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कानपुर: अटल बिहारी वाजपेयी जैसा संयोग, 84 साल के बुजुर्ग ने बेटे संग LLB में लिया दाखिला

रंजय सिंह
  • कानपुर,
  • 24 सितंबर 2021,
  • अपडेटेड 3:46 PM IST
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भारत के मैनचेस्टर कहे जाने वाले शहर कानपुर ने एक बार फिर अपने इतिहास को दोहराया है. आज से करीब 73 साल पहले पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न अटल बिहारी वाजयेपी ने कानपुर यूनिवर्सिटी से साल 1945 से 1948 के बीच अपने पिता के साथ कॉलेज में दाखिला लेकर एलएलबी (वकालत) की शिक्षा पूरी की थी. वहीं अब 2021 में एक बार फिर एक पिता और पुत्र एक साथ एलएलबी की पढ़ाई कर रहे हैं. इस पिता पुत्र ने सीएसजीएम यूनिवर्सिटी (कानपुर विश्वविद्यालय) में एडमिशन लिया है.

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अटल बिहारी वाजयेपी और सीताराम में इतना अंतर है कि जब पूर्व पीएम ने अपने पिता के साथ एडमिशन लिया था तो वो नौजवान थे जबकि सीताराम और उनके पुत्र वृद्धावस्था की तरफ बढ़ रहे हैं. 

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अटल बिहारी वाजयेपी ने 1948 में जिस डीएवी कॉलेज से अपने पिता के साथ एलएलबी की पढ़ाई पूरी की थी उसी डीएवी शिक्षा संस्थान में सीताराम ने अपने बेटे के साथ एलएलबी करने के लिए दाखिला लिया है. बता दें कि जब अटल बिहारी वाजयेपी ने कानपुर यूनिवर्सिटी में प्रवेश लिया था तो उस वक्त यह आगरा में आता था.
 

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इन दोनों के बीच  एक  समानता ये भी है की अटल बिहारी वाजपेयी की माता का नाम कृष्णादेवी और पिता का नाम कृष्ण बिहारी था. वहीं 84 साल के सीताराम की पत्नी का नाम भी कृष्णा देवी और पिता का नाम कृष्ण बिहारी है.
 

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सीताराम कानपुर के पीएफ ऑफिस से इनफोर्समेंट अधिकारी के पद से रिटायर्ड हुए है जबकि उनके बेटे ललित रक्षा मंत्रालय में अधिकारी हैं और उनके रिटायर होने में भी बस एक साल का वक्त बचा है. सीताराम के चार बेटे और बेटियां है जबकि उनसे आठ नाती-पोते हैं  

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नवाबगंज में रहने वाले सीताराम ने साल 1960  में ग्रेजुएशन किया था और 1995 में वह इंफोर्समेंट ऑफिसर के पद से रिटायर हुए. उनका बेटा ललित डिफेंस मिनिस्ट्री में कार्यरत है. उम्र के आखिरी पड़ाव में सीताराम के एलएलबी करने की वजह बेहद खास है. उन्होंने बताया कि साल 1998 में  एसजीपीजीआई अस्पताल में डॉक्टरों की लापरवाही के कारण मेरी पत्नी की मौत हो गई थी.

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सीताराम ने बताया, 'न्याय के लिए मैंने सबसे पहले उपभोक्ता फोरम में गुहार लगाई. यहां से सुप्रीम कोर्ट तक लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी और साल 2018 में जीत हासिल की. हालांकि जीत में मिले मुआवजे की तुलना में उनका कई लाख रुपये अदालती और कानूनी लड़ाई में खर्च हो गया लेकिन इन 20 सालों की लड़ाई में कानून को लेकर उनके मन में जिज्ञासा जग गई और खुद वकील बन कर लोगों को न्याय दिलाने की इच्छा होने लगी.

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उन्होंने कहा, वह दो साल पहले ही एलएलबी करना चाहते थे तब सरकार ने एलएलबी में आयु सीमा निर्धारित कर रखी थी लेकिन 2020 में ये पाबंदी हटा  दी गई.  इसके बाद उन्होंने  यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. विनय पाठक से मुलाकात की और प्रवेश के लिए अनुमति मांगी थी जो उन्हें मिल गई. इसके बाद उन्होंने अपने बेटे के संग मिलकर वकालत की पढ़ाई करने की ठानी और कॉलेज में दाखिला ले लिया. 
 

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