उत्तराखंड के चमोली में प्रकृति के रौद्र रूप ने एक बार फिर लोगों को 7 साल पहले आई त्रासदी की याद दिला दी है. 7 फरवरी 2021 को चमोली में ग्लेशियर फटने से अचानक नदियों में बाढ़ जैसी स्थिति बन गई और ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट पूरी तरह तबाह हो गया. 150 से ज्यादा लोग नदियों में बह गए. 10 लोगों के शव बरामद किए जा चुके हैं और बड़े पैमाने पर रेस्क्यू ऑपरेशन जारी है. वहीं साल 2013 में भी 16 और 17 जून की रात को उत्तराखंड के लोगों ने भयानक जल प्रलय को देखा था जिसका दर्द आज भी कई परिवारों के चेहरे पर साफ तौर पर नजर आता है.
जिस तरह चमोली में टूटे ग्लेशियर से भारी तबाही मची है और धौली गंगा नदी में अचानक जलस्तर बढ़ने से ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट में काम कर रहे 150 से ज्यादा लोग बह गए, ठीक वैसा ही कुछ साल 2013 में भी हुआ था. 13 से 17 जून के बीच उत्तराखंड में असामान्य बारिश हो रही थी. अचानक बादल फटने से मंदाकिनी नदी में उफान आ गया और जलस्तर में इतने तेजी से बढ़ोतरी होने लगी कि बाढ़ से पहले तो कई इलाके जलमग्न हो गए और उसके बाद भूस्खलन ने भी भारी तबाही मचा दी.
साल 2013 में 16 और 17 जून की रात भारी बारिश और उफनती नदियों ने जलप्रलय के संकेत दे दिए थे और सुबह होते-होते पूरी केदारघाटी बर्बाद हो गई थी. वर्तमान में ग्लेशियर फटने के बाद प्रशासन की मुस्तैदी की वजह से जहां जानमाल की कम से कम क्षति होने की संभावना है. वहीं साल 2013 में लोगों ने भयानक मंजर देखा था. सरकारी दस्तावेजों के मुताबिक करीब 4000 हजार लोगों की मौत उस त्रासदी में हुई थी, लेकिन स्थानीय लोगों के मुताबिक 10 हजार से ज्यादा लोगों ने उस प्राकृतिक आपदा में जान गंवाई थी.
साल 2013 में उत्तराखंड में आई आपदा ने केदारघाटी से लेकर ऋषिकेश तक भयानक तबाही मचाई थी. सरकारी दस्तावेजों के मुताबिक जहां चार हजार लोगों की मौत हुई थी. वहीं बड़ी संख्या में लोगों को बेघर होना पड़ा था. 2 हजार के करीब भवनों को भारी नुकसान हुआ था, जबकि 11 हजार से ज्यादा मवेशी मारे गए थे. 4200 गांवों का संपर्क पूरी तरह टूट गया था और 1308 हेक्टेयर खेती की जमीन आपदा की भेंट चढ़ गई थी. इतना ही नहीं साल 2013 में आई आपदा में नौ नेशनल हाई-वे, 35 स्टेट हाई-वे और 2385 सड़कें, 86 मोटर पुल, 172 बड़े और छोटे पुल या तो बह गए थे या फिर क्षतिग्रस्त हो गए थे.
केदारनाथ धाम पूरी तरह बर्बाद हो गया था और वहां सिर्फ बाबा केदारनाथ का मंदिर ही बच पाया था. आपदा के बाद केदारनाथ मंदिर और आसपास के इलाकों की मरम्मत के लिए कई महीनों तक मंदिर को बंद रखा गया था. बता दें कि केदारनाथ मंदिर समुद्र तल से 11 हजार 800 फीट की ऊंचाई पर बना है और इसके पीछे हिमालय पर्वत की पूरी श्रृंखला है. केदारनाख घाटी क एक चौथाई हिस्से में सिर्फ ग्लेशियर है.