अंतरिक्ष से एक स्पेशल डिलीवरी धरती के लिए आ रही है. ये डिलीवरी लेकर आ रहा है जापान का अंतरिक्षयान हायाबूसा-2. यह डिलीवरी है 30 करोड़ किलोमीटर दूर स्थित एक एस्टेरॉयड के धूल की. जापान का स्पेसक्राफ्ट धूल लेकर धरती पर वापस आ रहा है. अगर जापान इस मिशन में सफल होता है तो वह चीन से बड़ा काम करेगा. क्योंकि बेहद तेजी से उड़ते हुए एस्टेरॉयड की सतह से धूल लाना विज्ञान की दुनिया में बड़ा कारनामा है. (फोटोः जाक्सा)
जापान का स्पेसक्राफ्ट हायाबूसा-2 (Hayabusa-2) फ्रिज के आकार का है. इसे दिसंबर 2014 में लॉन्च किया गया था. इसने धरती से 30 करोड़ किलोमीटर दूर स्थित एस्टेरॉयड रीयूगू (Asteroid Ryugu) से धूल उठाई है. इस एस्टेरॉयड को जापानी भाषा में ड्रैगन पैलेस (Dragon Palace) भी कहते हैं. इस एस्टेरॉयड पर लैडिंग और उससे धूल उठाना भी अपने आप में बड़ा वैज्ञानिक करिश्मा था. (फोटोः जाक्सा)
जापान का स्पेसक्राफ्ट हायाबूसा-2 (Hayabusa-2) जब धरती पर एस्टेरॉयड रीयूगू (Asteroid Ryugu) का धूल वापस करने के बाद उसे दो और एस्टेरॉयड की यात्रा के लिए निकलना है. जापान की स्पेस एजेंसी जाक्सा (JAXA) ने इसकी प्लानिंग कर ली है. हायाबूसा-2 (Hayabusa-2) अगले दस सालों के लिए इन दो एस्टेरॉयड्स की यात्रा पर रहेगा. (फोटोः एएफपी)
जापान के वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि हायाबूसा-2 (Hayabusa-2) के कैप्सूल में एस्टेरॉयड का करीब 0.1 ग्राम धूल होगा. जो धरती पर रिसर्च के काम आएगा. इस धूल से यह पता चलेगा कि 460 करोड़ साल पहले जब हमारा सौर मंडल बना तब वह कैसा था. साथ ही ये भी पता चलेगा कि सौर मंडल में किस तरह से इन एस्टेरॉयड्स की उत्पत्ति हुई. इनका धरती से कोई संबंध है या नहीं. (फोटोः एएफपी)
जिस कैप्सूल में एस्टेरॉयड रीयूगू (Asteroid Ryugu) का धूल है वह हायाबूसा-2 (Hayabusa-2) स्पेसक्राफ्ट से अलग होकर धरती की तरफ आएगा. धरती से करीब 2.20 लाख किलोमीटर की दूरी पर हायाबूसा-2 (Hayabusa-2) से कैप्सूल अलग होगा और उसके बाद धरती की तरफ अपनी यात्रा खुद करेगा. (फोटोः एएफपी)
हायाबूसा-2 (Hayabusa-2) के मिशन मैनेजर माकोतो योशिकावा ने मीडिया को बताया कि हमारे लिए पिछला साल बेहद महत्वपूर्ण था. हमारे यान ने एस्टेरॉयड रीयूगू (Asteroid Ryugu) की सतह पर सुरक्षित लैंडिंग की. इसके बाद वहां से इम्पैक्टर की फायरिंग कर धूल उड़ाई और उसे कैप्सूल में जमा किया. इसके बाद वह वहां से धरती की ओर निकला. (फोटोः एएफपी)
माकोतो योशिकावा ने बताया कि इस धूल के कणों के जरिए हमें सौर मंडल और ग्रहों की उत्पत्ति से संबंधित जानकारी मिल सकती है. जितनी भी धूल हमें मिलेगी, उसमें से आधा जापान और अमेरिका रखेगा, उसके बाद बाकी का हिस्सा अंतरराष्ट्रीय संस्थानों को रिसर्च के लिए दिया जाएगा. ताकि भविष्य में होने वाली अध्ययनों में मदद मिल सके. (फोटोः एएफपी)
कैप्सूल गिराने के बाद अगले छह साल तक हायाबूसा-2 (Hayabusa-2) सूर्य के ऑर्बिट में चक्कर लगाते हुए अंतरिक्ष की धूल और अन्य ग्रहों का अध्ययन करेगा. इसके बाद वह अपने पहले एस्टेरॉयड पर जुलाई 2026 में पहुंचेगा. इस एस्टेरॉयड का नाम है 2001 CC21. हायाबूसा-2 (Hayabusa-2) इसकी तस्वीरें लेगा. (फोटोः एएफपी)
हायाबूसा-2 (Hayabusa-2) इसके बाद जुलाई 2031 में एस्टेरॉयड 1998KY26 तक पहुंचेगा. इसका व्यास 30 मीटर है. यह एस्टेरॉयड धरती से उस समय 30 करोड़ किलोमीटर की दूरी पर होगा. हायाबूसा-2 (Hayabusa-2) इसकी भी तस्वीरें लेकर हमें भेजेगा. क्योंकि इसके बाद जापानी अंतरिक्षयान में इतना ईँधन नहीं बचेगा कि वह धरती पर वापस आ सके. (फोटोः एएफपी)
जाक्सा के वैज्ञानिकों ने हायाबूसा-2 (Hayabusa-2) के लैंडिंग की तारीख और समय की घोषणा तो नहीं की है लेकिन यह जरूर बताया है कि वह कहां लैंड करेगा. जापानी साइंटिस्ट को उम्मीद है कि वह ऑ़स्ट्रेलिया के किसी मैदानी हिस्से में उतरेगा. कैप्सूल का वजन 16 किलोग्राम है. ऊंचाई 200 मिलीमीटर है. व्यास 400 मिलीमीटर है. इसमें एक पैराशूट है जो धरती पर गिरने से पहले खुल जाएगा. (फोटोः एएफपी)