देश के बैंकों से हजारों करोड़ का कर्ज लेकर फरार हीरा कारोबारी नीरव मोदी के मामले में लंदन की कोर्ट ने बीते दिनों अहम फैसला सुनाया. इस फैसले के बाद भारत में उसके प्रत्यर्पण की संभावना बढ़ गई है. नीरव मोदी के मामले ने लोगों को एक और भगोड़े जयंती धर्म तेजा की याद दिला दी है. इस शख्स पर भारतीय कानून के तहत करोड़ों रुपये के टैक्स चोरी का आरोप था. इंदिरा गांधी के शासनकाल में तीन अलग-अलग देशों- संयुक्त राज्य अमेरिका, कोस्टा रिका और यूनाइटेड किंगडम की अदालतों में केस लड़कर इस आरोपी के प्रत्यर्पण के लिए उन्हें मजबूर किया गया था.1971 में जयंती धर्म तेजा को वापस भारत लाया गया था. (तस्वीर - Getty)
Escaped: True Stories of Indian Fugitives in London नाम की किताब में लंदन के पत्रकार दानिश और रूही खान ने तीन महाद्वीपों में तेजा के खिलाफ भारत सरकार की कोशिशों और उसे प्रत्यर्पण के जरिए देश वापस लाने की कवायद को बेहद रोमांचक तरीके से पेश किया है. तेजा 1960 के दशक में एक चालबाज शख्स था. जवाहरलाल नेहरू और मोरारजी देसाई सहित राजनीतिक और वित्तीय अधिकारियों के साथ घनिष्टता रखने की डींगे मारता था. राजीव और संजय गांधी की शिक्षा और यूके में रहने के खर्च उठाने को लेकर झूठा प्रचार करता था. इस दौरान उस पर गलत तरीके से टैक्स चोरी करने का आरोप लगा. तेजा इसके बाद देश छोड़कर फरार हो गया क्योंकि उस पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही थी. (तस्वीर - Getty)
कोस्टा रिका के राष्ट्रपति जोस फिगरेस ने तेजा और उनकी पत्नी को राजनीतिक शरण दी और देश के सुप्रीम कोर्ट में भी उनका बचाव किया. तेजा ने वहां केस जीत लिया था लेकिन बाद में किस्मत ने उसका साथ नहीं दिया. 24 जुलाई 1970 को, तेजा को हीथ्रो हवाई अड्डे पर उस वक्त गिरफ्तार किया गया था, जब वह स्विट्जरलैंड की उड़ान के लिए एयरपोर्ट पहुंचा था. (तस्वीर - Getty)
उनके वकील लॉर्ड डिंगल फुट थे, जो लेबर पार्टी के नेता माइकल फुट के भाई थे. महारानी के दरबार में, डिंगल फुट ने इंदिरा गांधी सरकार को शर्मिंदा करने के लिए दावा किया कि तेजा एक बार नेहरू और फिर फ्रांसीसी राष्ट्रपति चार्ल्स डी डुल्ले के बीच मीटिंग कराने के लिए "राजनयिक मिशन" पर सोवियत संघ गया था. इसी दौरान दिल्ली में, तेजा का मुकदमा मुन्नी लाल जैन के कोर्ट में चला जिसके बाद 19 अक्टूबर 1972 को जयंती शिपिंग कंपनी (JSC) के धन के दुरुपयोग, दस्तावेजों की धोखाधड़ी और टैक्स चोरी के आरोप में उसे तीन साल जेल की सजा सुनाई गई. (तस्वीर - Getty)
किताब के लेखक दानिश और रूही के अनुसार, व्यक्तित्व और महत्वकांक्षा के मामले में तेजा और विजय माल्या में काफी समानता थी. माल्या किंगफिशर के जरिए आसमान पर राज करना चाहता था और तेजा अपनी जयंती को महासागरों में रखना चाहता था. दोनों को अपने व्यवसायों को चलाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा जिसके बाद उनका साम्राज्य चरमरा गया था. तेजा शैक्षणिक प्रतिभा का धनी था. तेजा शिक्षाविदों में शामिल नहीं हुआ. इसके बजाय, उन्होंने परिवार के व्यवसाय को चुना और भारतीय लौह अयस्क का उपयोग करके पश्चिमी यूरोपीय देश में एक स्टील प्लांट स्थापित करने की योजना बनाई. भारतीय लौह अयस्क को यूरोप ले जाने में समस्या थी. तेजा ने तब शिपिंग में निवेश करने और अयस्कों को ले जाने के लिए जहाजों को विकसित करने के बारे में सोचा. उसने मौजूदा प्रधानमंत्री नेहरू को एक प्रजेंटेशन दिया. (तस्वीर - Getty)
अनुराधा दत्त द्वारा लिखित "द इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया" में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, नेहरू ने कथित तौर पर अपनी कैबिनेट में इसका जिक्र किया जिसके बाद भारत सरकार ने 20 करोड़ रुपये का निवेश करने का फैसला किया जिसे तेजा के लिए ऋण कहा गया. 1961 में, 20 करोड़ रुपये का एक शिपिंग डेवलपमेंट फंड बना जिसके बाद तेजा को भारत के शिपिंग क्षेत्र का चेहरा बदलने की जल्दी होने लगी. नेहरू के साथ तेजा के तालमेल ने उसके देश छोड़कर भागने के बाद विपक्ष को हमला बोलने का मौका दे दिया. लाल बहादुर शास्त्री के बाद जब इंदिरा गांधी ने पदभार संभाला तो उन्हें जयंती शिपिंग कॉर्पोरेशन में अनियमितताओं की जांच के लिए एक समिति नियुक्त करने का दबाव झेलना पड़ा. उस वक्त तेजा और उनकी पत्नी भारतीय एजेंसियों की पकड़ से दूर जा चुके थे. (तस्वीर - Getty)
तेजा यहां से भागकर न्यूयॉर्क पहुंच चुका था जहां उसे गिरफ्तार किया गया था और भारत के प्रत्यर्पण अनुरोध के बाद अदालत में पेश किया गया. लेकिन वह सफलता अल्पकालिक थी, क्योंकि तेजा ने जमानत ले ली और कोस्टा रिका भाग गया, जहां भारत सरकार ने उसे फिर प्रत्यर्पित करने का अनुरोध किया और वहां की सरकार ने उसे ठुकरा दिया. जब तेजा को लगने लगा कि अब वह भारत सरकार की पकड़ से दूर है तो उसे लंदन में एकबार फिर नाटकीय तरीके से गिरफ्तार कर लिया गया. "पॉलिटिकल पाइपर" नामक अध्याय में, लेखक ने विस्तार से इसकी चर्चा की है कि कैसे तेजा के अति आत्मविश्वास ने उसे लंदन में गिरफ्तार करवा दिया. लंदन की एक अदालत में उसने बताया कि उसे कांग्रेस द्वारा 10 लाख रुपये का भुगतान करने के लिए कहा गया था. (तस्वीर - Getty)
इसके बाद भारत सरकार की कोशिशों के बाद साल 1971 में तेजा का प्रत्यर्पण हो गया. दानिश और रूही ने अपनी किताब में बताया है कि सीडी देशमुख और मोरारजी देसाई के पत्र से इस बात की पूरी जानकारी मिली. दिलचस्प बात यह है कि तीन साल जेल में बिताने के बाद तेजा 1977 में फिर से भारत से भाग गया. जब मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने तो आयकर विभाग ने पान एम एयरलाइंस पर मुकदमा चलाने की कोशिश की कि कैसे तेजा पर यात्रा प्रतिबंध हटाया गया. देसाई अचंभित रह गए और कहा जाता है कि उन्होंने संसद को बताया था कि, “तेजा आने और जाने के लिए स्वतंत्र है क्योंकि वह समझता है देश उसका कर्ज़दार है. 25 दिसंबर 1985 को 63 वर्ष की उम्र में तेजा की मृत्यु हो गई, आयकर विभाग ने उस वक्त भी जोर देकर कहा था कि उनके पास 13.53 करोड़ रुपये बकाया था. (तस्वीर - Getty)