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24 सालों में धरती से इतनी बर्फ पिघली जो पूरे UP पर 100 मीटर मोटी चादर बिछा दे!

aajtak.in
  • लंदन,
  • 28 जनवरी 2021,
  • अपडेटेड 5:05 PM IST
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क्या आपको पता है कि पहाड़ों, ग्लेशियरों, आर्कटिक और अंटार्कटिक से पिछले ढाई दशक में कितनी बर्फ पिघली है. एक नई स्टडी में खुलासा हुआ है कि पिछले 24 सालों में धरती से 28 ट्रिलियन टन बर्फ पिघल गई. यानी 28 लाख करोड़ किलोग्राम बर्फ पिघल गई है. ये सब हुआ ग्लोबल वार्मिंग और लगातार हो रहे क्लाइमेट चेंज की वजह से. (फोटोःगेटी)

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साल 1994 से लेकर 2017 तक धरती से 28 लाख करोड़ किलोग्राम बर्फ पिघल गई है. ये इतनी बर्फ है कि 242,495 वर्ग किलोमीटर में फैले यूनाइटेड किंगडम पर 100 मीटर मोटी बर्फ जम जाए. भारत के हिसाब से देखें तो 240,928 वर्ग किलोमीटर में फैले पूरे उत्तर प्रदेश पर इतनी मोटी बर्फ जम जाए. अब आप सोचिए कि इतनी बर्फ पिघल कर कहां चली गई? (फोटोःगेटी)

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यह स्टडी अपने आप में पहली ऐसी स्टडी है जो इतने बड़े पैमाने पर की गई है. इस स्टडी को करने के लिए दुनियाभर के सैटेलाइट डेटा का उपयोग किया गया है. स्टडी को यूके स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स के साइंटिस्ट्स ने किया है. स्टडी में साइंटिस्ट्स ने ग्लोबल वार्मिंग और उसकी वजह से हो रहे क्लाइमेट चेंज के दुष्प्रभावों के बारे में बताया है. यह खबर द वेदर चैनल वेबसाइट ने प्रकाशित की है. (फोटोःगेटी)

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स्टडी के मुताबिक 90 के दशक में हर साल धरती से 0.8 ट्रिलियन टन यानी 80 हजार करोड़ किलोग्राम बर्फ पिघल रही है. जबकि, 2017 में ये 1.3 ट्रिलियन टन यानी 1.30 लाख करोड़ किलोग्राम दर्ज की गई. अगर इन सभी बर्फ को एकसाथ जमा किया जाए तो यह 10 किलोमीटर चौड़ी, 10 किलोमीटर लंबी और 10 किलोमीटर गहरी होगी. यानी आकार में माउंट एवरेस्ट से भी ज्यादा. (फोटोःगेटी)

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पिछले 24 सालों में बर्फ पिघलने की दर में 65 फीसदी का इजाफा हुआ है. सबसे ज्यादा असर अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड के इलाकों में पड़ा है. स्टडी को करने वाले प्रमुख शोधकर्ता थॉमस स्लेटर कहते हैं कि यह समय धरती पर जमी बर्फ के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक है. समुद्रों का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है. यह दुनिया भर के उन लोगों के लिए खतरनाक है जो तटीय इलाकों में रहते हैं. (फोटोःगेटी)

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अब आपको बताते हैं कि किन इलाकों में कितनी बर्फ पिघली. पहाड़ों पर मौजूद ग्लेशियरों में 6.1 ट्रिलियन टन यानी 6.1 लाख करोड़ किलोग्राम, ग्रीनलैंड से 3.8 ट्रिलियन टन यानी 3.8 लाख करोड़ किलोग्राम, अंटार्कटिका से 2.5 ट्रिलियन टन यानी 2.5 लाख करोड़ किलोग्राम, आर्कटिक सागर से 7.6 ट्रिलियन टन यानी 7.6 लाख करोड़ किलोग्राम और अंटार्कटिक सागर से 6.5 ट्रिलियन टन यानी 6.5 लाख करोड़ किलोग्राम बर्फ पिघल चुकी है. (फोटोःगेटी)

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यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) ने कहा है कि वायुमंडल और समुद्रों में बढ़ रहे तापमान की वजह से धरती की बर्फ लगातार पिघल रही है. 1980 से अब तक वायुमंडल में 0.26 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक और समुद्रों में 0.12 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक तापमान में इजाफा हुआ है. (फोटोःगेटी)

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इतनी बर्फ पिघलने की वजह से वैश्विक समुद्री जलस्तर में 35 मिलीमीटर की बढ़ोतरी हुई है. ESA ने चेतावनी दी है कि अगर समुद्री जलस्तर और एक सेंटीमीटर बढ़ता है तो तटीय इलाकों में रहने वाले करोड़ों लोगों के लिए यह अत्यधिक खतरे की बात होगी. ये पर्यावरण को बड़ा नुकसान तो करेगा ही, करोड़ों लोगों की आर्थिक स्थिति को भी बिगाड़ देगा. (फोटोःगेटी)

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ज्यादा बर्फ पिघलने से सिर्फ समुद्र का जलस्तर ही नहीं बढ़ता. इससे धरती पर पड़ने वाली सोलर रेडिएशन का खतरा भी बढ़ जाता है. क्योंकि धरती पर बर्फ की चादर सूर्य से आने वाली रेडियोएक्टिव किरणों को भी सोखती है. बर्फ रहेगी नहीं तो ये रेडिएशन पूरी धरती और उसपर रहने वाले जीवों पर बुरा असर डालेगी. (फोटोःगेटी)

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इस स्टडी के लिए रिसर्चर्स ने पहाड़ों पर मौजूद 215,000 ग्लेशियरों, ग्रीनलैंड, पोलर आइस शीट, आर्कटिक और अंटार्कटिक के इलाकों का अध्ययन किया है. इस अध्ययन को करने के लिए यूरोपियन स्पेस एजेंसी के सैटेलाइट्स, ERS, Envisat, CryoSat, Copernicus Sentinel-1 और Sentinel-2 सैटेलाइट्स की मदद ली है. यह स्टडी 25 जनवरी को साइंस जर्नल द क्रायोस्फेयर में प्रकाशित हुई है. (फोटोःगेटी)

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