बार्गेनिंग बिल के तहत कर रही है.
फेसबुक ने कहा है कि ये बिल ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने लाया है और फेसबुक के पास न्यूज लिंक पर रोक लगाने के सिवा कोई दूसरा रास्ता नही बचा है.
इस बिल से फेसबुक को क्या समस्या है?
इस बिल में ऐसा क्या है जिसकी वजह से फेसबुक को वहां न्यूज लिंक्स ब्लॉक करना पड़ा. दरअसल मीडिया बार्गेनिंग लॉ ये कहता है कि फेसबुक और दूसरी टेक कंपनियों को मीडिया ऑर्गनाइजेशन को उनके लिंक्स यूज करने के लिए पैसा देना चाहिए. क्योंकि फेसबुक जैसी कंपनियां उन मीडिया ऑर्गनाइजेशन्स के न्यूज लिंक से पैसे कमाती हैं.
इस बिल ये भी हाईलाईट किया गया है कि न्यूज ऑर्गनाइजेशन अपने कंटेंट तैयार करने के लिए काफी पैसे खर्च करती हैं. लेकिन फेसबुक और गूगल जैसी कंपनियां उन कंटेंट को फ्री में इस्तेमाल करते हैं.
हालांकि यहां फेसबुक की दलील ये भी है कि कंपनी को न्यूज कंटेंट से फायदा नहीं होता और इसके लिए कंपनी को पैसे देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है. फेसबुक का कहना है कि पैसे देने के लिए बाध्य करने से फ्री इंटरनेट का जो नेचर है वो टूटेगा.
फेसबुक के मुताबिक मीडिया ऑर्गनाइजेशन्स जो कंटेंट देते हैं वो स्वैच्छिक होता है और ऐसे में फेसबुक से उन्हें पैसे देने को नहीं कहा जा सकता है.
फेसबुक के इस कदम पर ऑस्ट्रेलिया सरकार का क्या कहना है?
18 फरवरी को फेसबुक ने जब ऑस्ट्रेलिया में सारे न्यूज लिंक्स ब्लॉक कर दिए तो इसे वहां सरकार ने ब्लैकमेलिंग का तरीका बताया है. ये ब्लैकमेलिंग जैसा लगता भी है.
ऑस्ट्रेलिया के पीएम स्कॉट मॉरिसन ने फेसबुक के इस कदम की आलोचना की है और इसे निराशानजनक बताया है. उन्होंने कहा है कि फेसबुक द्वारा हेल्थ और इमरजेंसी सर्विस सहित एसेंशियल इनफॉर्मेशन सर्विस को ब्लॉक करना कंपनी का ऐरोगेंट रवैया दर्शाता है. हालांकि इसके बावजूद भी अब वहां की सरकार इसे प्रोपोज्ड लॉ से पीछे न हटने की बात कर रही है.
क्या गूगल फेसबुक को सपोर्ट कर रहा है?
गौरतलब है कि गूगल भी मीडिया ऑर्गनाइजेशन्स के न्यूज लिंक का इस्तेमाल करता है, इसलिए जाहिर है गूगल भी इस बिल के खिलाफ है और फेसबुक का समर्थन कर रहा है. हालांकि गूगल ने इस तरह से न्यूज लिंक्स ब्लॉक करने जैसा काम नहीं किया है. गगूल ने अलग रास्ता अपनाया है.
हालांकि हाल ही में गूगल ने भी ऑस्ट्रेलिया से निकल जाने की धमकी दी और वहां सर्विस बंद करने की बात कही थी. लेकिन अब ऐसा नहीं है. अब गूगल ने ऑस्ट्रेलिया के मीडिया ऑर्गनाइजेशन्स के साथ पार्टनर्शिप की है और उनके कंटेंट के लिए उन्हें पैसे भी देगी.
आगे क्या होगा?
फिलहाल ऐसा लग रहा है कि फेसबुक अपने इस फैसले के साथ बना रहेगा. यानी ऑस्ट्रेलिया में न्यूज ऑर्गनाइजेशन्स अभी के लिए तो फेसबुक पर लिंक्स पुश नहीं कर सकेंगे. लेकिन इससे फेसबुक का नुकसान भी है. क्योंकि फेसबुक यूजर्स इससे निराश होंगे.
इस स्थिति में फेसबुक कुछ समय तक यूजर्स का रिएक्शन भी नोटिस करेगा और इस हिसाब से आगे कुछ तय करेगा. अगर फेसबुक यूजर्स भी ऑस्ट्रेलिया की सरकार को सपोर्ट करते हैं और लिंक्स ब्लॉक करने की वजह से कंपनी का विज्ञापन का बिजनेस खराब होता है तो ऐसी स्थिति में कंपनी को ये फैसला वापस लेना पड़ सकता है.
हालांकि अगर फेसबुक यूजर्स ऑस्ट्रेलिया की सरकार पर ही निशाना साधते हैं तो ऐसे में फेसबुक अपने इस फैसले के साथ आगे भी बना रह सकता है. क्योंकि फेसबुक चाहेगा कि पब्लिक के प्रेशर में सरकार ये बिल वापस ले.
क्या भारत में ऐसा हो सकता है?
भारत में फिलहाल ऐसा होता नहीं दिख रहा है. लेकिन अगर ऑस्ट्रेलिया फेसबुक के खिलाफ ये जंग जीत लेता है तो दूसरे देशों में भी इस तरह के बिल लाने पर चर्चा हो सकती है. क्योंकि दूसरे देशों के मीडिया ऑर्गेनाइजेशन्स भी चाहेंगे कि जैसे ऑस्ट्रेलिया में फेसबुक उन्हें ट्रीट कर रहा है वैसा हर जगह हो.