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उस एक महिला की कहानी, जिसकी कुर्बानी की बुनियाद पर खड़ी है चीन की अरबों-खरबों की सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री

सेमीकंडक्टर कहें या चिप... सिलिकॉन और जर्मेनियम से बनने वाली ये छोटी सी डिवाइस मॉर्डन साइंस का आधार है. हमारे पड़ोसी चीन में इस इंडस्ट्री के खड़े होने की स्टोरी एक चीनी लड़की की विज्ञान यात्रा की कहानी है. अमेरिका पढ़ने आई इस लड़की ने पेंसिलवेनिया की एक फिजिक्स लैब में एक सपना देखा. आजीवन अविवाहित रही इस लड़की की बाकी जिंदगी इसी सपने को जीने की एक रोमांचक कहानी है.

सिलिकॉन, जर्मेनियम का क्रिस्टल बना चीन की सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री का आधर (फोटो- Getty) सिलिकॉन, जर्मेनियम का क्रिस्टल बना चीन की सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री का आधर (फोटो- Getty)
पन्ना लाल
  • नई दिल्ली,
  • 22 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 4:29 PM IST

उस रोज अमेरिकी कस्टम और FBI के अधिकारी बड़ी सरगर्मी से एक चीनी महिला की तलाश कर रहे थे. उनकी तलाश उन्हें यूएस के एक बंदरगाह तक ले आई. यहां से पानी का एक जहाज कुछ ही घंटों में हॉन्गकॉन्ग की ओर रवाना होने वाला था. अमेरिकी अधिकारियों की टीम उस जहाज के पास पहुंची और 39 साल की एक महिला को पिन प्वाइंट कर लिया. महिला जहाज पर चढ़ने ही जा रही थी. कुछ ही मिनटों में ये लेडी इन्टेरोगेशन रूम में कस्टम और FBI अफसरों से घिरी थीं और अपने जवाब से उनका विश्वास जीतने की मुश्किल कोशिश कर रही थी.

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इन अफसरों को निर्देश था- ये महिला किसी भी हालत में अमेरिकी सीमा से बाहर नहीं जाने पाए. कस्टम की टीम ने महिला का सारा समान मेज पर बिखेर दिया. एक-एक चीज कस्टम और FBI की नजरों से स्कैन होने लगी. कपड़े, किताबें, खाने का सामान, बक्से, सब कुछ.

FBI का इन्टेरोगेशन और पसीने से भीगी महिला

महिला का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था, लेकिन वे शांत होने का दिखावा ही कर सकती थी. तब फिजिक्स की इस साइंटिस्ट के शरीर में तेजी से केमिकल रिएक्शन हो रहे थे. बॉडी पसीने से भीग रही थी. तभी एक अफसर ने 2 छोटे-छोटे बॉक्स उछालते हुए महिला से प्रश्न किया- इनमें क्या है? महिला को लगा एक हथौड़ा सीधे उसके सिर पर आकर गिरा हो. उनकी आवाज मिमियाने सी हो चली थी. बक्से में बंद था चीन की सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री का आने वाला कल.

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लेकिन उसने खुद को संभाला. हौसले को बटोरा और गंभीरता से कहा, "ओह, प्लीज...इसे सावधानी से उठाएं, ये वो दवाएं हैं जिन्हें मैंने विशेष रूप से अपनी मां के फेफड़ों की बीमारी के इलाज के लिए खरीदा है, ये बहुत महंगी हैं!"

लेकिन इंतजार कीजिए, इन बक्सों में दवाएं नहीं बल्कि वो मैटेरियल छिपा था जिस पर आज चीन की अरबों अरब डॉलर की सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री इतरा रही है. जिस महिला की हम चर्चा कर रहे हैं तत्कालीन दुनिया की सेमीकंडक्टर साइंस की वो बेस्ट टैलेंट थीं. नाम था लिन लैनयिंग (Lin Lanying). 

'मदर ऑफ चाइनीज सेमीकंडक्टर' को साबित करनी थी बेगुनाही 

साइंटिस्ट लैनियिंग को एक लाइन में बस इतना ही समझ लीजिए कि उन्हें मदर ऑफ चाइनीज सेमीकंडक्टर (Mother of Chinese semiconductor) कहा जाता है. इस बेशकीमती मैटेरियल और इस सॉलिड स्टेट फिजिक्स (Solid state physics) साइंटिस्ट की कठिनतम साधना के दम पर चीन ने अपना पहला सेमीकंडक्टर Mono-crystalline silicon बनाया था. तब इस उपलब्धि को हासिल करने वाला चीन विश्व का तीसरा देश था.

चीन की सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री लगभग 200 अरब डॉलर की है (फोटो- getty image)

फिलहाल पूछताछ के उस कमरे में चलते हैं जहां लिन लैनयिंग को किसी भी तरह से अपनी बेगुनाही साबित करनी थी. उनके सामने चुनौती ये थी कि वो अफसरों के सामने इन दो बक्सों की पहचान को कैसे छिपाएं. क्योंकि इस बॉक्स की सच्चाई उजागर होने का मतलब था कई संभावनाओं का एकदम से अंत. क्योंकि ऐसी स्थिति में न सिर्फ लिन लैनयिंग के अमेरिका से चीन जाने पर ताउम्र रोक लग जाती, बल्कि उन्हें बेहद संवेदनशील पदार्थ को बाहर ले जाने के जुर्म में न जाने कितने सालों तक कैद में भी रहना पड़ता. 

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क्या था उन डिब्बों में? क्यों चीन ले जाना चाहती थी लिन लैनयिंग?

अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिलवेनिया की पीएचडी छात्रा और चीन की फ्यूचर 'मदर ऑफ सेमीकंडक्टर मैटेरियल' लिन लैनयिंग अपने वतन जाने के लिए बेकरार थीं. साइंस और थ्रिल की ये कहानी आज से 66 साल पुरानी है. साल 1957 की. 1949 में माओत्से तुंग के नेतृत्व में चीन में साम्यवादी क्रांति हुई और आधुनिक चीन अस्तित्त्व में आया. जैसा कि हर नए मुल्क के साथ होता है, चीन में भी तब विज्ञान और इस पर रिसर्च करने वाली संस्थाएं आकार नहीं ले सकी थीं. इसलिए विज्ञान में करियर बनाने की रुचि रखने वाले लड़के-लड़कियों को अपने सपनों को पूरा करने के लिए अमेरिका और यूरोप की ओर रुख करना पड़ता था. 

ऐसी ही परिस्थिति में चीन के फूजियान प्रांत के प्यूतियान शहर में 1918 में एक बेहद ही परंपरागत परिवार में जन्मी बच्ची लिन लैनयिंग ने उच्चतर अध्ययन की वो शाखा चुनी जहां पुरुषों का बोलबाला था. उन्होंने विज्ञान को चुना और भौतिकी में रच बस गईं. 22 साल की उम्र में फ्यूकिएन विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन करने वाली लिन लैनयिंग अपनी यूनिवर्सिटी की क्रीम माइंड थीं. ऑप्टिक्स, क्रिस्टल, थर्मल, मैटेरियल साइंस उनके मन को मोहने वाले टॉपिक थे. इसके बाद 8 साल तक उन्होंने यहीं पर बतौर टीचर सेवाएं दीं.

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1948 की बात है, चीन सिविल वार में जल रहा था. लिन लैनयिंग की महत्वाकांक्षा उन्हें चीन से बाहर ले जाना चाह रही थी, लेकिन बात बन नहीं रही थी. तब फ्यूकिएन विश्वविद्यालय का न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के साथ एक्सचेंज प्रोग्राम था. लिन लैनयिंग इसके लिए योग्य उम्मीदवार थीं, लेकिन चूंकि वे क्रिश्चयन नहीं थीं इसलिए मौका चूक गईं. 

कैलकुलस पर पकड़ की वजह से कहलाईं 'ओरिएंटल जीनियस'

इसके बाद लिन ने अमेरिका के डिकिंश्न कॉलेज में अप्लाई किया. यहां उन्हें फुल स्कॉलरशिप मिली. अपने मेरिट के दम पर लिन साम्यवादी चीन की स्थापना से एक साल पहले 1948 में अमेरिका आ गईं. यहां से उन्होंने गणित में स्नातक किया. कैलकुलस पर लिन की गजब की पकड़ की वजह से प्रोफेसर उन्हें 'ओरिएंटल जीनियस' कहा करते थे.

लिन ने अपने अनुभवों से पाया कि रोजाना की जिंदगी में उनके लिए गणित से ज्यादा उपयोगी भौतिकी है. इसलिए वे एक बार फिर से भौतिकी की ओर मुड़ गईं.  उनका अगला पड़ाव पेंसिलवेनिया यूनिवर्सिटी था. लिन लैनयिंग ने पेंसिलवेनिया यूनिवर्सिटी से सॉलिड स्टेट फिजिक्स में मास्टर्स और 1955 में पीएचडी की उपाधि ली. इसके साथ ही वे अब मैटेरियल इंजीनियर बन गईं. लिन 100 साल में इस यूनिवर्सिटी से पीएचडी करने वाली पहली चीनी विद्यार्थी थीं.

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लिन के लिए आगे का समय कॉलेज-विश्वविद्यालयों में अर्जित ज्ञान के प्रैक्टिकल एप्लीकेशन का था. उनकी पढ़ाई का जो विषय था वो अगले कुछ दशकों में निर्माण, यांत्रिकी, दूरसंचार और परिवहन को बदलने वाला था. उनके सपनों में चीन था. चीन का आने वाला वैज्ञानिक कल.

बता दें कि मैटेरियल इंजीनियर परमाणु स्तर पर पदार्थ का अध्ययन करते हैं और उसे इंडस्ट्री की जरूरतों के अनुसार तैयार करते हैं. ये इंजीनियर मैकेनिकल, केमिकल, इलेक्ट्रिकल, सिविल, न्यूक्लियर और एयरोस्पेस जैसे क्षेत्रों की समस्याओं का निदान ढूंढ़ते हैं. 

1951 में US ने बनाया दुनिया का पहला सेमीकंडक्टर

1951 में अमेरिका के बेल लैब्स में दुनिया का पहला सेमीकंडक्टर सिंगल क्रिस्टल जर्मेनियम विकसित किया गया. इस खोज और भविष्य पर इसके असर की संभावना ने सनसनी मचा दी. अमेरिका में 7 साल गुजारने के बाद लिन लैनयिंग स्वेदश लौटना चाहती थीं, लेकिन चीन राजनीतिक बवंडर से गुजर रहा था. इधर साम्यवादी चीन और पूंजीवादी अमेरिका के बीच रिश्ते की डोर भी अकड़ती जा रही थी. 1951 में अमेरिकी इमिग्रेशन विभाग ने एक सरकारी आदेश जारी कर चीनी छात्रों, खासकर साइंस रिसर्च स्कॉलरों के चीन लौटने पर पाबंदी लगी दी. 

वर्ल्ड वार के बाद अमेरिका चमकदार भविष्य की गारंटी था

1945 में जापान पर परमाणु हमला कर चुका अमेरिका विज्ञान की शक्ति को देखकर भौचक्का था. अमेरिकी महत्वाकांक्षा हर फील्ड में नंबर वन बनने की थी. तब अमेरिका में विज्ञान के क्षेत्र में थ्योरी और प्रैक्टिकल दोनों ही जगहों पर अपार मौके थे. यूएस आकर्षक सैलरी और चमचमाते भविष्य की गारंटी था. 

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चीनी शोधार्थी लिन लैनयिंग (फाइल फोटो)

1955 में ऐसी ही एक अमेरिकी कंपनी Sylvania में लिन लैनयिंग को बतौर सीनियर इंजीनियर नौकरी मिल गई. ये कंपनी सेमीकंडक्टर पर रिसर्च कर रही थी. सेमीकंडक्टर वह पदार्थ है जो धातु और अधातु दोनों के गुणों का पालन करता है. इसका इस्तेमाल करंट और हीट के फ्लो को नियंत्रित करने से जुड़ा है. जर्मेनियम और सिलिकॉन सेमीकंडक्टर के सबसे चर्चित उदाहरण हैं. आम बोल-चाल की भाषा में इन्हें चिप भी कहा जाता है.

जब लिन के लैब में बना सिलिकॉन सिंगल क्रिस्टल 

लिन लैनयिंग जब इस कंपनी में आईं तो उन्हें पता चला कि कंपनी सिलिकॉन सिंगल क्रिस्टल बनाने में कई बार फेल हो रही थी. इंजीनियर को इसमें कामयाबी नहीं मिल रही थी. बता दें कि सिलिकॉन एक रासायनिक तत्व है. इसे सेमीकंडक्टर का सबसे अच्छा स्रोत माना जाता है. लिन ने इस चुनौती को अपने हाथ में लिया. कुछ ही हफ्तों के एक्सपेरिमेंट के बाद लिन ने इस कंपनी में पहला सिलिकॉन सिंगल क्रिस्टल बनाने में कामयाबी पाई. ये एक बड़ी खोज थी. इस खोज ने सिलिकॉन सेमीकंडक्टर तकनीक के दरवाजे खोल दिए.

मैटेरियल इंजीनियर लिन अब अमेरिकी साइंस कम्युनिटी में हैवीवेट बन चुकी थीं. सेमीकंडक्टर पर उनके रिसर्च पेपर संयुक्त राज्य अमेरिका के "फिजिकल रिव्यू" जैसी आधिकारिक और प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में छप चुके थे. अमेरिका ने उनकी इस खोज का पेटेंट करवाया. Sylvania ने लिन लैनयिंग को 'टफ चाइनीज वूमन' की उपाधि दी. 

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लिन का चीन उन्हें बार बार पुकार रहा था

साइंस बिरादरी में लिन लैनयिंग की खूब चर्चा हुई. इस कंपनी में 1956 में उनकी सैलरी 10 हजार डॉलर प्रति महीने कर दी गई. उन्हें दूसरी कंपनियों से ऑफर आ रहे थे. लेकिन लिन का चीन उन्हें बार-बार पुकार रहा था. इसके लिए वे कई त्याग करने को भी तैयार थीं. इसी समय अगर वे चीन में नौकरी करतीं तो साम्यवादी चीन की व्यवस्था के अनुसार उनकी सैलरी 207 युआन यानी मात्र 30 डॉलर होती.  
इस बीच 1956 में चीन ने जेनेवा कॉन्फ्रेंस पर हस्ताक्षर किए. इसके साथ ही विदेशों में पढ़ रहे चीनी छात्रों को स्वदेश लौटने का मौका मिला. लिन को इसी का इंतजार था उन्होंने चीन वापसी के लिए आवेदन दिया. उन्होंने कारण बताते हुए कहा कि उनकी मां गंभीर रूप से बीमार है और उनका अपने देश लौटना जरूरी है. 

अब लिन FBI के रडार पर थीं

लेकिन FBI तब तक लिन लैनयिंग के पीछे लग चुकी थी. उन्हें कई तरह से संदेश दिए गए. लिन लैनयिंग को कहा गया कि वे अपनी मां को यहां बुला लें, उन्हें सर्वोत्तम मेडिकल सुविधा दी जाएगी. FBI ने यह भी ऑफर दिया कि अगर वे चाहें तो अपने पूरे परिवार को ही अमेरिका बुला लें, मेहमानों का पूरा ख्याल रखा जाएगा. दरअसल अमेरिका सेमीकंडक्टर क्षेत्र के इस ब्रिलियंट ब्रेन को किसी भी हालत में छोड़ना नहीं चाहता था. 

लेकिन लिन किसी भी सूरत पर राजी नहीं थीं. उन्होंने सभी प्रलोभनों को ठुकरा दिया. रिपोर्ट के अनुसार FBI ने दबाव की रणनीति बनाई. कई बार सख्ती से भी पेश आई. लिन लैनयिंग का इस्तीफा जब Sylvania के एचआर डिपार्टमेंट में पहुंचा तो सभी सन्न रह गए. कूटनीतिक दबाव में उनके त्यागपत्र को लगभग 6 महीने तक रोका गया. हर सवाल के जवाब में लैनयिंग सिर्फ यही कहतीं- मेरी जन्मभूमि को मेरी जरूरत है.

 FBI ने सीज कर लिए लिन के डॉलर

6 जनवरी 1957 का लिन का रिटर्न टिकट कंफर्म था. FBI ने आखिरी कोशिश की. लिन लैनयिंग अमेरिका को अलविदा कहने के लिए जहाज पर बैठने ही वाली थीं कि एफबीआई ने कस्टम अधिकारियों के साथ धावा बोल दिया. 

अमेरिका और चीन दुनिया की सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री के दो दिग्गज हैं. (फोटो- Reuters image)

एक बार बात फिर उसी कमरे की है जहां लिन लैनयिंग से पूछताछ चल रही थी. FBI ने उनके सामान को खंगाला तो कुछ डॉलर के बिल्स निकले. रकम थी 6800 डॉलर. 1957 में ये बड़ी धनराशि थी. ये लैनयिंग की अबतक की कमाई थी. उन्हें एक बार फिर लालच दिया गया कि अगर वे अमेरिका में रुक जाती हैं तो सारा पैसा वापस कर दिया जाएगा. नहीं तो ये रकम अमेरिकी सरकार की हो जाएगी. पर लैनयिंग फिर से अडिग, अटल रहीं. 

बक्से में थे 50 और 100 ग्राम के क्रिस्टल 

लेकिन जब अमेरिकी अफसरों की नजर दो छोटे-छोटे बक्सों पर पड़ी और उन्होंने इस बाबत लैनयिंग से सवाल पूछा तो वे बामुश्किल पैरों की कंपकंपाहट रोक पाईं. ऊपर हमने कहा था- आखिर इस बॉक्स में क्या था. इस बॉक्स में थे दो ठोस टुकड़े. एक बक्से में था 50 ग्राम जर्मेनियम सिंगल क्रिस्टल (Germanium single crystals) दूसरे में था 100 ग्राम (Silicon single crystals). ये दोनों ही सेमीकंडक्टर थे, जिसे लैनयिंग ने लैब में तैयार किया था. 1957 में अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत 2 लाख डॉलर थी. आज इसके मूल्य का आकलन आप कर सकते हैं. 

मां की दवाई है, डॉलर ले लीजिए, लेकिन...

डॉलर पाकर बौराये अमेरिकी अफसरों को ये बक्से महत्वहीन लगे. उनके पास इसे पहचान पाने की न तो नजर थी और न ही इच्छा. एक अफसर ने दो बार हिलाकर लैनयिंग से पूछा- इसमें क्या है? लैनयिंग जितना संभव हो सके, शांत रहने की कोशिश करने लगीं. उन्होंने बॉक्स की ओर बिना देखे हुए कहा- आप डॉलर ले लीजिए, लेकिन ये दवाएं मेरी मां के लिए है, उनका जीवित रहना बहुत आवश्यक है. अफसरों ने डॉलर सीज कर लिए, बक्से को फिर हिलाया और आखिरकर लैनयिंग को वापस कर दिया. अफसर नहीं जानते थे कि इन बक्सों में चीन सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री का भविष्य छिपा है. 

जर्मेनियम और सिलिकॉन क्रिस्टल को लिन ने सीने से लगाया

लैनयिंग को इन दो पदार्थों को डेवलप करने में लगभग एक साल लगा था. US अफसरों का डॉलर का लालच ही लैनयिंग के लिए अमेरिका से चीन वापसी का टिकट बनकर आया. अफसरों के जाने के बाद उन्होंने उन दो बक्सों को अपने सीने से लगाया. ये अपनी मातृभूमि के लिए उनकी ओर से एक अमूल्य तोहफा था. इसके साथ ही उनके आंखों के कोर गीले हो गए. 

चाइनीज अकेडमी ऑफ साइंसेज को सौंपा 50 और 100 ग्राम के क्रिस्टल

अगले कुछ ही दिनों में लैनयिंग हॉन्गकॉन्ग पहुंचीं. इसके बाद अपने भाई के साथ वे बीजिंग आईं. चीन के प्रधानमंत्री झोउ एनलाई उनकी वापसी पर खुद ही नजरें टिकाए बैठे थे. बीजिंग आकर लिन लैनयिंग चीन का अपना सेमीकंडक्टर बनाने के अपने सपने को जीने के लिए जी-जान से जुट गईं. चीन में उनकी एंट्री चाइनीज अकेडमी ऑफ साइंसेज (Chinese Academy of Sciences) में हुई. उन्होंने जर्मेनियम सिंगल क्रिस्टल और सिलिकॉन सिंगल क्रिस्टल को चाइनीज अकेडमी ऑफ साइंसेज को सौंप दिया. बिल्कुल मुफ्त. 

चीन का पहला सिलिकॉन सिंगल बनाने में जुटीं लिन

लीन लैनयिंग इंस्टीट्यूट ऑफ अप्लाइड फिजिक्स में काम करने लगीं. उनका लक्ष्य था चीन का पहला सिलिकॉन सिंगल क्रिस्टल बनाना. सिंगल क्रिस्टल सिलिकॉन अपनी उत्कृष्ट खूबियों के कारण सबसे व्यापक रूप से उपयोग किया जाने वाला सेमीकंडक्टर है. लिन के दो बेशकीमती तोहफों ने चाइनीज अकेडमी ऑफ साइंसेज को सेमीकंडक्टर बनाने में बहुत मदद की. पूरी टीम ने इसका बारीकी से अध्ययन किया और इसकी बनावट और कम्पोजिशन को समझा. इससे उन्हें बड़ी मदद मिली. कई प्रयोगों में इसका इस्तेमाल रॉ मैटेरियल के रूप में किया गया.

6 महीने में चीन ने बनाया जर्मेनियम सिंगल क्रिस्टल

लीन लैनयिंग ने वापसी के बाद सबसे पहले जर्मेनियम सिंगल क्रिस्टल बनाने की ठानी. लेकिन इसके सबसे जरूरी गैस ऑर्गन चीन बना नहीं पा रहा था और इसका आयात प्रतिबंधित था. बतौर मैटेरियल इंजीनियर लैनयिंग को इसे बनाने का तरीका तो पता था लेकिन ऑर्गन का न होना बड़ी बाधा बन रहा था. लैनयिंग इस एक्सपेरिमेंट पर लैब में घंटों बिता रही थीं. आखिरकार उन्होंने अपने टैलेंट के दम पर इसे बनाने की प्रक्रिया ही बदल डाली. लैनयिंग की वापसी के मात्र 6 महीने बाद चीन ने अपना जर्मेनियम सिंगल क्रिस्टल बना लिया. 

आधुनिक विज्ञान का आधार है चिप. फोटो- (Getty image)

अब लैनयिंग के एक और सपने के साकार होने का समय था. बाधाएं तो थीं. लेकिन इंजीनियर लैनयिंग का दिमाग इसे हर हाल में पीछे छोड़ना चाहता था. 1958 की पतझड़ ऋतु से पहले चीन ने अपना पहला सिलिकॉन सिंगल क्रिस्टल बना लिया. यह एक चमकदार काला बेलनाकार सिलिकॉन सिंगल क्रिस्टल था जिसकी लंबाई 8 सेमी और व्यास 5.08 सेमी था. 

अगर आप ऊपर 50 और 100 ग्राम सेमीकंडक्टरों की बात सुनकर हैरान थे तो अब उनकी तुलना कुछ सेंटीमीटर लंबे इन क्रिस्टलों से कर लीजिए. 

एक के बाद एक कामयाबी...

इसके बाद चीन की सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री कुलांचें भरने लगी. इसके लीड रोल में थीं लीन लैनयिंग. 1962 में, उन्होंने मोनो-क्रिस्टल फ्यूरेंस डिजाइन किया. इसी वर्ष, उन्होंने चीन में पहला मोनो-क्रिस्टल गैलियम आर्सेनाइड बनाया. साइंटिफिक बिरादरी के लोग इन कामयाबियों को चीन की मौजूदा भारी भरकम सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री का आधार मानते हैं. वहीं इन्हीं प्रयोगों की वजह से आजीवन अविवाहित रहने वाली, और भौतिकी को समर्पित लिन लैनयिंग मदर ऑफ चाइनीज सेमीकंडक्टर कही जाती हैं. 

कहा जाता है कि 1980 में बैंक ऑफ चाइना ने संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ बातचीत की और लिन लैनयिंग के उन 6800 डॉलर को वापस लिया जो यूएस कस्टम के अधिकारियों ने 1957 में जब्त कर लिए थे.

550 अरब डॉलर की है सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री

अगर साल 2023 की बात करें तो चीन फिलहाल दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सेमीकंडक्टर उपभोक्ता है और तीसरा सबसे बड़ा सेमीकंडक्टर निर्माता है. साल 2023 में विश्व की सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री के 550 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है. विशाल इलेक्ट्रोनिक, वैमानिकी और कम्प्यूटर मार्केट की वजह से दुनिया की कुल खपत के 38 फीसदी सेमीकंडक्टर की खपत चीन में होती है. जबकि दुनिया के कुल उत्पादन का 15 फीसदी प्रोड्क्शन चीन में होता है. डॉलर में बात करें तो चीन की सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री लगभग 200 अरब डॉलर की है.

अमेरिका से बढ़ते तनाव, यूरोप के कई देशों से टकराव और चीन की टेकनो जायंट बनने की महत्वाकांक्षा के बीच चीन की सरकार ने सेमीकंडक्टर उद्योग को और भी ऊंचाइयों पर ले जाने की ठानी है. जिसका उद्देश्य चीन को सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री का ग्लोबल लीडर बनाना है. 

सेमीकंडक्टर का साइंस इतना जरूरी क्यों?

सेमीकंडक्टर का साइंस आज हमारी जिंदगी की हर जरूरत में शामिल है.  कंप्यूटर, मोबाइल फोन, टैबलेट, स्मार्ट टीवी, इलेक्ट्रॉनिक गेम, वाहन, औद्योगिक उपकरण, चिकित्सा उपकरण, सुरक्षा, रिमोट सेंसिंग, सैटेलाइट प्रक्षेपण में इसका प्रयोग किया जाता है. 

सेमीकंडक्टर विद्युत के फ्लो को नियंत्रित करने और संचार करने के लिए आवश्यक क्षमता प्रदान करते हैं. सेमीकंडक्टर डिवाइसेस, जैसे कि ट्रांजिस्टर्स, डायोड्स, और इंटीग्रेटेड सर्किट्स (ICs), सभी आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माण में उपयोग होते हैं. इनके बिना, हमारे आधुनिक तकनीकी उपकरण और सिस्टम काम नहीं कर सकते हैं. इंटरनेट के जरिए हम क्लाउड कम्प्यूटिंग का भी उपयोग करते हैं, जो विशाल सेमीकंडक्टर आधारित डेटा सेंटर्स पर आधारित होते हैं. ये सेवाएं डेटा स्टोरेज, वेब होस्टिंग के लिए आवश्यक होती हैं.

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