एक तरफ विज्ञान चांद पर आशियाना बसाने के लिए प्रयास कर रहा है तो वहीं, दूसरी तरफ अंधविश्वास के भंवर जाल में फंस कर अंधविश्वास की पाठशाला चला कर लोगों को गुमराह किया जा रहा है. यह पाठशाला झारखंड के लातेहार जिले में चल रही है. (लातेहार से संजीव कुमार गिरी की रिपोर्ट)
लातेहार सदर प्रखंड से महज 15 किलोमीटर दूर स्थित बभनहेरुवा गांव में आज भी अंधविश्वास की पाठशाला चल रही है. यहां 10 साल में एक बार 4 माह की क्लास, 40 लोग करते हैं और मंत्र से सांप-बिच्छू का जहर निकालने की ट्रेनिंग लेते हैं.
यहां युवा से लेकर अधेड़ और वृद्ध लोग भी तंत्र साधना में लीन थे और वे अपने हाथों में मुर्गी, चावल और सिंदूर लिए हुए थे. पहले बकरे की, फिर मुर्गी की बलि देने की परम्परा यहां चली आ रही है.
गौरतलब है यह ट्रेनिंग नागपंचमी पर्व के दौरान दी जाती है. साथ इस ट्रेनिंग में सभी शिष्यों को शिक्षा-दीक्षा दी जाती है. यहां सभी 4 महीने तक सुबह और शाम ट्रेनिंग लेते हैं.
इस मामले पर लातेहार सिविल सर्जन संतोष कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि आज भी लोग अंधविश्वास के कारण गांव में झाड़-फूंक करने में समय गंवाकर हॉस्पिटल आते हैं, जहां उनकी मौत हो जाती है.