उत्तराखंड में कई ग्लेशियर ऐसे हैं जो कभी भी खतरनाक साबित हो सकते हैं. ऐसा ही एक ग्लेशियर चमोली जिले के माउंट त्रिशूल और माउंट नंदाघुंटी के नीचे मौजूद है. ग्लोबल वार्मिंग की वजह से ये पिघल रहा है लेकिन अब भी यह तबाही ला सकता है. कहा जा रहा है कि इस ग्लेशियर के नीचे बने दो छेद भविष्य में तबाही ला सकते हैं. ये छेद प्राकृतिक रूप से बने हैं.
इस ग्लेशियर का नाम है शिलासमुद्र ग्लेशियर (Shila Samudra Glacier). इस इलाके के जानकारों का मानना है कि अगर इस जगह कोई बड़ा भूकंप आया तो शिला ग्लेशियर टूट सकता है. ऐसी हालत में इसकी तबाही का असर 250 किलोमीटर दूर स्थित हरिद्वार तक देखने को मिल सकता है. इस ग्लेशियर से संभावित तबाही को लेकर मीडिया में कई तरह की खबरें आ रही हैं.
शिलासमुद्र ग्लेशियर (Shila Samudra Glacier) पर लोग ट्रेकिंग के लिए जाते हैं. ये रूपकुंड-जुनारगली-होमकुंड ट्रेक इसी रास्ते पर आता है. इसके एक तरफ रोन्टी सैडल है दूसरी तरफ दोडांग की घाटी. इसी घाटी में शिलासमुद्र ग्लेशियर (Shila Samudra Glacier) का निचला और पथरीला हिस्सा है.
शिलासमुद्र ग्लेशियर (Shila Samudra Glacier) का बर्फीला और ऊपरी हिस्सा नंदाघुंटी से निकलता है. इस जगह राजजात नामक धार्मिक यात्रा भी होती है. यह ग्लेशियर करीब 9 किलोमीटर के इलाके में फैला है. दिक्कत की बात ये है कि अब इस ग्लेशियर की तलहटी में दो प्राकृतिक छेद बन गए हैं. साल 2000 में यह छेद काफी छोटा था, लेकिन 2014 तक यह काफी बड़ा हो गया है.
अब इन दोनों छेदों के आसपास बड़ी-बड़ी दरारें पड़ी हुई हैं. इन दरारों को भविष्य का खतरा माना जा रहा है. हिमालयी पहाड़ों के एक्सपर्ट्स का मानना है कि उच्च हिमालयी क्षेत्रों में हल्के भूंकप ग्लेशियरों के लिए खतरनाक हैं.
रूपकुंड जाने वाले ट्रैकर्स इस यात्रा को पूरा करने के लिए शिलासमुद्र ग्लेशियर (Shila Samudra Glacier) को पार करते हैं. नंदा देवी राजजात यात्रा हर 12 साल पर रूपकुंड पर आयोजित होता है. इस दौरान देवी नंदा की पूजा अर्चना की जाती है.
2013 की आपदा के बाद से वैज्ञानिक लगातार हिमालय पर रिसर्च कर रहे हैं. देहरादून के भू-विज्ञान संस्थान के शोधकर्ताओं ने एक बड़ी चेतावनी जारी की है. उनके मुताबिक ग्लेशियरों के कारण बनने वाली झीलें बड़े खतरे का कारण बन सकती हैं. 2013 की भीषण आपदा इसका जीता जागता उदाहरण है कि किस तरह से एक झील के फट जाने से उत्तराखंड में तबाही का तांडव हुआ था.
वैज्ञानिकों ने श्योक नदी समेत हिमालयी नदियों पर जो रिसर्च की है वह इंटरनेशनल जर्नल ग्लोबल एंड प्लेनेटरी चेंज में प्रकाशित हुआ है. इस रिपोर्ट में दुनिया के विख्यात जियोलॉजिस्ट प्रो. केनिथ हेविट ने भी मदद की है.
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ जियोलॉजी के वैज्ञानिक डॉ. राकेश भाम्बरी, डॉ. अमित कुमार, डॉ. अक्षय वर्मा और डॉ. समीर तिवारी ने 2019 में हिमालय क्षेत्र में नदियों का प्रवाह रोकने संबंधी रिसर्च ग्लेशियर, आइस डैम, आउटबर्स्ट फ्लड एंड मूवमेंट हेट्रोजेनेटी ऑफ ग्लेशियर किया है.
इस स्टडी में वैज्ञानिकों ने श्योक नदी के आसपास के हिमालयी क्षेत्र में 145 लेक आउटबर्स्ट की घटनाओं का पता लगाया है. इन सारी घटनाओं के रिकॉर्ड की एनालिसिस करने के बाद ये रिपोर्ट तैयार की है. रिसर्च में पता चला कि हिमालय क्षेत्र की करीब सभी घाटियों में स्थित ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. लेकिन पाक अधिकृत कश्मीर वाले काराकोरम क्षेत्र में ग्लेशियर में बर्फ की मात्रा बढ़ रही है. इसलिए ये ग्लेशियर जब बड़े होते हैं तो ये नदियों के प्रवाह को रोकते हैं.