इंग्लैंड और वेल्स में 6.1 करोड़ से ज्यादा चिकन को उपयोग से मना कर दिया गया था. कारण था चिकन में फैली बीमारी और कमियां. इंग्लैंड और वेल्स के ब्रॉयलर्स में 5.90 करोड़ मुर्गियों में कमियां पाई गई थीं. इनमें से 3.90 करोड़ मुर्गियों में तो बीमारी का अंदेशा भी था. इसलिए इंग्लैंड और वेल्स के स्लॉटर हाउस ने इनका उपयोग करने से मना कर दिया था. हर दिन करीब 35 हजार चिकन वापस लौटाए जा रहे थे. (फोटोः गेटी)
द गार्जियन की इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म ब्यूरो ने इस मामले का खुलासा किया है. इंग्लैंड और वेल्स के फूड स्टैंडर्ड एजेंसी (FSA) ने कहा कि पूरी मुर्गी या मुर्गी के किसी हिस्से में कोई न कोई कमी थी. या फिर वो बीमार थी. ये मुर्गियां इंसानों के खाने के लिए उपयुक्त नहीं थीं. (फोटोः गेटी)
जांच रिपोर्ट के अनुसार जो डाटा मिला है वो जुलाई 2016 से जून 2019 के बीच का है. जिसमें मुर्गियों को बीमार या विभिन्न प्रकार की कमियों से ग्रसित पाया गया है. इस दौरान कुल मिलाकर 61,008,212 मुर्गियां बीमार या कमियों से ग्रसित मिलीं. जांच के दौरान इन्हें स्लॉटर हाउस के लिए भेजना सही नहीं पाया गया. (फोटोः गेटी)
स्कॉटलैंड में साल 2016 से 2018 के बीच कुल 17 लाख बीमार मुर्गियां मिलीं और 25 लाख मुर्गियों को तत्काल वापस कर दिया गया. नया डाटा पिछले महीने आया है. इसके आंकड़ों को अनुसार आमतौर पर पोल्ट्री फॉर्म्स में 10 हजार मुर्गियों में से 400 मर जाती थीं. यानी 4 फीसदी या तो मर जाती हैं या फिर बीमारियों की वजह से मार दी जाती थीं. (फोटोः गेटी)
FSA के अनुसार 1.36 करोड़ मुर्गियों की लाशें तो इस दौरान वापस लौटाई गईं, जो किसी न किसी तरीके से मर जाती थीं. या फिर ट्रांसपोर्ट, मशीन में सफाई, पंख निकालने के दौरान बीमार होने की वजह से मर जाती थीं. FSA के प्रवक्ता के अनुसार ये मुर्गियों के खिलाफ किसी प्रकार की ज्यादती नहीं है, बल्कि इंसानों को बचाने का एक प्रयास है. (फोटोः गेटी)
इंग्लैंड में हर हफ्ते 2 करोड़ मुर्गियां काटी जाती हैं. इनमें से ज्यादातर मुर्गियां उन प्रजाति की हैं जो सिर्फ 35 दिन में बड़ी हो जाती हैं. मुर्गियों के तेजी से बढ़ने की यह दर 1950 के ब्रॉयलर मुर्गियों से चार गुना ज्यादा है. (फोटोः गेटी)
इंग्लैंड और वेल्स में 30 लाख चिकन तो स्लॉटर हाउस में जाते समय हार्ट अटैक से मर जाते हैं. ज्यादा तेजी से बढ़ने वाली मुर्गियों में ऑक्सीजन की खपत ज्यादा होती है. लेकिन इन्हें इस हालात में रखा जाता है कि ऑक्सीजन की कमी से इन्हें दिल का दौरा पड़ जाता है. ये मर जाती हैं. (फोटोः गेटी)