आज किसानों और सरकार के बीच छठे राउंड की बात होनी थी लेकिन वो टल गई. सरकार को किसानों के सामने अपना लिखित प्रस्ताव रखना था. सरकार ने रख दिया. किसान सरकार के प्रस्तावों से खुश नहीं हैं. सवाल ये है कि जो किसान कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं, क्या वे सरकार के प्रस्ताव को मानेंगे? जाहिर है अब लड़ाई नीतियों से ज्यादा उसूलों की हो गई है. सरकार नहीं चाहती कि वो इस मसले पर हारती हुई नजर आए. ऐसे में सरकार प्रस्तावों के जरिए अपनी साख के साथ मुद्दे से भी अपनी गर्दन बचाना चाह रही है. लेकिन क्या ये इतना आसान है? देखिए तेज मुकाबला.