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स्कूल बस बंद हुई तो ये बच्चा अपने घोड़े पर बैठ जाने लगा स्कूल

aajtak.in
  • खंडवा ,
  • 09 फरवरी 2021,
  • अपडेटेड 8:55 AM IST
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कोरोना संक्रमण के कारण स्कूलों के हुए लॉकडाउन के चलते सर्वाधिक प्रयोग शिक्षा के क्षेत्र में ही हुए हैं. स्कूल में क्लास में नियमित पढ़ाई का विकल्प ऑनलाइन शिक्षा निकला तो स्कूल बस बन्द होने का अनूठा विकल्प मध्य प्रदेश के खण्डवा ज‍िले के गांव मेंं एक छात्र ने निकाल लिया. वह अब अपने घोड़े पर सवार होकर स्कूल जाता है. वह किसी राज परिवार का राजकुमार नहीं, एक किसान का नन्हा बेटा है जिसे पढ़ाई का जुनून इस कदर है कि स्कूल बस बंद हुई तो अपने घोड़े को ही साधन बना लिया. (खंडवा से जय नागड़ा की र‍िपोर्ट) 

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प्रदेश के ग्रामीण अंचलों में स्कूल जाने के लिए कहीं नदी पार कर जद्दोज़हद करते स्कूली बच्चे आपने देखे होंगे तो कहीं रस्सी के पुल पर जोख़िम उठाकर बच्चे भी लेकिन खण्डवा जिले के ग्राम गुराड़ीमाल के 12 वर्षीय शिवराज का मामला थोड़ा अलग है. वह पीठ पर स्कूल बैग बांधे जब अपने दोस्त राजा (घोड़ा ) की पीठ पर बैठकर घर से निकलता है तो सबकी निगाहें उस पर टिक जाती हैं.

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दरअसल, यह उसका कोई शौक नहीं बल्कि मज़बूरी है. लॉकडाउन में स्कूल बंद होने के बाद जब बमुश्किल खुले तो बस चालू नहीं हुई. घर से स्कूल पांच किलोमीटर दूर था और रास्ता पथरीला. एकाध बार साइकिल से सवारी की तो पथरीले रास्ते पर गिरकर इतने ज़ख्म खाये कि दोबारा साइकिल की सवारी की हिम्मत नहीं हुई. मुसीबत में उसे अपना दोस्त घोड़ा ही नज़र आया जो उसे सुरक्षित पहुंचाने की गारंटी भी थी. 

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बच्चे ने बताया क‍ि मैं पहले साइकिल से आता था लेकिन चोट लगने के कारण अब साइकिल से नहीं आता हूं और अब मेरे प्रिय मित्र घोड़े के साथ आता हूं, उसका नाम राजा है. वह भी मेरे साथ स्कूल आता जाता है. मेरे घर से स्कूल पांच किलोमीटर दूर है और रास्ता कच्चा है जिसके कारण साइकिल से गिरने से मुझे चोट लग गयी थी. घोड़े से मैं इसलिए भी आता हूं कि पेट्रोल-डीज़ल के दाम ज्यादा हो गए. 

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दरअसल, स्कूल वाहन बंद होने से सबसे ज्यादा परेशानी तो छोटे बच्चों के पालकों की हो गयी जिन्हें उन्हें रोज स्कूल छोड़ने जाना और लाना परेशानी का सबब बन गया. शिवराज के पिता देवराम की भी यही परेशानी थी कि वे अपने बच्चे को नियमित पढ़ाना तो चाहते थे लेकिन उसे रोज स्कूल लाना ले जाना उनकी खेती की व्यस्तता में संभव नहीं हो पा रहा था. तब शिवराज ने साइकिल से गिरने के बाद जब अपने घोड़े से रोजाना जाने का रास्ता सुझाया तो देवराम को भी यह ठीक लगा और सुरक्षित भी.

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सिर्फ घोड़े की सवारी ही शिवराज को कुछ खास नहीं बनाती, वह पढ़ने में बहुत तेज़ है. स्कूल में अपनी क्लास एक दिन भी नहीं छोड़ना पसंद करता है. घोड़े से शिवराज की दोस्ती इतनी गहरी है कि दोनों एक-दूसरे को थोड़ी देर के लिए भी छोड़ना पसंद नहीं करते. जब यह घोड़ा सिर्फ तीन माह का था तभी शिवराज अपने पिता से ज़िद कर इसे ले आया. उसका पूरा पालन पोषण भी उसने किया. अब शिवराज और राजा की दोस्ती भी मशहूर हो रही है.  

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