उत्तराखंड में चारधाम प्रोजेक्ट को लेकर विवाद बढ़ता ही जा रहा है. इस विवाद का मुख्य कारण है पहाड़ों में बनने वाली सड़क की चौड़ाई जिसको लेकर बनाई गई कमेटी ही अब दो धड़ों में बंट गई है.
दरअसल केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री जैसे तीर्थस्थानों को आपस में हाइवे के जरिए जोड़ने के लिए प्रधानमंत्री पीएम मोदी ने साल 2016 में उत्तराखंड चुनाव से पहले चारधाम प्रोजेक्ट का ऐलान किया था. इसे हाइवे की कुल लंबाई 889 किलोमीटर है. बता दें कि उत्तराखंड में इससे चीन सीमा तक भी आसानी से पहुंचा जा सकेगा.
विधानसभा चुनाव के बाद इस प्रोजेक्ट पर काम भी शुरू हुआ लेकिन उसी दौरान सड़क निर्माण से पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने की कई शिकायतें आईं. आरोप लगे कि नियमों को तोड़कर पहाड़ों और पेड़ों को काटकर पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाया जा रहा है. इस प्रोजेक्ट के खिलाफ नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में काफी अर्जियां दाखिल हुईं. ऐसे में एनजीटी ने इन सभी शिकायतों को सुप्रीम कोर्ट भेज दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए विवाद के निपटारे के लिए पर्यावरण मामलों के जानकार और देहरादून स्थित पीपल्स साइंस इंस्टीट्यूट के निदेशक रह चुके रवि चोपड़ा की अगुवाई में एक कमेटी का गठन कर दिया. इस कमेटी की जो रिपोर्ट आई उससे विवाद सुलझने की जगह और बढ़ गया है.
दरअसल, कमेटी में प्रोजेक्ट की सिफारिशों को लेकर दो धड़े बन गए. एक गुट में रवि चोपड़ा समेत चार लोग हैं जबकि दूसरे में 21 लोग हैं. चोपड़ा और उनके चार साथियों ने प्रोजेक्ट में सड़क की चौड़ाई 12 मीटर रखे जाने पर आपत्ति जताई है. चोपड़ा और उनके साथियों ने 12 मीटर के नियम को हिमालयन ब्लंडर यानी भयानक गलती बताया है. वहीं कमेटी के दूसरे धड़े को सदस्यों ने प्रोजेक्ट को सही बताया और उन्होंने सड़क की चौड़ाई को हरी झंडी दे दी.
प्रोजेक्ट पर सवाल उठाते हुए हेमंत जुयाल ने टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा कि उनकी आपत्ति ऐतिहासिक डेटा के आधार पर है. उन्होंने कहा कि जिन जगहों से सड़क गुजर रही है, वह काफी संवेदनशील है. यहां पर हिमालय पहाड़ काफी कमजोर है. ऐसे में सड़क चौड़ी करना घातक हो सकता है.
जुयाल ने अपनी शिकायत में पीपलकोटी और पातालगंगा तक के रास्ते को भी नहीं छेड़ने की मांग की है. उन्होंने कहा, हमारे पास इमारतें बनाने और सड़कें चौड़ी करने का पैसा तो है लेकिन पहाड़ की ढलान को मैनेज करने का पैसा नहीं है. उत्तराखंड जैसे इलाकों में ढलान को मैनेज करना सबसे अहम होता है.
जिस समय इस प्रोजेक्ट का ऐलान किया गया था उस वक्त इसकी अनुमानित लागत 12000 करोड़ बताई गई थी लेकिन अब लागत में और इजाफा हो गया है. इस प्रोजेक्ट पर अब तक 4000 करोड़ रुपये खर्च हो चुके है. उत्तराखंड सरकार के मुताबिक इस प्रोजेक्ट के तहत 250 किलोमीटर सड़क चौड़ी हो चुकी है और 400 किलोमीटर सड़क पर काम चल रहा है. जबकि 239 किलोमीटर सड़क पर अभी काम शुरू होना बाकी है क्योंकि पर्यावरण से जुड़ी मंजूरी नहीं दी गई है.
उत्तराखंड के विशेषज्ञ और स्थानीय पत्रकार राजेश जोशी के मुताबिक यह प्रोजेक्ट सिर्फ धार्मिक यात्रा तक सीमित नहीं है. जोशी के मुताबिक यह सामरिक रूप से भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसे ऑल वेदर रोड प्रोजेक्ट के तौर पर बनाया जा रहा है. इस प्रोजेक्ट के पूरा होने पर भारतीय सेना चीन-नेपाल सीमा तक तुरंत पहुंच सकती है.
हालांकि नियमों को ताक पर रखकर निर्माण और पहाड़ों को नुकसान पहुंचाये जाने के आरोपों को लेकर अब यह प्रोजेक्ट अधर में लटक सकता है.