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चमोली: तस्वीरों में देखिए कैसे तबाह हो गया ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट, बची सिर्फ कंक्रीट की दीवारें

aajtak.in
  • देहरादून,
  • 08 फरवरी 2021,
  • अपडेटेड 3:17 PM IST
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उत्तराखंड के चमोली में ग्लेशियर टूटने की वजह से जो आपदा आई है उससे जिंदगियों को बचाने की जद्दोजहद जारी है.15 लोगों की मौत हो चुकी जबकि अभी भी 150 से ज्यादा लोग लापता हैं. ग्लेशियर टूटने की वजह से भारी तबाही मची और इसका सबसे ज्यादा नुकसान ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट को पहुंचा है. इसे तपोवन बांध भी कहा जाता है. 

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आप इस पावर प्रोजेक्ट के पहले की और वर्तमान तस्वीर को देखकर अंदाजा लगा सकते हैं कि ग्लेशियर फटने के बाद नदी ने कैसा विकराल रूप धारण कर लिया और रास्ते में जो भी आया उसे अपने साथ बहाकर ले गई. अब इस ऑपरेशनल पावर प्रोजेक्ट की जगह बस कुछ कंक्रीट की दीवारें ही नजर आ रही हैं.

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चमोली के जोशीमठ में रविवार की सुबह करीब 10:30 बजे नंदादेवी ग्लेशियर टूटने के बाद धौलीगंगा नदी ने विकराल रूप धारण कर लिया और उसमें बाढ़ आ गई. यही वजह है कि धौलीगंगा और ऋषि गंगा नदी पर बना पावर प्रोजेक्ट इसका सबसे पहला शिकार बना और पूरी तरह तबाह हो गया. बाढ़ के रास्ते में जो भी पुल और सड़कें आईं वो भी पूरी तरह बह गईं.
 

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बता दें कि ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट बीते 10 सालों से चल रहा था और इससे बिजली का उत्पादन किया जा रहा था. यह सरकारी नहीं बल्कि निजी क्षेत्र की परियोजना थी. प्राकृतिक आपदाओं को देखते हुए इस प्रोजेक्ट के निर्माण के दौरान भी इसका खूब विरोध हुआ था. पर्यावरण के लिए काम करने वाले लोगों ने इसे खतरनाक बताया था. इतना ही नहीं लोगों ने इस प्रोजेक्ट के विरोध में कोर्ट का भी दरवाजा खटखटाया था और यह अभी न्यायालय में विचाराधीन है.
 

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ऋषि गंगा हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट से 63520 मेगावाट बिजली पैदा करने का लक्ष्य रखा गया था. आपदा से पहले इससे कितने मेगावाट बिजली का उत्पादन हो रहा था इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है. इस प्रोजेक्ट के पूरी क्षमता से काम करने पर दिल्ली-हरियाणा समेत कई राज्यों को बिजली सप्लाई करने  की योजना बनाई गई थी. 

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रविवार को आपदा आने और पावर प्रोजेक्ट के पूरी तरह बर्बाद हो जाने के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने कहा कि मैंने पहले ही हिमालय क्षेत्र में ऐसे पावर प्रोजेक्ट का विरोध किया था. उन्होंने ट्वीट कर इस हादसे को लेकर कहा, 'जब मैं मंत्री थी तब अपने मंत्रालय की तरफ से हिमालय-उत्तराखंड के बांधों के बारे में जो ऐफ़िडेविट दिया था उसमें यही आग्रह किया था की हिमालय एक बहुत संवेदनशील स्थान है इसलिये गंगा और उसकी मुख्य सहायक नदियों पर पावर प्रोजेक्ट नहीं बनने चाहिए.

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