उत्तराखंड में ऋषिगंगा में आई बाढ़ की वजह अभी तक नंदा देवी ग्लेशियर के किसी हिस्से का टूटना बताया जा रहा था. लेकिन अंतरराष्ट्रीय भूगर्भ विज्ञानी और ग्लेशियरों के जानकार यह दावा कर रहे हैं कि ये हादसा ग्लेशियर के टूटने से नहीं बल्कि भूस्खलन की वजह से हुआ है. आइए जानते हैं कि आखिरकार ये वैज्ञानिक चमोली में हुए हादसे को लेकर क्या दावा कर रहे हैं. (फोटोः प्लैनेट लैब्स)
यूनिवर्सिटी ऑफ कैलगेरी के जियोलॉजिस्ट और ग्लेशियर एक्सपर्ट डॉक्टर डैन शुगर ने प्लैनेट लैब्स की सैटेलाइट इमेज की जांच करने के बाद दावा किया है कि चमोली हादसा ग्लेशियर टूटने की वजह से नहीं हुआ है. यह त्रिशूल पर्वत पर हुए भूस्खलन की वजह से नीचे ग्लेशियर पर दबाव बना है. (फोटोःट्वीट/डॉ. डैन शुगर)
प्लैनेट लैब्स की सैटेलाइट तस्वीरों से साफ जाहिर होता है कि जिस समय हादसा हुआ उस समय त्रिशूल पर्वत के ऊपर काफी धूल का गुबार दिख रहा है. घटना के पहले और बाद की तस्वीरों को आपस में देखने में अंतर साफ पता चल रहा है. ऊपर से जमी धूल और मिट्टी खिसककर नीचे की तरफ आई और उसके बाद फ्लैश फ्लड हुआ. (फोटोः प्लैनेट लैब्स)
डॉक्टर डैन शुगर ने अपने ट्वीट में कहा है कि ग्लेशियर के ऊपर W आकार में भूस्खलन हुआ है. जिसकी वजह से ऊपर लटका हुआ ग्लेशियर नीचे की तरफ तेजी से आया है. जबकि इससे पहले की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया जा रहा था कि यह हादसा ग्लेशियर के टूटने की वजह से हुआ है. सैटेलाइट तस्वीरों से साफ नजर आ रहा है कि हादसे के समय किसी तरह की ग्लेशियर झील नहीं बनी थी. न ही उसकी वजह से कोई फ्लैश फ्लड हुआ है. (फोटोः ट्वीट/डॉ. डैन शुगर)
डॉक्टर शुगर ने सैटेलाइट तस्वीरों के आधार पर दावा किया है कि हादसे से ठीक पहले त्रिशूल पर्वत के ऊपर L आकार में हवा में धूल और नमी देखी गई है. सैटेलाइट तस्वीरों में पर्वत के ऊपरी हिस्से में किसी तरह के ग्लेशियर झील के निर्माण या टूटने के कोई सबूत नहीं दिख रहे हैं. यह भूस्खलन की वजह से हुए एवलांच की वजह से हुआ होगा. (फोटोः ट्वीट/डॉ. डैन शुगर)
प्लैनेट लैब्स के सैटेलाइट इमेजरी एक्सपर्ट ने सैटेलाइट तस्वीरों के आधार पर इस घटना की थ्रीडी इमेज बनाई. इसके बाद उन्होंने ट्वीट किया त्रिशूल पर्वत के ऊपरी हिस्से में मिट्टी और धूल जमा थी, जो भारी वजन की वजह से बर्फ की मोटी परत के ऊपर गिर पड़ी. इसके बाद एक तेज हिमस्खलन हुआ, जिसकी वजह से फ्लैश फ्लड की नौबत आई है. (फोटोः प्लैनेट लैब्स)
कॉपरनिकस सेंटीनल-2 सैटेलाइट से ली गई तस्वीरों में नंदा देवी ग्लेशियर के ऊपर दरार देखी गई थी. अगर इन तस्वीरों के देखें तो पता चलता है कि त्रिशूल पर्वत के ऊपरी हिस्से में दरार दिखाई दे रही है. वहीं, बॉब ओ मैकनैब नाम के ट्विटर हैंडल से दो तस्वीरें पोस्ट की गई, जिसमें कहा गया है कि 5 फरवरी को जो दरार दिख रही है वो 6 फरवरी को नहीं दिखी. (फोटोः ट्वीट/डॉ. डैन शुगर)
इन सभी ट्वीट्स और एक्सपर्ट के हवाले से जो बात सामने आ रही है उसके मुताबिक नंदा देवी ग्लेशियर के ऊपर त्रिशूल पर्वत पर रॉकस्लोप डिटैचमेंट हुआ है. यानी बर्फ की करीब 2 लाख वर्ग मीटर मोटी बर्फ की परत धूल और मिट्टी के खिसकने की वजह से 2 किलोमीटर नीचे सीधे आकर गिरी. इसकी वजह से घाटी के निचले हिस्से में काफी दबाव पड़ा, इसके बाद कीचड़, पानी, पत्थर और बर्फ एवलांच के रूप में नीचे की तरफ आया. (फोटोः प्लैनेट लैब्स)
एवलांच जब नीचे की तरफ स्थित नंदा देवी ग्लेशियर से टकराया तो उसकी वजह से काफी दबाव और गर्मी पैदा हुई होगी, जिससे ग्लेशियर का करीब 3.5 किलोमीटर चौड़े हिस्से में टूट-फूट हुई होगी. इसके बाद निचले इलाकों की तरफ ऋषिगंगा और धौलीगंगा नदियों में अचानक से बाढ़ आई है. (फोटोः पीटीआई)
भूस्खलन के एक्सपर्ट भी त्रिशूल पर्वत पर लैंडस्लाइड की बात को सही मानते हैं. ये ठीक उसी तरह है जैसा कि नेपाल में 2012 में सेती नदी में हुआ था. चमोली में जो भी हादसा हुआ है, उसके पीछे ग्लेशियर एवलांच और पर्वत के ऊपर भूस्खलन दोनों ही जिम्मेदार हो सकते हैं. यह सिर्फ ग्लेशियर के टूटने की वजह से नहीं हुआ है. (फोटोःपीटीआई)