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गूगल और फेसबुक से न्यूज कंटेंट के लिए वसूले जाएंगे पैसे, जानिए सरकार का प्लान

सर्च इंजन मार्केट में Google का दबदबा है और इसका असर काफी सेक्टर्स पर पड़ता है. खासकर मीडिया संस्थान काफी प्रभावित होते हैं. गूगल के एकाधिकार को खत्म करने के लिए भारत सरकार जल्द ही एक बड़ा कदम उठा सकती है.

Google Google
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 18 जुलाई 2022,
  • अपडेटेड 2:46 PM IST
  • खत्म होगा गूगल का एकाधिकार?
  • सरकार कर रही बड़ी तैयारी, जल्द आएगा प्लान
  • गूगल और दूसरी टेक कंपनियों की मनमानी खत्म होगी

दुनिया की बड़ी टेक कंपनियों जैसे गूगल और फेसबुक पर आए दिन अपनी मोनॉपली बनाने का आरोप लगता रहता है. इन कंपनियों पर छोटी कंपनियों को बंद करवाने तक का आरोप लग चुका है. अमेरिका में समय समय पर बड़ी टेक कंपनियों के सीईओ को संसद में बुला कर तीखे सवाल किए जाते हैं और आरोप भी लगाए जाते हैं. कई बार गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियों पर अरबों का जुर्माना भी लगाया जा चुका है. 

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भारत में अब तक इस तरह का उदाहरण देखने को नहीं मिला है. बड़ी टेक कंपनियां भारत में भी अपना एकाधिकार बना कर रखती हैं, लेकिन अमेरिका की तरह यहां इन कंपनियों पर ज्यादा सख्ती नहीं दिखती है. बहरहाल अब ऐसा लग रहा है कि इन कंपनियों पर कुछ हद तक शिकंजा कसा जा सकता है.

भारत में रेवेन्यू शेयरिंग को लेकर गूगल पर पिछले कुछ समय से आरोप लग रहे हैं. खास तौर पर बड़े पब्लिकेशन की तरफ से ये आरोप लगाए जाते हैं कि रेवेन्यू शेयरिंग का मॉडल सही नहीं है और इससे गूगल का फायदा हो रहा है, जबकि इन कंपनियों का नुकसान हो रहा है. इनमें मुख्य रूप से मीडिया हाउसेज शामिल हैं. 

गूगल और दूसरी टेक कंपनियों के एकाधिकार खत्म करने के लिए भारत सरकार प्लान तैयार कर रही है. विभिन्न न्यूज पेपर और टीवी चैनल्स गूगल और दूसरे बड़े टेक फर्म की अनुचित और एकतरफा प्रैक्टिस का विरोध कर रहे हैं. माना जा रहा है कि सरकार एक एकतरफा प्रैक्टिस को खत्म करने के लिए प्लान कर रही है. 

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प्रपोज्ड प्लान के बाद बड़ी टेक कंपनियों और भारतीय मीडिया के बीच विभिन्न रेवेन्यू शेयरिंग एग्रीमेंट्स में निष्पक्षता आएगी. सरकार के साथ बातचीत में इन मीडिया हाउस के प्रतिनिधियों ने गूगल पर कई आरोप लगाए हैं. उन्होंने बताया है कि गूगल अपने पैसे, टेक्नोलॉजी और स्थान का गलत इस्तेमाल करता है. जबकि इसके खिलाफ उन लोगों के पास कोई पावर नहीं है. 

आपको बता दें कि सर्च इंजन मार्केट में गूगल के पास एक बड़ा हिस्सा है और इन मार्केट में उसका दबदबा है. साल 2012 के Matrimony.com Limited vs Google LLC & Ors  केस में Competition Commission of India  ने कहा था कि ऑनलाइन जनरल वेब सर्च मार्केट में गूगल का दबदबा है. 

कमिशन गूगल पर एंटी-कॉम्पिटिटिव प्रैक्टिस की वजह से 136 करोड़ रुपये का जुर्माना भी लगा चुका है. फरवरी 2022 में CCI ने डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन द्वारा गूगल की शिकायत की जांच का आदेश दिया था. भारतीय मीडिया हाउस इस मामले को MEITY, CCI, TRAI और IB मिनिस्ट्री समेत विभिन्न फोर्म्स के आगे रख चुके हैं. 

सूत्रों की मानें तो भारतीय लीडरशिप इस मामले में सही दिशा में फैसला ले रही है. सोर्सेस के मुताबिक मीडिया इंडस्ट्री लीडर्स का कहना है कि वह बड़ी टेक कंपनियों या फिर गूगल की ग्रोथ या मौजूदगी के खिलाफ नहीं हैं. बल्कि वह केवल अनुचित बिजनेस प्रैक्टिस का विरोध कर रहे हैं. बड़ी टेक कंपनियों की मोनोपोली का यह रवैया सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं है. 

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यह दिक्कत दुनियाभर में है और दिग्गज टेक कंपनियों के कथित मनमानी के खिलाफ एक ग्लोबल लड़ाई चल रही है. इस तरह की प्रैक्टिस का शिकार कई देशों की न्यूज इस्टैब्लिशमेंट इंडस्ट्री हो चुकी है. जैसे-जैसे ये प्रैक्टिस सामने आती जा रही है देशों ने इनसे निपटने का तरीका खोजना शुरू कर दिया है. कानूनी कार्रवाई या फिर जुर्माना लगाकर इन कंपनियों के एकाधिकार को खत्म करने की कोशिश हो रही है.

फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया ने इसके लिए विशेष कानून इंट्रोड्यूश किया है, जिससे घरेलू न्यूज पब्लिशर को मदद मिल सके. वहीं कनाडा ने एक बिल टेबल किया है, जिसमें गूगल के दबदबे को खत्म करने और फेयर रेवेन्यू शेयरिंग नेगोशिएशन की बात कही गई है. 

जुलाई 2021 में गूगल पर 592 डॉलर का जुर्माना लगा था. यह जुर्माना एंट्रीट्रस्ट रेगुलरेटर्स ऑर्डर ना मानने की वजह से लगा था. कुछ वक्त पहले ही अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस ने गूगल के खिलाफ शिकायत की है. विभाग ने यह कदम सर्च और एडवर्टाइजमेंट में कंपटीशन को रिस्टोर करने और गूगल की मोनोपॉली को खत्म करने के लिए उठाया है. 

मामला अमेरिका के कोलंबिया जिया अदालत में है. दिसंबर 2020 में लगभग 40 राज्यों ने गूगल के खिलाफ न्यूयॉर्क के साउथ डिस्ट्रिक्ट में एंट्रीट्रस्ट मामला दायर किया था. साल 2017 में गूगल पर 2.7 अरब डॉलर का फाइन यूरोपियन यूनियन ने लगाया था. फाइन सर्च में प्रतिद्वंदियों के खिलाफ गलत तरीके से अपनी शॉपिंग सर्विसेस को बढ़ावा देने की वजह से लगा था. 

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साउथ कोरिया की संसद ने अगस्त 2021 में एक बिल पास किया था. इस बिल में गूगल और ऐपल जैसे ऐप स्टोर ऑपरेटर्स पर ऐप डेवलपर्स को ऐप्स खरीदने के लिए उनके बिलिंग सिस्टम को यूज करने के लिए फोर्स करने की वजह से बैन किया गया था.

भारत में CCI गूगल पर एक्शन लेने में आगे रहा है. साल 2019 में CCI ने गूगल के खिलाफ जांच का आदेश दिया था. यह आदेश साल 2018 में एक शिकायत को लेकर था, जिसमें गूगल पर भारत में एंड्रॉयड डॉमिनेंसी का गलत इस्तेमाल करने का आरोप लगा था.

नवंबर 2020 में CCI ने पेड ऐप्स और इन-ऐप पर्चेज के लिए गूगल प्ले स्टोर के पेमेंट सिस्टम यूज को जरूरी करने पर भी जांच के आदेश दिए थे. इस पड़ताल में यह भी चेक किया जाना है कि क्या गूगल पेमेंट बिजनेस Google Pay ने भी डिजिटल पेमेंट मार्केट में अपने दबदबे का गलत इस्तेमाल किया है. जून 2021 में CCI ने गूगल के खिलाफ भारतीय स्मार्ट टीवी मार्केट में जांच के आदेश दिए थे.

विभिन्न मीडिया ऑर्गेनाइजेशन के एडोटोरियल हेड्स ने गूगल पर अप्रमाणित, कई तरह के गलत कंटेंट और फेक न्यूज की दिक्कत को उठाया है. वे कहते हैं कि Google का AI बुरी तरह से फेल हो रहा है और तथाकथित तटस्थता का गलत इस्तेमाल हो रहा है, जिससे रिडर्स को जिससे सही न्यूज प्रदान करने की फंडामेंटल घटना पर खतरा है.

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अनजान और अप्रमाणित पोर्टल्स के भ्रामक कंटेंट को प्रमोट किया जा रहा है. ट्रेडिशनल भारतीय मीडिया घरानों ने कई बार कहा है कि उनके द्वारा जनरेट न्यूज कंटेंट के लिए कुछ सेल्फ-रेगुलेटरी मैकेनिज्म या थर्ड पार्टी ओवरसाइट का प्रावधान है, जबकि न्यू एज के अकेले डिजिटल मीडिया और सभी प्रकार की न्यूज को चैनलाइज करने वाले Google जैसे बड़े टेक्नोलॉजी दिग्गजों के पास कोई सेल्फ रेगुलेटरी नियम और कोई ओवरसाइट मैकेनिज्म नहीं है. 

सूत्रों की मानें तो ये सब जल्द ही खत्म हो सकता है. रिफॉर्म्स का एक नया सेट भारतीय न्यूज पब्लिशर्स के लिए ना केवल उचित रेवेन्यू शेयरिंग लाएगा, बल्कि फेक न्यूज आदि के खतरे को भी काफी हद तक कम कर सकता है।

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