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फोन नंबर से ट्रैक कर सकते हैं लोकेशन? पुलिस ऐसे करती है ट्रैकिंग, जानिए पूरा तरीका

Location Tracking: क्या आप किसी यूजर की लोकेशन ट्रैक करना चाहते हैं? इसके लिए आपके पास सिर्फ उसका फोन नंबर है? ऐसे में क्या किसी की लोकेशन ट्रैक की जा सकती है. आइए जानते हैं पुलिस कैसे ट्रैक करती है यूजर्स की लोकेशन.

Location Tracking का वो तरीका, जो पुलिस करती है इस्तेमाल Location Tracking का वो तरीका, जो पुलिस करती है इस्तेमाल
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 20 जुलाई 2022,
  • अपडेटेड 2:45 PM IST
  • फोन नंबर से ट्रैक कर सकते हैं किसी की लोकेशन?
  • इसके लिए स्पाइवेयर या टेलीकॉम कंपनी की मदद चाहिए होगी
  • पुलिस भी इन्हीं तरीकों से ट्रैक करती है लोगों को

क्या आप किसी की लोकेशन को उसके फोन नंबर से ट्रैक करना चाहते हैं? बहुत से लोग इस फिराक में रहते हैं. चाहे गर्लफ्रेंड/बॉयफ्रेंड की लोकेशन ट्रैक करनी हो, या फिर किसी शख्स की लाइव लोकेशन जाननी हो. आप ऐसा उसकी मर्जी के बिना सिर्फ मोबाइल नंबर से नहीं कर सकते हैं. बहुत से लोग ऐसे तरीकों की तलाश में गूगल के पन्नों को खंगातले रहते हैं, लेकिन उनके हाथ ट्रैप्स ही लगते हैं. 

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अगर आप ऐसे किसी तरीके के तलाश में निकलते हैं, तो गूगल आपको किसी भूल भुलैया की तरह इधर-से उधर घुमाता रहेगा. आपके हाथ कोई भी वाजिब तरीका नहीं लगेगा.

क्या ये मान लिया जाए कि ऐसा कोई तरीका नहीं है? नहीं, तरीके तो कई हैं, लेकिन उन तक आपकी पहुंच होना मुश्किल है. आइए जानते हैं मोबाइल नंबर से किसी के फोन को ट्रैप करने का तरीका. 

स्पाई सॉफ्टवेयर 

पेगासस का नाम आपने सुना होगा. यह एक स्पाइवेयर है, जिसकी मदद से किसी की जासूसी उसकी जानकारी के बिना की जा सकती है. मगर यह कोई 100 या हजार रुपये वाला सॉफ्टवेयर नहीं है.

इसका इस्तेमाल कई देशों की मिलिट्री और सरकारें कर रही थी. हालांकि, पकड़े जाने के बाद इस सॉफ्टवेयर को बैन कर दिया गया है. अगर आप गूगल सर्च की मदद लेंगे, तो ऐसे कई फर्जी सॉफ्टवेयर आपके हाथ लगेंगे.

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ये सॉफ्टवेयर ना सिर्फ आपके फोन से डेटा चोरी कर सकते हैं, बल्कि आपको गलत जानकारी भी देंगे. इससे आपको ऐसा लगेगा कि सॉफ्टवेयर फोन नंबर की मदद से दूसरे यूजर्स को ट्रैक कर रहा है. 

फिर पुलिस कैसे करती है काम?

पुलिस भी किसी को ट्रैक करने के लिए उसके मोबाइल नंबर या फिर फोन के IMEI नंबर को यूज करती है. इसके लिए पुलिस को टेलीकॉम कंपनी से कॉपरेट करना होता है.

टेलीकॉम कंपनी पुलिस को यह जानकारी देती है कि ट्रैकिंग पर लगाया गया नंबर किसी सेल टावर के पास एक्टिव है और कितनी दूरी पर है. इससे पुलिस टीम अपराधियों की लोकेशन की लगभग जानकारी मिल जाती है. 

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