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क्या खराब हो जाएगा US, रूस-चीन का प्लान? हाइपरसोनिक मिसाइलों को लेकर नई स्टडी

aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 19 जनवरी 2021,
  • अपडेटेड 1:44 PM IST
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हथियारों की दुनिया में सबसे ताकतवर हथियारों में से एक है मिसाइल. मिसाइल के भी कई रेंज हैं. आजकल एक मिसाइल की खूब चर्चा हो रही है जिसे हाइपरसोनिक मिसाइल कहते हैं. यानी ध्वनि की गति से कई गुना तेज चलने वाली मिसाइल. एक स्टडी में दावा किया गया है कि हाइपरसोनिक मिसाइल की तुलना में पारंपरिक बैलिस्टिक मिसाइल ज्यादा सटीक, ज्यादा भरोसेमंद और ज्यादा दूरी तय करने वाले होते हैं. अमेरिका, चीन और रूस के पास हाइपरसोनिक मिसाइल हैं. भारत भी ऐसी मिसाइल विकसित कर चुका है. आइए जानते कि फिर इस स्टडी का मतलब क्या है? (फोटोः हाइपरसोनिक मिसाइल/फेसबुक)

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17 जनवरी को साइंस एंड ग्लोबल सिक्योरिटी वेबसाइट पर एक रिपोर्ट छपी है. इसमें कहा गया है कि हाइपरसोनिक मिसाइल अंतरिक्ष में मौजूद अर्ली वॉर्निंग सिस्टम की नजरों से नहीं बच सकता. ये कितनी भी तेज निकले लेकिन स्पेस में मौजूद वॉर्निंग सिस्टम इसे पकड़ ही लेंगे. इस स्टडी में बताया गया है कि कैसे पारंपरिक बैलिस्टिक मिसाइलें हाइपरसोनिक मिसाइलों से बेहतर हैं. (फोटोः रॉयटर्स)

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इस स्टडी के पीछे मकसद ये पता करना है कि क्या भविष्य में ऐसी मिसाइलें बनाई जा सकती हैं जो कम ऊंचाई पर उड़ते हुए तेजी से टारगेट पर हमला करे. कंप्यूटर मॉडलिंग से पता चला कि हाइपरसोनिक मिसाइल ग्लाइड सिस्टम पर उड़ती है. ये छोटी दूरी तक तो बहुत तेजी से जाती हैं लेकिन जब लंबी दूरी की बात आती है तो ये वायुमंडल के दबाव में टारगेट से भटक सकती हैं और साथ ही गति भी कमजोर हो सकती है. जबकि, पारंपरिक बैलिस्टिक मिसाइल इन सभी दिक्कतों को आसानी से पार कर लेती है. (फोटोः रॉयटर्स)

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इस कंप्यूटर मॉडलिंग से एक बात तो स्पष्ट हुई कि हाइपरसोनिक मिसाइलों का रणनीतिक उपयोग फिलहाल ओवररेटेड है. जबकि, प्रैक्टिकली इनकी तुलना इंटर-कॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) से फिलहाल नहीं की जा सकती. वो बात अलग है कि अमेरिका, रूस और चीन इसे विकसित कर चुके हैं. भारत जैसे कई देश इसे विकसित करने में लगे हैं. (फोटोः रॉयटर्स)

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हाइपरसोनिक मिसाइल दिशा निर्धारण, मैन्यूवरिंग और टारगेट को खुद खोजने में ज्यादा बेहतर हैं. लेकिन ये कोई बड़ा क्रांतिकारी खोज नहीं है. यह सिर्फ पुरानी मिसाइलों का नया और बेहतर मॉडल हो सकता है. इस रिपोर्ट को लिखा है रक्षा एक्सपर्ट कैमरॉन ट्रेसी ने. कैमरॉन अमेरिका में स्थित गैर-सरकारी संस्था यूनियन ऑफ कन्सर्ड सिटिजंस का हिस्सा है. इनके साथ मदद की है मैस्याच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) के हथियार विशेषज्ञ डेविड राइट. (फोटोः रॉयटर्स)

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कैमरॉन और डेविड के हिसाब से हाइपरसोनिक मिसाइलें बैलिस्टिक मिसाइलों की तुलना में रेंज के आधार पर धीमी हैं. इससे सिर्फ एक फायदा है कि ये ज्यादा बड़े और खतरनाक हथियार ले जा सकती हैं लेकिन निकट भविष्य में. फिलहाल अमेरिका, रूस और चीन अपने-अपने हाइपरसोनिक मिसाइलों को लेकर जो दावे करते हैं वो झूठे हैं. (फोटोः रॉयटर्स)

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कुछ रक्षा विश्लेषकों द्वारा कहा गया था कि हाइपरसोनिक मिसाइलें ध्वनि की गति से पांच गुना ज्यादा स्पीड से चलती हैं यानी 6174 किलोमीटर प्रतिघंटा या उससे ज्यादा रफ्तार से. लेकिन ये अंतरिक्ष में मौजूद दुश्मन के राडार को धोखा नहीं दे सकती. हाइपरसोनिक मिसाइलें अंतरिक्ष में मौजूद इंफ्रारेड सेंसर्स की पकड़ में आ जाती हैं. (फोटोः रॉयटर्स)

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इनके पकड़ में आने की वजह है ज्यादा गर्मी. हाइपरसोनिक ग्लाइडर मिसाइलें या यान जब वायुमंडल में उड़ती है तो घर्षण या हवा के रगड़ से बहुत ज्यादा गर्मी पैदा करती है. इसकी वजह से ये अंतरिक्ष में मौजूद इंफ्रारेड सेंसर्स की पकड़ में आ जाती हैं. ये गर्मी इतनी ज्यादा होती है कि अगर इसे हीट सेंसर्स से पकड़ा जाए तो आसानी से कहीं से भी दिखाई दे जाएंगी. 

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अमेरिका, रूस और चीन लगातार हाइपरसोनिक मिसाइलों को विकसित करने में लगे हैं. अगले कुछ दशकों में इन देशों के पास पर्याप्त मात्रा में हाइपरसोनिक मिसाइलें होंगी. रूस के पास हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल है. इसका नाम एवेनगार्ड (Avangard) है. इसमें परमाणु हथियार लगाए जा सकते हैं. इसे एसएस-19 लॉन्ग रेंज लैंड बेस्ड बैलिस्टिक मिसाइल से भी छोड़ा जा सकता है. (फोटोः रॉयटर्स)

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चीन के पास भी इसी तरह का हथियार है. जिसे वह DF-ZF या DF-17 कहता है. चीन ने साल 2014 के बाद से इस हथियार का 9 बार परीक्षण किया है. अमेरिकी सरकार हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल नहीं बना रहा. हाइपरसोनिक डिफेंस प्रोग्राम पर रिसर्च के लिए साल 2021 में अमेरिका ने अपना बजट 23,448 करोड़ रुपए रखा है. लेकिन उसने ये नहीं बताया कि वह मिसाइल विकसित करेगा या किसी अन्य प्रकार का हथियार. (फोटोः रॉयटर्स)

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