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म्यांमार चुनाव: वो नेता जिसकी जीत भारत और चीन दोनों चाहते हैं

aajtak.in
  • 10 नवंबर 2020,
  • अपडेटेड 4:13 PM IST
Aung San Suu Kyi has majority in Myanmar
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दक्षिण एशियाई देश म्‍यांमार में नोबेल शांति पुरुस्कार विजेता आंग सान सू की पार्टी बहुमत के करीब पहुंच गई है. वर्तमान राष्ट्रपति आंग सान सू की ने दावा किया है कि वे सत्ता पर काबिज रहेंगी. वहीं, सबसे बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि म्‍यांमार की सत्ता इस बार फिर आंग सान सू की अगुवाई वाली नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) को मिलती है, तो किसे फायदा होगा? 

Aung San Suu Kyi has majority in Myanmar
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राष्ट्रपति आंग सान सू की का भारत से गहरा रिश्ता है. वर्तमान संबंध भी अच्छे हैं, तो वहीं चीन भी यही चाहता है कि म्यांमार की सत्ता की डोर सू के हाथों में ही रहे. ऐसा पहली बार हो रहा है कि भारत और चीन दोनों किसी बात पर एकमत हुए हैं. लेकिन इसके पीछे वजह क्या है. म्‍यांमार में हुए आम चुनाव के नतीजे आने में करीब 7 दिन का समय लग सकता है. 

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​अभी तक 642 सदस्यीय संसद के लिए हुए चुनाव में 9 विजेताओं के नाम की घोषणा की गई है. ये सभी विजेता सत्तारूढ़ पार्टी एनएलडी के हैं. पार्टी के प्रवक्ता मोनीवा आंग शिन ने दावा किया कि वे बहुमत के आंकड़े 322 से अधिक सीटों पर जीत दर्ज करेंगे. जीत के ये नतीजे 377 तक पहुंच सकते हैं. हालांकि माना जा रहा था कि इस बार आंग सान सू के लिए जीत आसान नहीं होगी.  

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आंकलन ये किया जा रहा था कि 2015 में एनएलडी का साथ देने वाली अल्पसंख्यकों पर आधारित जातीय पार्टियों से जिस तरह रिश्ते खराब हुए, उससे पार्टी को कुछ सीटों पर नुकसान हो सकता है. 

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म्‍यांमार की वर्तमान राष्ट्रपति आंग सान सू की से भारत के रिश्तों की बात करें तो बता दें कि सू का दिल्ली से गहरा नाता है. उन्होंने दिल्ली में रहकर पढ़ाई की है. इसके बाद जब म्‍यांमार में सेना ने सत्ता पर कब्जा कर लिया था, तो उस दौरान उन्हें कई बार नजरबंदी के दौर से भी गुजरना पड़ा. 

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इस दौरान अप्रत्यक्ष रूप से उनकी भारत सरकार ने पूरी मदद की थी. जिसके बाद से आंग सान सू की के भारत से गहरे संबंध हो गए. यही कारण रहा कि भारत ने म्‍यांमार के कालादान प्रोजेक्ट डील को फाइनल किया. 

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भारत से आंग सान सू की बेहद नजदीकियां मानी जाती हैं, लेकिन चीन भी इस चुनाव में चाहता है कि सत्ता पर वही काबिज हों. कारण है कि चीन सरकार के प्रति​निधियों को लगता है कि म्यांमर के सैन्य शासन में किसी जनरल को मनाना उनके लिए आसान नहीं होगा, जबकि वे एनएलडी के नेताओं से आसानी से अपनी बात मनवा सकते हैं. 

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बता दें कि सू म्‍यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के विवाद से खुद को दूर रखने और आर्थिक लाभ के लिए कुछ साल से चीन के बेहद करीब हैं, लेकिन म्यांमार की सेना विद्रोहियों को हथियार, पैसा और समर्थन देने के कारण चीन का विरोध कर रही है.

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