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सरनेम को लेकर चीन की सरकार परेशान, 43 करोड़ लोगों में 5 सरनेम, जनगणना में दिक्कत

aajtak.in
  • बीजिंग,
  • 18 जनवरी 2021,
  • अपडेटेड 4:44 PM IST
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आपके नाम के आगे जो शब्द लिखा होता है उसे सरनेम यानी उपनाम या कुलनाम कहते हैं. एक नाम के कई आदमी होते हैं तो दिक्कत होने लगती है. अगर एक ही नाम और उपनाम दोनों के कई लोग एकसाथ हों तो आप बुलाएंगे एक को और प्रतिक्रिया देंगे सारे. चीन इस समय कोरोना के साथ-साथ इस समस्या से भी जूझ रहा है. उसके यहां 120 करोड़ लोगों के उपनाम 100 सरनेम में से एक है. चीन में सबसे ज्यादा जो उपनाम चलते हैं वो हैं वांग, ली, झांग, लिउ और चेन. (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी)

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चीन में 43.3 करोड़ लोगों के नाम के आगे वांग, ली, झांग, लिउ या चेन सरनेम लगा है. चीन के सरकारी आंकड़ों के अनुसार ये देश की पूरी आबादी का 30 फीसदी हिस्सा है. चीन की आबादी 137 करोड़ है. यह दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है. लेकिन इसके पास उपनामों की संख्या बेहद कम है. सिर्फ 6000 उपनामों का उपयोग चीन में होता है. इस बात का खुलासा चीन के पब्लिक सिक्योरिटी मंत्रालय ने किया है. इनमें से 100 उपनामों का उपयोग इस पूरी आबादी का 86 फीसदी हिस्सा करता है. (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी)

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सीएनएन की खबर के अनुसार अगर साल 2010 की जनगणना को देखें तो पता लगता है कि अमेरिका में चीन की तुलना में एक चौथाई आबादी है. लेकिन यहां उपनामों की संख्या 63 लाख है. इसके पीछे बड़ा कारण ये है कि अमेरिका की तुलना में चीन में नस्ल के आधार पर बंटवारा कम है. दूसरी वजह ये है कि भाषा को आप तोड़ मरोड़ नहीं सकते. चीन की भाषा में एक नया उपनाम जोड़ना इतना आसान नहीं है जितना अमेरिका की इंग्लिश उपनामों के साथ किया गया है. चीन में उपनामों का इतिहास काफी पुराना है. (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी)

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बीजिंग नॉर्मल यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर चेन जियावेई कहते हैं कि चीन में 20 हजार से ज्यादा उपनाम रजिस्टर्ड हैं. हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि ये 23 हजार भी हो सकते हैं. लेकिन अब हमारे देश में उपनामों की संस्कृति खत्म होती जा रही है. साल 2019 में पब्लिक सिक्योरिटी मंत्रालय ने पूरे देश में सर्वे करके ये बात बताई थी कि अब सिर्फ 6000 उपनामों की ही उपयोग हो रहा है. मंत्रालय के अनुसार चीन में उपनामों का सबसे पुराना इतिहास ब्रॉन्ज, बैम्बू और सिल्क पांडुलिपियों में मिलता है. ये सब 1600 से 256 ईसापूर्व के दौरान शांग और झोउ साम्राज्य में लिखे गए थे. (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी)

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960-1279 एडी के दौरान सॉन्ग डायनेस्टी (Song Dynasty) में एक किताब लिखी गई थी. जिसका नाम था- हंड्रेड फैमिली सरनेम्स. इसमें सबसे कॉमन सैकड़ों सरनेम लिखे गए थे. आज भी चीन में बच्चों को ये किताब पढ़ाई जाती है. चीन का इतिहास हमेशा से विस्थापन, राजनीतिक अस्थिरता और युद्ध का रहा है. इसलिए भी चीन से कई उपनाम गायब होते जा रहे हैं. जो साम्राज्य आया उसका उपनाम लोगों ने अपना लिया ताकि वे खुद को बचा सकें. जैसे चीन के अल्पसंख्यकों और आदिवासियों ने हान डायनेस्टी के उपनाम अपने नाम के आगे लगा लिए. (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी)

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आधुनिक चीन में दुर्लभ और सामान्य उपनाम तेजी से खत्म हो रहे हैं. कई लोगों के नामों के बाद उपनाम में बेहद दुर्लभ कैरेक्टर्स लिखे जाते थे. जिन्हें अब कंप्यूटर की दुनिया में जोड़ना नामुमकिन है. नए डिजिटिल नेशनल आईडी सिस्टम में ऐसे उपनाम जुड़ ही नहीं पा रहे हैं जो दुर्लभ या फिर बेहद सामान्य हैं. एक समस्या ये है कि चीनी भाषा के सारी वर्णमाला अभी कंप्यूटरों में डाली नहीं गई है. साल 2017 में चीनी भाषा के 32 हजार कैरेक्टर्स डिजिलाइज्ड किए गए हैं लेकिन अब दसियों हजार कैरेक्टर्स का डिजिटलाइजेशन बाकी है. (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी)

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2017 में जब ये काम हो रहा था तब चीन के करीब 6 करोड़ लोगों को अपने नाम गलत मिलने की शिकायत आई. जो भी सरकारी कागज उन्हें मिलता उसमें से उनके उपनाम का कोई न कोई दुर्लभ या सामान्य कैरेक्टर गायब रहता या अधिक जुड़ा रहता. अब इस गड़बड़ी की वजह से करोड़ों लोगों को बैंक एकाउंट खोलने, फोन प्लान साइन अप करने, ऑनलाइन पेमेंट करने या किसी भी तरह का डिजिटल ट्रांजेक्शन करने में दिक्कत आ रही है. ये दिक्कत अभी खत्म नहीं हुई है. आज भी चीन के करोड़ों लोग अपने उपनामों के दुर्लभ कैरेक्टर्स के सही तरीके से डिजिटलाइज नहीं किए जाने से परेशान हैं. (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी)

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भारत के आधार कार्ड की तरह ही चीन में जो डिजिटल आईडी कार्ड्स बनाए गए हैं. उसमें से कई लोगों को ये कार्ड्स इसलिए नहीं मिल पाए क्योंकि उनके नाम में दुर्लभ चीनी कैरेक्टर्स थे. बिना डिजिटल आईडी कार्ड के लोगों को कई तरह के काम रुकने लगे, जैसे भारत में बिना आधार कार्ड के कोई काम नहीं होता. जब चीन में करोड़ों लोगों ने इस चीज की शिकायत की तो इस मामले को ठीक करने की कोशिश की जाने लगी. लेकिन लाखों लोगों को उनका नाम बदलने की सलाह भी दी गई, क्योंकि उनके नाम में शामिल कोई दुर्लभ कैरेक्टर सरकारी डेटाबेस में नहीं था. (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी)

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